है रात आज की मेराज-ए-मुस्तफा के लिए…
ईद मेराजुन नबी पर सजाई गई जश्न की महफिल, मस्जिदों व इबादतगाहों में की गई रोशनी
प्रयागराज (आलोक गुप्ता). पैग़ंबरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद-ए-मुस्तफा के माहे रजब की छब्बीस को मेराज पर जाने की खुशी में मुस्लिम बाहुल इलाकों में रातभर जश्न का माहौल रहा। उम्मुल बनीन सोसाइटी के महासचिव सैय्यद मोहम्मद अस्करी ने बताया कि एक दिन पहले से ही मस्जिदों में रंग-रोगन कराकर रंगीन विद्युत झालरों से सजावट की गई थी।
करैला बाग़ में शायर हसनैन मुस्तफाबादी की ओर से जश्न की महफिल सजाई गई, जिसमें दो दर्जन से अधिक शायरों ने महफिल में अपने तास्सुरात का इज़हार किया। क़मर दरियाबादी की निज़ामत में हुई महफिल में शायर हाशिम बांदवी ने पढ़ा- रवॉ है अहमदे मुरसल का नूर सुए फ़लक, सितारे तरसा किए अपनी ही ज़ेया के लिए। जबकि हसनैन मुस्तफाबादी ने अपने अंदाज में पढ़ा- बंदा कोई इस शान का देखा न सुना है, क़ौसैन पे कौनैन का सुल्तान गया है, सुनकार वाहवाही लूटी।
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इसी क्रम में शायर रुस्तम साबरी ने अपने तास्सुरात का इज़हार करते हुए अपने इस अश्आर पर जमकर दाद बटोरी। उनकी लाइन – ‘ऐसे कोई जा सकता नहीं अर्श ए बरीं पर, खालिक़ के बुलाने पे ये मेहमान गया है’, पर खूब तालियां बजीं। इसी क्रम में शायर रौनको सफीपुरी ने पढ़ा -है अर्शे बरीं ज़ेरे क़दम मेरे नबी के, अब सोचिए क़द कितना मुहम्मद का बड़ा है। इसी तरह महफिल के अंत में मौलाना मोहम्मद अली गौहर ने ईद मेराजुन नबी पर तफसीली तक़रीर की।
शायर आज़म मेरठी, ज़मीर भोपतपुरी, ज़की अहसन, फय्याज़ रायबरैलवी, रौनक़ सफीपुरी, बाबर ज़हीर दरियाबादी, शाहिद मुस्तफाबादी, ऊरुज ग़ाज़ीपुरी, जलाल सिरसिवी, मौलाना आमिरुर रिज़वी, इतरत नक़वी, हाशिम बांदवी, रुस्तम साबरी, फरमूद इलाहाबादी, इरफान लखनवी, आरिज़ मुस्तफाबादी, शमशाद मुस्तफाबादी समेत अन्य मुक़ामी व ग़ैर मुक़ामी शायरों ने शान ए मुस्तफा में क़सीदे पढ़ें। इस मौके पर रिफाक़त हुसैन, शाहिद मुस्तफाबादी, सैय्यद फ़ैज़ हसनैन, सैय्यद मोहम्मद अस्करी आदि शामिल रहे।