भदोही (संजय सिंह). पर्यावरण संरक्षण अभियान के तहत ईंट-भट्ठों के अतिरिक्त पुराने घरों की दीवारों पर अक्सर पीपल, पाकड़, बरगद, गूलर इत्यादि के पौधे स्वत: उग आते हैं। ऐसे पौधों को धीरे-धीरे जड़ सहित उखाड़ कर घर लाकर उन्हें अगरबत्ती, नमकीन बिस्किट आदि की अनुपयोगी प्लास्टिक की थैली में रोपित करें और संरक्षित करें।
यह प्रक्रिया अब मेरी दिनचर्या का हिस्सा बन गई है। जब इस तरह का पौधा बड़ा हो जाता है तो इनको सुरक्षित स्थानों पर लगा देता हूं। यह बातें अनवरत पौधरोपण कर रहे शिक्षक अशोक कुमार गुप्ता ने कही।
उन्होंने कहा, इस प्रकार एक लावारिस पौधे को भी जीवन मिल जाता है और उसका जीवन बचा कर हम अपना जीवन बचाने का प्रयास करते हैं। यही प्रकृति का नियम है। आज हम उस पौधे की जान बचा रहे हैं, बड़ा होकर वहीं पौधा प्राणवायु देकर के हम सबकी जान बचाता है। राष्ट्रपति पुरस्कार से पुरस्कृत शिक्षक अशोक कुमार गुप्ता ने बताया कि विगत सात वर्ष से अनवरत स्वयं के खर्चे से वृक्षारोपण करते आ रहे हैं और इसी पद्धति का प्रयोग कर वह हजारों की संख्या में पौधे लगा चुके हैं।