कूनो नेशनल पार्क से प्रधानमंत्री मोदी ने नामीबिया सरकार और वहां के लोगों का जताया आभार
कहा- दशकों पहले टूटी जैव विविधता की कड़ी को आज हमें फिर से जोड़ने का मौका मिला
The live ink desk (भाष्कर मिश्र). अफ्रीकी देश नामीबिया से लाए गए आठ चीतों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कूनो नेशनल पार्क ( श्योपुर, मध्यप्रदेश) में बनाए गए विशेष बाड़े में छोड़ दिया। अपने जन्मदिन के मौके पर भारत की धरती पर चीतों की वापसी के लिए उन्होंने नामीबिया की सरकार और वहां के लोगों का आभार व्यक्त किया। प्रधानमंत्री ने कहा, दशकों पहले जैव विविधता की सदियों पुरानी जो कड़ी टूट गई थी, विलुप्थ हो गई थी, आज हमें फिर से उसे जोड़ने का मौका मिला है।
दशकों बार भारत की धरती पर चीता लौट आए हैं। मैं, यह भी कहूंगा कि इन चीतों के साथ ही भारत की प्रकृति प्रेमी चेतना भी पूरी शक्ति के साथ जागृत हो उठी है। यह दुर्भाग्य रहा कि हमने 1952 चीतों को देश से विलुप्त घोषित कर दिया था। लेकिन उनके पुनर्वास के लिए दशकों तक कोई सार्थक प्रयास नहीं हुआ। आज, आजादी के अमृत काल में अब देश नई ऊर्जा के साथ चीतों के पुनर्वास के लिए जुट गया है। यह बात सही है कि जब प्रकृति और पर्यावरण का संरक्षण होता है तो हमारा भविष्य भी संरक्षित होता है। विकास और समृद्धि के रास्ते भी खुलते हैं।
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उन्होंने कहा, कूनो नेशनल पार्क में जब चीता फिर से दौड़ेंगे तो यहां का ग्रासलैंड, ईको सिस्टम फिर से बहाल होगा। जैव विविधता में और बढ़ोत्तरी होगी। कूनो नेशनल पार्क में छोड़े गए चीतों को देखने केलिए देशवासियों को कुछ महीनों के लिए धैर्य दिखाना होगा। आज यह चीतें, मेहमान बनकर आए हैं, इस क्षेत्र से अंजान हैं। कूनो नेशनल पार्क को यह चीतें अपना घर बना पाएं, इसके लिए हमें इन चीतों को कुछ महीने का समय देना होगा। अंतरराष्ट्रीय गाइडलाइन पर चलते हुए भारत इन चीतों को बसाने की पूरी कोशिश कर रहा है। हमें, अपने प्रयासों को विफल नहीं होने देना है। प्रकृति और पर्यावरण, पशु और पक्षी भारत के लिए केवल सस्टेनिबिलिटी और सुरक्षा के विषय नहीं हैं। हमारे लिए यह हमारी संवेदनशीलता और आध्यात्मिकता का भी आधार हैं।
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प्रधानमंत्री ने कहा, आज 21वीं सदी का भारत पूरी दुनिया को संदेश दे रहा है कि इकोनामी और इकोलाजी कोई विरोधाभासी क्षेत्र नहीं है। पर्यावरण की रक्षा के साथ ही देश की प्रगति भी हो सकती है। यह भारत ने दुनिया को करके दिखाया है। हमारे यहां एशियाई शेरों की संख्या में बड़ा इजाफा हुआ है। इसी तरह आज गुजरात देश में एशियाई शेरों का बड़ा क्षेत्र बनकर उभरा है। इसके पीछे दशकों की मेहनत शोध आधारित नीतियां और जनभागीदारी की महत्वपूर्ण भूमिका है। बाघों की संख्या को दोगुना करने का जो लक्ष्य तय किया गया था, उसे समय से पहले हासिल कर लिया गया।
असम में एक समय एक सींग वाले गैंडों का अस्तित्व खतरे में पड़ गया था, लेकिन आज उनकी संख्या में भी बढ़ोत्तरी हुई है। प्रधानमंत्री ने कहा हाथियों की संख्या भी पिछले कुछ वर्षों में बढ़कर तीस हजार से ज्यादा हो गई है। आज देश में 75 वेटलैंड्स को रामसर साइट्स के रूप में घोषित किया गया है। जिनमें 26 साइट्स पिछले चार वर्षों में ही जोड़ी गई है। देश के इन प्रयासों का प्रभाव आने वाली सदियों तक दिखेगा।