शहादत दिवस पर याद किए गए महान क्रांतिकारी जतिनदास
केशवप्रसाद मिश्र राजकीय महिला महाविद्यालय में दी गई श्रद्धांजलि
व्याख्यानमाला में वक्ताओं ने जतिनदास के त्याग और संघर्ष पर रखे विचार
भदोही (कृष्ण कुमार द्विवेदी). केशव प्रसाद मिश्र राजकीय महिला महाविद्यालय औराई में महान क्रांतिकारी जतिन दास का शहीदी दिवस मनाया गया। महाविद्यालय की छात्राओं ने महान क्रांतिकारी जतिन दास को याद करते हुए श्रद्धांजलि अर्पित की। कार्यक्रम के प्रारंभ में महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. बृजकिशोर त्रिपाठी ने जतिन दास के चित्र पर माल्यार्पण एवं पुष्प अर्पित कर उनके त्याग व बलिदान को याद किया।
जतिन दास का स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान, विषय पर आयोजित व्याख्यान के मुख्य वक्ता महाविद्यालय के इतिहास विभागाध्यक्ष डॉ. विनोद कुमार मिश्र ने जतिन दास के जीवन एवं उनके कृतित्व पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, जतिन दास, जिनका पूरा नाम जतींद्रनाथ दास था और लोग उन्हें जतिन दास के नाम से बुलाते थे, का जन्म 27 अक्टूबर 1904 को कोलकाता के बंगाली परिवार में हुआ था। प्रारंभ में वह बंगाल में अनुशीलन समिति में शामिल हो गए। जतिन दास पहले ऐसे क्रांतिकारी थे, जिन्होंने राजनीतिक कैदियों की लड़ाई लड़ते हुए अपनी शहादत दी थी।
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13 सितंबर 1929 को जतिन दास की मौत के वक्त उनकी उम्र सिर्फ 25 वर्ष थी, लेकिन इस छोटी सी क्रांतिकारी जिंदगी में उन्होंने कई बार भूख हड़ताल की एवं अंग्रेजों को अपने सामने विवश कर दिया। जतिन दास की भूख हड़ताल 13 जुलाई 1929 को शुरू हुई और जेल में अवैध बंदी के खिलाफ प्रतिरोध में वह एक महत्वपूर्ण क्षण था। सुभाष चंद्र बोस ने उनके त्याग एवं बलिदान के लिए उन्हें युवा दधीचि कहकर संबोधित किया था। अंग्रेजों ने लाहौर षड्यंत्र केस 1928-29 में भगत सिंह राजगुरु बटुकेश्वर दत्त व अन्य के साथ जतिन दास पर भी मुकदमा चलाया गया था।
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महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. बृजकिशोर त्रिपाठी ने महान क्रांतिकारी जतिन दास के जीवन एवं उनके दृढ निश्चय से छात्राओं को भी अपने जीवन में सीख लेने की अपील की। उन्होंने कहा कि हमें भी अपने महान क्रांतिकारियों की तरह किसी भी कार्य में सफल होने के लिए एक जिद रखनी पड़ती है, तभी सफलता प्राप्त होती है। इस अवसर पर आजादी का अमृत महोत्सव के नोडल अधिकारी अनुज कुमार सिंह ने धन्यवाद ज्ञापित किया।