अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है ब्रह्मज्ञानः निरंकारी संत सूरजप्रकाश
भदोही (संजय सिंह). ब्रह्म ज्ञान का उजाला आता है तो अंधेरा स्वतः साफ हो जाता है। ब्रह्मज्ञान मानव को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है। ब्रह्मज्ञान के बाद ही जीवन में आनंद की प्राप्ति होती है। उक्त उद्गार गोपीगंज पड़ाव स्टेशन रोड पर स्थित स्वामी विवेकानंद इंटर कालेज के पास में आयोजित विशेष सत्संग कार्यक्रम में निरंकारी संत सूरज प्रकाश ने व्यक्त किया।
अमृतसर से आए निरंकारी संत केंद्रीय प्रचारक सूरज प्रकाश कहा कि सद्गुरु के बिना ब्रह्म ज्ञान प्राप्ति नहीं हो सकती। सत्य की जानकारी जिसे हम ईश्वर, निराकार, गॉड, वाहेगुरु इत्यादि नामों से पुकारते हैं। इसी सच्चे सौदे की सबको जरूरत होती है। जीव को जिस प्रकार की जिज्ञासा होती है, ईश्वर उसी प्रकार से हर जीव को प्रेरणा देने लगता है। चाहे वह सतोगुणी हो, रजोगुणी हो या फिर तमोगुणी हो, निम्न स्तर से लेकर के उच्च से उच्च स्तर तक जीव आत्मा के रूप में क्यों न हो? केवल और केवल परमात्मा ही दयावान है। ब्रह्मज्ञान मानव को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है। ब्रह्म ज्ञान के बाद ही जीवन में आनंद की प्राप्ति होती है। सत्संग में इस सत्य के संग द्वारा हमारे जन्मों-जन्मों की मैल साफ हो जाती है।
उन्होंने आगे कहा कि आज हमें निरंकारी सतगुरु माता सुदीक्षा महाराज के वचनों पर चलने की जरूरत है। भक्ति का आरंभ तभी होता है, जब जीवन में सद्गुरु आता है। मनुष्य अपने जीवन में तीनों मार्गों से होकर गुजरता है। अर्थात जो मनुष्य हमेशा गिले-शिकवे करता है उसका जीवन हमेशा अंधकार से अंधकार की ओर जाता है। जो हर समय परमात्मा का शुकराना करता है, उसका जीवन अंधकार से प्रकाश की ओर जाता है। जैसे किसी समुद्र के जहाज पर कोई पक्षी बैठा हो और फिर उड़ान भरने के बाद वह चाहे जितनी दूर जाए, उसे घूम फिरकर उसी जहाज पर ही आना पड़ता है, ठीक इसी प्रकार से यह परमात्मा रूपी जीव प्रकृति के आवरण में फंसकर बेबस पड़ी हुई है।
अंत में उन्होंने कहा कि जैसे एक घड़े में जो चंद्रमा दिखता है, वैसे ही छोटे-बड़े बहुत सारे घड़े में भी वही चंद्रमा ही दिखता है। ठीक इसी प्रकार से परमात्मा अनंत है। जो गुरु के दर पर आते हैं वो जीवन जीने की कला सीख जाते हैं। इस कार्यक्रम में प्रयागराज जोन के जोनल इंचार्ज अशोक कुमार सचदेव, भदोही संयोजक राजेश कुमार, स्थानीय सेवादल संचालक राकेश आदि मौजूद रहे। अंत में महात्मा लालजी ने सभी के प्रति आभार व्यक्त किया।