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रक्षाबंधनः सुखकारी होता है स्वर्ग लोक का भद्रा

11 अगस्त को दिन में दस बजे के बांधी जा सकती है राखी

भदोही (कृष्ण कुमार द्विवेदी). इस बार का रक्षाबंधन का पर्व 11 अगस्त को मनाया जा रहा है। हालांकि तमाम ज्योतिषाचार्यों में इसे लेकर मतैक्य नहीं है। क्योंकि सनातन धर्म में उदया तिथि का बहुत महत्व है और रक्षाबंधन पूर्णिमा को मनाया जाता है। और, श्रावण मास की पूर्णिमा की उदया तिथि 12 अगस्त को पड़ रही है।

गुरुवार, 11 अगस्त को को 9:35 पर पूर्णिमा तिथि लगेगी और 9:35 पर ही भद्रा लगेगा और भद्रा रात 8:35 तक रहेगा। ज्योतिष के जानकार और शिक्षक विनय कुमार मिश्र के अनुसार रात में राखी बांधना निषेध रहता है। दिन में ही राखी बांधी जायेगी। यह भद्रा स्वर्ग लोक का है। ऐसी मान्यता है कि स्वर्ग लोक का भद्रा सुखकारी होता है। इसलिए दिन में 10 बजे के बाद राखी बांधना श्रेयस्कर रहेगा।

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विजय का पर्व है भाई-बहन के स्नेह का प्रतीक रक्षाबंधनः भविष्य पुराण में वर्णन है कि जब देव और दानवों में जब युद्ध शुरू हुआ, तब दानव हावी होने लगे। इंद्रदेव घबड़ाकर देवगुरु बृहस्पति के पास पहुंच गए। वहां बैठीं इंद्र की पत्नी इंद्राणी सब सुन रही थी। उन्होंने रेशम का धागा अभिमंत्रित कर पति के हाथ पर बांध दिया। संयोग से वह श्रावण पूर्णिमा का दिन था। लोगों में विश्वास है कि इंद्रदेव इस लड़ाई में इसी अभिमंत्रित धागे की शक्ति से विजयी हुए। उसी दिन से श्रावण पूर्णिमा के दिन यह धागा बांधने की परंपरा चली आ रही है। यह धागा धन, शक्ति, हर्ष और विजय देने में पूरी तरह समर्थ माना जाता है।

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इस पर्व की प्राचीनता के बारे में उल्लेख है कि एक बार बलि रसातल में चला गया। तब बलि ने अपनी भक्ति के बल से भगवान को दिन-रात अपने समक्ष रहने का वचन ले लिया। भगवान के घर न लौटने से परेशान लक्ष्मीजी को नारदजी ने एक उपाय बताया। उस उपाय का पालन करते हुए माता लक्ष्मी ने राजा बलि के पास जाकर रक्षा बांधकर अपना भाई बना लिया और अपने पति को अपने साथ ले आईं। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी।

इसी तरह विष्णु पुराण के एक प्रसंग में कहा गया है कि श्रावण की पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु ने हयग्रीव के रूप में अवतार लेकर वेदों को ब्रह्मा के लिए फिर से प्राप्त किया था। हयग्रीव को विद्या और बुद्धि का प्रतीक माना जाता है। रक्षाबंधन को  लेकर हमारे धर्मग्रंथों में तमाम उदाहरण हैं।

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