या अली की सदाओं के बीच अक़ीदतमंदों का मातम, मोमबत्ती की रोशनी में निकला जुलूस
प्रयागराज (आलोक गुप्ता). मस्जिद क़ाज़ी साहब बख्शी बाज़ार से फजिर की नमाज़ बाद मस्जिद व आसपास की सड़कों व गलियों की लाइटों को बुझाकर मोमबत्ती की रोशनी में अकीदतमंदों ने जुलूस निकाला। सुगंधित लोहबान की धूनी के साथ ग़मगीन माहौल में काले लिबास पहने अकीदतमंदों का स्याह सैलाब उमड़ पड़ा।
भोर में ही मस्जिद क़ाज़ी साहब के इर्द-गिर्द बड़ी संख्या में खवातीनों का मजमा लग गया था। मस्जिद से जैसे ही सफदर हुसैन ने अज़ान पढ़ी और इमाम-ए-जमात मौलाना जवादुल हैदर रिज़वी साहब क़िब्ला ने नमाज़ अदा कराई, फौरन सभी लाइटों को बुझाकर मौलाना सैय्यद रज़ी हैदर रिज़वी साहब क़िब्ला ने शहादत का ज़िक्र किया कि कूफा की मस्जिद में नमाज़ियों की भेष में मौजूद अब्दुर्रहमान इब्ने मुल्जिम नामक क़ातिल ने ज़हर बुझी तलवार से मौलाए कायनात के सरे अक़दस पर ऐसा वार किया कि सर-ए-मुबारक के ज़ख्म की ताब न बर्दाश्त करते हुए अमीरुल मोमेनीन, ग़रीबों, बेवाओं और मिस्कीनों को रात की तारीकी में रोटियां पहुंचाने वाला दामादे रसूल इक्कीस माहे रमज़ान को शहीद हो गया।
ग़मगीन वाक़यात सुनकर अक़ीदतमंदों की रोने की आवाज़ें बुलंद होने लगीं। या अली मौला, हैदर मौला की सदाओं के बीच मस्जिद के अंदरूनी हिस्से में अक़ीदतमंदों ने देर तक मातम किया। ताबूत का जुलूस मस्जिद क़ाज़ी साहब से निकल कर अहाता खुरशेद हुसैन मरहूम पर जाकर खत्म हुआ।