महान समाज सुधारक थे महाकवि सुब्रमण्यम स्वामीः भारती भाषा दिवस के रूप में मना जन्मदिन
भदोही (कृष्ण कुमार द्विवेदी). कंपोजिट विद्यालय ज्ञानपुर में आजादी के अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में रविवार को महाकवि सुब्रमण्यम भारती का जन्मदिन भारती भाषा दिवस के रूप में मनाया गया। भारती भाषा दिवस मनाने का उद्देश्य विभिन्न भारतीय भाषाओं की विरासत को एकता में पिरोते हुए उन्हें समृद्ध करना है। इस अवसर पर विद्यालय में पूरे उत्साह के साथ स्काउट गाइड के बच्चों के साथ भारती भाषा दिवस का आयोजन किया गया।
शिक्षक अखिलेश कुमार ने बताया कि सुब्रमण्यम भारती का जन्म तमिलनाडु के गाँव एट्टायपुरम में एक ब्राह्मण परिवार में 11 दिसंबर, 1882 में हुआ। वह बचपन से ही बहुत प्रतिभाशाली थे, इसीलिये वहां के तत्कालीन राजा के द्वारा उन्हें भारती उपाधि दी गई। बचपन में ही उनके माता-पिता का देहांत हो गया। प्रारंभिक शिक्षा के बाद वह काशी चले आए। सुब्रमण्यम स्वामी एक स्वतंत्रता सेनानी, उत्कृष्ट पत्रकार व समाजसुधारक थे। उन्होंने बहुत सी पत्रिकाओं में देश भक्ति गीत और देश की आज़ादी के लिए लेख लिखे। वे जीवन पर्यंत देश की स्वतंत्रता व एकता के लिए प्रयासरत रहे। 11 सितंबर, 1921 में उनका देहांत हो गया।
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शिक्षक मानिकचंद्र यादव ने कहा, महाकवि सुब्रमण्यम भारती को महाकवि भारतियार के रूप में जाना है। ये नाम उन्हें देश की एकता व अखंडता के साथ देश की आज़ादी के लिए जीवन पर्यंत लड़ते रहने के लिए दिया गया। कहा, सुब्रमण्यम स्वामी विद्वान साहित्यकार, तमिल, हिंदी, संस्कृत, अंग्रेजी, फ्रेंच, अरबी, उर्दू के ज्ञाता थे। उन्होंने देश की स्वतंत्रता, एकता, समाज सुधारक, नारी सशक्तिकरण के लिए भी अमूल्य योगदान दिया। उन्होंने तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, पाण्डिचेरी तक भ्रमण कर विभिन्न भारतीय भाषाओं में देशभक्ति गीत देश भक्ति आधारित लेख लिखे।
जातिवाद के घोर विरोधी सुब्रमण्यम स्वामी ने एक दलित को दीक्षा देकर ब्राह्मण बनाया। नारी के उत्थान के लिए भी वह हमेशा समर्पित रहे। उनकी इसी छवि के कारण उनके जन्मदिन को भारती भाषा दिवस के रूप में मनाया जा रहा है। जिससे विभिन्न भारतीय भाषाओँ व संस्कृति की प्रगाढ़ता बढ़ाई जा सके, आने वाली पीढ़ी भी हमारी विभिन्न भाषाओं व संस्कृतियों से आबद्ध रहे। कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक सैंकड़ों भाषाओं, संस्कृतियों के बावजूद हम अपनी एकता का डंका पूरे विश्व मे बजाते हुए देश को विश्व गुरु बना सकें।