नौ भाषाओं के ज्ञाता डॉ. भीमराव अंबेडकर और स्त्री सशक्तिकरण
समाज में एक आदर्शवादी कामना के रूप में स्त्री का महिमामंडन तो बहुत है। पर, वास्तविकता बहुत उलट है। आज स्त्रियों की जो भी सकारात्मक स्थितियां हमे दिखती हैं, उसमें डॉ भीमराव अंबेडकर (Dr. Ambedkar) का बड़ा योगदान है। विकसित समाज के लिए स्त्रियों को शिक्षित किये जाने को वे अत्यधिक महत्वपूर्ण मानते थे। उन्होंने कोलंबिया विवि में अपनी पढ़ाई के दौरान अपने पिता के एक मित्र को पत्र में लिखा था, “हम एक बेहतर कल की कल्पना स्त्रियों को शिक्षित किये बिना नहीं कर सकते। ऐसा पुरुषों के समान स्त्रियों को शिक्षित कर के ही संभव है”। उन्होंने आज़ादी से पूर्व ही इस दिशा में काम करने शुरू कर दिए थे।
■ नौ भाषाओं के ज्ञाता और 32 विषयों के डिग्री होल्डर भारतीय बहुज्ञ, विधिवेत्ता, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ और समाजसुधारक अंबेडकर ने 1927 में महिलाओं की एक सभा को संबोधित करते हुए कहा था “वे अधिक संतानें पैदा न करें और अपने बच्चों के गुणात्मक जीवन के लिए प्रयास करें। सभी स्त्रियों को अपने पुत्रों के साथ साथ पुत्रियों को भी साक्षर बनाने के लिए समान प्रयत्न करने होंगे”। यह स्त्री जागरूकता की ऐसी पहली सभा थी।
■ डॉ. अंबेडकर (Dr. Bhimrao Ambedkar) ने 1928 में अपनी पत्नी रमा बाई के नेतृत्व में महिला संगठन ‘मंडल परिषद’ की स्थापना की और उन्हें सामाजिक भागीदारी के लिए प्रेरित किया। उनसे प्रेरित होकर एक महिला तुलसी बाई बंसोड़ ने 1931 में ‘चोकमेला‘ नामक एक समाचार पत्र शुरू किया।
■ अंबेडकर देश के प्रथम क़ानून मंत्री थे। 1951 में उन्होंने संसद में ‘हिंदू कोड बिल’ को मंजूरी के लिए अथक प्रयास किया। उन्होंने रूढ़िवादियों द्वारा इस बिल को संसद द्वारा पारित ना किये जाने के विरोध में अपने पद से इस्तीफा दे दिया। इस बिल को अंबेडकर संविधान से भी महत्वपूर्ण मानते थे। उनका मानना था कि स्त्री सुधार ही समाज में स्थाई सुधारों के कारण बनेगा। आगे चलकर यही बिल हिंदू विवाह क़ानून 1955, हिंदू उत्तराधिकार क़ानून 1956, अल्प संख्यक व सुरक्षा क़ानून 1956, हिंदू एडॉप्शन और मेंटिनेंस एक्ट 1956 के रूप में आया और 2005 में संपत्ति में महिलाओं की बराबर भागीदारी की व्यवस्था से पूर्ण हुआ।
■ 20 मार्च 1927 के ऐतिहासिक महाड़ सत्याग्रह में 300 से अधिक स्त्रियों ने भी हिस्सा लिया था। इसमें महिलाओं की एक बड़ी सभा को संबोधित करते हुए अंबेडकर ने यह ऐतिहासिक बात कही थी, “मैं समुदाय अथवा समाज की उन्नति का मूल्यांकन स्त्रियों की उन्नति के आधार पर करता हूँ। स्त्री को पुरुष का दास नहीं बल्कि उसका साझा सहयोगी होना चाहिए। उसे घरेलू कार्यों की ही तरह सामाजिक कार्यों में भी पुरुष के साथ संलग्न रहना चाहिए”।
■ 2 मार्च, 1930 के नासिक स्थित कालाराम मंदिर में प्रवेश को लेकर डॉ. अंबेडकर ने ऐतिहासिक सत्याग्रह किया था। इस सत्याग्रह में 500 से भी अधिक दलित स्त्रियां भी शामिल हुईं और जेल गई थीं। इस आंदोलन से दलितों को मंदिर प्रवेश का अधिकार मिला था।
■ 1942 में अंबेडकर ने ‘शैड्यूल कास्ट फेडरेशन‘ की नींव रखी जिसके प्रथम सम्मेलन में 5000 से अधिक महिलाएं भागीदार बनीं। इस फेडरेशन के साथ ‘शैड्यूल कास्ट महिला फेडरेशन‘ का भी निर्माण किया गया, जिसका हिस्सा बनकर स्त्रियों ने मैटरनिटी नियम कानूनों में सुधार, समान वेतन और पूना पैक्ट के प्रावधानों को पुनः लागू करने जैसी मांगों को उठाया।
■ डॉ. अंबेडकर (Dr. Bhimrao Ambedkar) ने पहली बार 1928 में बंबई विधानसभा में मैटरनिटी बेनिफिट बिल पास करवाया था। अगले ही वर्ष मद्रास ने यह पास किया। बाद में 1942 में गवर्नर जनरल एग्जिक्युटिव काउंसिल में श्रम मंत्री होते हुए उन्होंने काउंसिल से तत्कालीन ब्रिटिश भारत के लिए ‘मैटरनिटी बैनिफिट बिल’ को मंजूरी दिलवाई थी। इसमे सुधार का क्रम 1961 तक चला और अभी 2017 में प्रसूति अवकाश 26 हफ्तों का कर दिया गया है। इस मानवीय व्यवस्था के पैरोकार डॉ. अंबेडकर ही थे।
■ अंबेडकर ने पाया कि महिलाओं को पुरुषों की तुलना में कम वेतन दिया जाता है। उन्होंने ही सर्वप्रथम 1942 में महिलाओं के लिए समान काम, समान वेतन की व्यवस्था श्रम मंत्री रहते हुए दी थी।
■ भारतीय संविधान में उनके स्त्री सशक्तिकरण के प्रयास कानून बन गए। इसका अनुच्छेद 14 सामाजिक-आर्थिक व राजनैतिक क्षेत्रों में समान अधिकारों, अवसरों की व्यवस्था करता है। अनुच्छेद 15 लिंग आधारित भेदभाव के निषेध को निर्देशित करते हुए राज्य को स्त्रियों के लिए अवसरों के स्तर पर विशेष प्रावधानों की व्यवस्था करने का निर्देश देता है। इसी तरह अनुछेद 39 समान कार्यों के लिए समान वेतन की व्यवस्था करने की बात कहता है। वहीँ अनु.41 कार्य के दौरान सुगम परिस्थितियों की व्यवस्था करते हुए मैटरनिटी अवकाश की व्यवस्था देता है।
■ लोकतंत्र में मताधिकार ही उसके प्राण हैं। जहां विश्व के विकसित देशों में महिलाओं के संघर्ष आदि के बाद उन्हें देर से मताधिकार का अधिकार मिला, वहीं भारत में इसके लिए महिलाओं को बिना कुछ किये अधिकार मिला। यह अत्यंत महत्वपूर्ण घटना है। संविधान के अनुच्छेद 325 और 326 में सभी को मताधिकार मिल गया था। यह स्त्री सशक्तिकरण की दिशा में बहुत बड़ा कदम था।
डॉ. भीमराव अंबेडकर ने आज़ाद भारत में सांस्कृतिक-सामाजिक गुलामी से मुक्ति के लिए आदर्शवादी कामनाओं के बजाय संवैधानिक प्रावधानों को लागू किया। आज के समाज को उनका कृतज्ञ होना चाहिए खासकर महिलाओं को। अभी 33% महिला आरक्षण का बिल पास होना शेष है। वह पास करना बाबा साहब के कार्यों को आगे बढ़ाना होगा, उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि होगी। साभार: जिला सूचना कार्यालय, भदोही।