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भारत से Armenia खरीदेगा 2000 करोड़ रुपये का रक्षा उपकरण

नई दिल्ली (the live ink desk). आत्मनिर्भरता की कहानी गढ़ रहा भारत रक्षा निर्यात के मामले में भी तरक्की कर रहा है। पिछले पांच वर्ष की रिपोर्ट पर गौर करें तो भारत का रक्षा निर्यात 334 फीसद बढ़ा है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक भारत ने 2022-23 की पहली तिमाही में ही 1387 करोड़ रुपये का निर्यात किया है। जबकि पिछले वर्ष का कुल निर्यात 12815 करोड़ रुपये था।

अब भारत आर्मीनिया (Armenia) को 2000 करोड़ रुपये का हथियार बेचने जा रहा है। मालूम हो कि साल 2020 में आर्मीनिया का अजरबैजान (Azerbaijan) के साथ भीषण युद्ध हुआ था। मौजूदा समय में भी एक बार फिर दोनों देशों में तनाव चरम पर है। लिहाजा आर्मीनिया के लिए भारत के साथ किए जा रहे इस रक्षा सौदे की काफी अहमियत है। रक्षा मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक 2000 करोड़ रुपये के इस रक्षा सौदे में भारत आर्मीनिया को सबसे पहले पिनाका मल्टी बैरल राकेट लांचर देगा। इस मल्टी बैरल रॉकेट लांचर (Multi Barrel Rocket Launcher) को रक्षा एवं अनुसंधान संगठन (डीआरडीओ) ने विकसित किया है।

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रक्षा मंत्रालय (Ministry of Defence) के मुताबिक भारत आने वाले पांच साल में 35 हजार करोड़ से ज्यादा का हथियार बेचने का लक्ष्य लेकर चल रहा है। मौजूदा समय में भारत विश्व के कुल 75 देशों में अपने हथियार सप्लाई कर रहा है। जनवरी 2022 में ही भारत ने फिलीपींस को सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल ब्रह्मोस को देने का सौदा किया है।

भारत ने चीन और पाकिस्तान (China and Pakistan) की सीमा पर पहले से ही पिनाका मल्टी बैरल रॉकेट लांचर की तैनात कर रखा है। यदि यह सौदा फाइनल होता है तो पिनाका का यह पहला अंतरराष्ट्रीय सौदा होगा। रक्षा विशेषज्ञों के मुताबिक अंतरराष्ट्रीय स्तर (International Baccalaureate) पर इस रक्षा सौदे की काफी अहमियत है, क्योंकि आर्मीनिया का पड़ोसी देश अजरबैजान पाकिस्तान और तुर्की के पाले में जाता हुआ दिखाई दे रहा है। अजरबैजान को तुर्की और पाकिस्तान के उभरते गठजोड़ के हिस्से के तौर पर देखा जा रहा है।

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2020 में आर्मीनिया के साथ हुई लड़ाई में अजरबैजान ने तुर्की के ड्रोन इस्तेमाल कर आर्मीनिया को काफी क्षति पहुंचाई थी। अब अजरबैजान पाकिस्तान से चीन में बना जेएफ-1 लड़ाकू विमान खरीदना चाहता है। विशेषज्ञों का मानना है कि भौगोलिक दूरी के बावजूद आर्मीनिया और अजरबैजान की लड़ाई भारत और पाकिस्तान की प्रतिद्वंद्विता की तरह सामने आ रही है। 2017 में पाकिस्तान, तुर्की और अजरबैजान के बीच एक त्रिपक्षीय समझौता हुआ था। इसमें इन तीनों देशों के बीच सुरक्षा से संबंधित एक दूसरे का सहयोग करने और एक दूसरे को हथियार के आदान प्रदान की बातें हुई थीं और इन तीनों देशों के बीच पहले से चले आ रहे रक्षा समझौतों को और आगे बढ़ाने की बात भी कही गई थी।

उल्लेखनीय है कि 2020 में 44 दिनों के भीषण युद्ध के बाद अजरबैजान द्वारा आर्मीनिया को हरा दिया गया था। इसके बाद पिछले साल अजरबैजान ने तुर्की और पाकिस्तान के साथ मिलकर साझा सैन्य अभ्यास किया। इस संयुक्त अभ्यास को भारत के खिलाफ देखा जा रहा है। मालूम हो कि धारा 370 हटाने के बाद तुर्की ने भी भारत का विरोध कर पाकिस्तान का साथ दिया था और अजरबैजान भी 370 के विरोध में ख़ड़ा दिखा। वह भी पाकिस्तान के रुख का समर्थन कर रहा है।

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तुर्की नाटो का सदस्य देश है और अज़रबैजान गैस सप्लाई करने वाले दुनिया के प्रमुख देशों में है। भारत का आर्मीनिया से इतर अजरबैजान के साथ ज्यादा मजबूत आर्थिक संबंध है। अजरबैजान की कई गैस फील्ड में भारतीय कंपनी ओएनजीसी का बड़े पैमाने पर निवेश है, लेकिन अजरबैजान की पाकिस्तान और तुर्की के पाले में जाने के बाद भारत आर्मीनिया की मदद करके सामरिक और कूटनीतिक संतुलन बनाने का प्रयास कर रहा है। कुल मिलाकर आर्मीनिया और अजरबैजान के युद्ध से भारत को प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष कोई खतरा नहीं है, लेकिन भारत विरोधी इस गुट को भारत चुप बैठकर भी नहीं देख सकता।

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