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जबरिया धर्मांतरण संविधान के खिलाफः सर्वोच्च न्यायालय

नई दिल्ली (the live ink desk). सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) ने कहा, जबरदस्ती धर्मांतरण (Forced conversion) एक गंभीर मसला है और यह संविधान के खिलाफ है। अदालत एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी। सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता अश्वनी उपाध्याय की ओर से दाखिल उक्त याचिका में यह भी आग्रह किया गया है कि सुप्रीम कोर्ट, केंद्र और राज्यों को डरा-धमकाकर, धोखे से या फिर तोहफे-पैसे आदि के लालच के बल पर छलपूर्वक धर्मांतरण को रोकने का निर्देश दे।

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इस मामले में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि वह इस तरह के धर्म परिवर्तन से जुड़े मामले को लेकर राज्यों से जानकारी इकट्ठा कर रही है। मालूम हो कि जस्टिस सीटी रवी कुमार और जस्टिस एमआर शाह की पीठ के सामने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने और अधिक जानकारी लाने के लिए कोर्ट से समय मांगा है। तुषार मेहता ने कहा, हम राज्यों से जानकारी इकट्ठा कर रहे हैं। हमें एक हफ्ता का समय दीजिए।

इसी प्रक्रिया में सर्वोच्च अदालत ने धर्मांतरण को बहुत ही गंभीर मामला माना। सर्वोच्च अदालत ने कहा हम यहां हल ढूंढने के लिए बैठे हैं। अगर किसी स्वयंसेवी संस्था का उद्देश्य अच्छा है तो वह स्वागत के योग्य है, लेकिन जिस बात की जरूरत यहां है, वह नीयत है। अदालत ने कहा, यह बहुत गंभीर मुद्दा है। यह हमारे संविधान के खिलाफ है। जब कोई भारत में रहता है तो ऐसे हर व्यक्ति को भारत की संस्कृति के अनुसार ही चलना होगा। इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट 12 दिसंबर को अगली सुनवाई करेगा। बीते दिनों सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि जबरन धर्मांतरण, राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा पैदा कर सकता है।

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