पश्चिमांचल

World Environment Day: पर्यावरण संरक्षण मतलब जीवन का संरक्षण

पर्यावरण शब्द ‘परि-आवरण’ के संयोग से बना है। “परि” का आशय चारों ओर और ‘आवरण’ का आशय परिवेश है। दूसरे शब्दों में कहें तो पर्यावरण अर्थात् वनस्पतियों, प्राणियों और मानव जाति सहित सभी सजीव और उनके साथ संबंधित भौतिक परिसर को पर्यावरण कहते हैं। वास्तव में पर्यावरण में वायु, जल, भूमि, पेड़-पौधे, जीव-जंतु, मानव और उसकी विविध गतिविधियों के परिणाम आदि सभी का समावेश होता है।

पर्यावरण संरक्षण (Environment protection) हमारे पर्यावरण में होने वाले विभिन्न प्रकार के प्रदूषण यथा जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, मृदा प्रदूषण एवं जल संसाधनों की कमी, वनस्पतियों की अपेक्षाकृति समस्याओं आदि सुधार निश्चित करने के लिए की जाती है, जिससे संबंधित समस्याओं का समाधान हो सके।

प्रदूषण नियंत्रण पर्यावरण संरक्षण का सबसे महत्वपूर्ण एवं प्राथमिक उपाय है। वायु, जल ध्वनि, मृदा जैसे प्रदूषण को कम करके हमारे पर्यावरण में हो रहे नुकसान को बहुत हद तक सुधारा जा सकता है। ऐसे में वनों का संरक्षण अत्यंत आवश्यक हो गया है।

वनों का संरक्षण करने के लिए हमें अपने निवास पार्क, स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालयों के पास छोटे-छोटे घने जंगल विकसित करने चाहिए। हमें विकास के नाम पेड़ों की कटाई को भी रोकना होगा। वृक्षारोपण को उन स्कूलों और शहरों में एक आंदोलन के रूप में बनाना चाहिए जहां आम आदमी पेड़ लगाने की मुहिम से जुड़े सके। इसके अलावा हम माता-पिता, छात्रों, शिक्षकों से ऐसे पवित्र अवसरों पर पेड़ लगाकर अपने पूर्वजों की जयंती मनाने के लिए कह सकते हैं।

हम आम लोगों को अंत्येष्टि समारोहों में गो काष्ठ का उपयोग करने के लिए जागरूक कर सकते हैं। इस तरह से असंख्य पेड़ों को बचाया जा सकेगा। हम लोगों से मेडिकल कॉलेज में देहदान करने के लिए कह सकते हैं, क्योंकि उन शवों का उपयोग अनुसंधान और अध्ययन में किया जाएगा। इस प्रकार यह पर्यावरण संरक्षण में एक मील का पत्थर साबित होगा।

हमें वृक्षों के संरक्षण को धर्म से भी जोड़ना चाहिए, जिसमें मुख्य रूप से पंचवटी और नवग्रह वाटिका की स्थापना करना है। हम पंचवटी और नवग्रह वाटिका की स्थापना कर सकते हैं, जिसमें पवित्र हिंदू पौराणिक पेड़ आते हैं और लोग अपने आसपास ऐसे हिंदू पौराणिक पेड़ों को देखकर खुद को धन्य महसूस करते हैं।

पंच यानी पांच वट यानि वृक्ष से है। ये पांच विशेष प्रकार के वृक्ष जिस स्थान पर लगाए जाते हैं, लोग वहां धार्मिक और दिव्य अमृत की प्राप्ति करते हैं। नवग्रह वाटिका का अर्थ है नौ ग्रहों का बगीचा, जिसमें नवग्रहों से संबंधित पौधों, झाड़ियों और घासों को लगाया जाता है। इनके लगाने और इनकी रोज सेवा करने से जातक को नवग्रह की पीड़ा से मुक्ति मिलती है। स्वास्थ्य लाभ के साथ परिवार में संपन्नता आती है।

नौ ग्रहों के इन पौधों में सूर्य के लिए मंदार का पौधा लगाया जाएगा। वहीं चंद्रमा के लिए पलाश, मंगल के लिए खैर, बुद्ध के लिए चिरचिरी, बृहस्पति के लिए पीपल, शुक्र के लिए गूलर, शनि के लिए शमी, राहु के लिए दुर्वा (दूब) और केतु के लिए कुश लगाया जाएगा। इस तरह के धार्मिक वृक्षारोपण लोगों को पर्यावरण के संरक्षण और सुरक्षा के करीब लाते हैं।

इसके अतिरिक्त भी वृक्ष बिना किसी स्वार्थ के हमारे बहुत प्रकार से उपयोगी साबित होते हैं। प्राण वायु, पथिकों को छाया, बंजर भूमि में सुधार, पर्यटन, रोजगार, फल-फूल, औषधियाँ, कच्चा माल, जलस्तर में वृद्धि, राष्ट्रीय आय में वृद्धि, कृषि उपज में वृद्धि, रेगिस्तान के प्रसार पर नियंत्रण, पर्यावरण पर नियंत्रण, इमारती लकड़ी, बाढ़ नियंत्रण, ईंधन, सुंदरता, जलवायु पर नियंत्रण, पशु पक्षियों का वास बढ़ता है।

पर्यावरण संरक्षण के लिए हमें जल का भी संचय करना चाहिए। वर्षा जल बहकर नदी-नालों में न जाए। प्रत्येक क्षेत्र में इतना बड़ा गड्ढा किया जाए कि बारिश का पानी इसी में समा जाए। नदी-नालों पर चेक डैम, बैराज डैम का अधिकाधिक निर्माण किया जाए, ताकि बाढ़ का पानी रूके। वर्षा जल के भंडारण के लिए प्रत्येक घर में टैंक हो। नदी-नालों को आपस में जोड़ना, जल का पुनर्प्रयोग, रसोई से निकले पानी से सिंचाई, कपड़े धोने एवं नहाने के बाद निकले पानी से फर्श, कार एवं सड़क की धुलाई या फ्लश में प्रयोग किया जा सकता है।

पाइपों से होने वाले रिसाव को रोककरभी बहुत सारा पानी बचाया जासकता है। हाथ धोते एवं शेविंग के समय टोटी बंद रखें। पानी के इंतजार में टोटी खुली न छोड़ें। ओवरहेड टैंकों से पानी न बहने दें। कार, छत, फर्श और सड़क धोने में पेयजल का प्रयोग न करें। सड़क एवं अन्य निर्माण कार्यों में, जहां पेयजल के बिना भी काम चल सकता है, पेयजल का प्रयोग न करें। नहाने में जरूरत से ज्यादा पानी न बहाएं। स्वीमिंग पूल के इस्तेमाल से बचें।

वर्षा जल का भू-विर्सजन (वाटर हार्वेस्टिंग) घरों, ऑफिसों व अन्य सभी इमारतों में रेनवाटर हार्वेस्टिंग की जाए। फुटपाथ, सड़क एवं फर्श में छिद्रित सामग्री का प्रयोग किया जाए ताकि इनमें पानी समा सके। मिट्टी की ढलुआ सतहों पर धास लगाई जाए। तालाब, झीलों, नालों का गहराकरण एवं पुनरोद्धार हो। नये तालाबों एवं झीलों का निर्माण हो। इनके अतिक्रमण पर रोक लगे। इनके जलग्राही क्षेत्र का संरक्षण। जंगल में आग भी पर्यावरण के दोहन का एक बहुत बड़ा कारण है। जंगल में आग पर कैसे नियंत्रण किया जाए इसको जानना हम सबके लिए बहुत आवश्यक है। विवेक श्रीवास्तव (लेखक परिषदीय विद्यालय में सहायक अध्यापक हैं)

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