सहयोग से सुशासन और सुशासन से समृद्धि की झलक दिखाती डा. हीरालाल (आईएएस) और कुमुद वर्मा की किताब ‘डायनामिक डीएम’ (Dynamic DM) इन दिनों चर्चा में है। एक प्रशासनिक अधिकारी के कामकाजी संघर्ष और विकास की कहानी लोगों को इस कदर लुभा रही है कि यह आज बेस्ट सेलर (best seller) की श्रेणी में शामिल हो चुकी है।
प्रभात प्रकाशन द्वारा प्रकाशित इस किताब का मूल्य मात्र 250 रूपये है, जिसके मुख्य पृष्ठ पर आईएएस डा. हीरालाल (IAS Hiralal) की तस्वीर उकेरी गई है, जो बिल्कुल सजीव प्रतीत होती है। लाव-लश्कर से दूर, भारत की माटी से जुड़े यह एक ऐसे जिलाधिकारी की कहानी है, जिन्होंने कठिन से कठिन परिस्थिति में भी अपने ईमान से समझौता नहीं किया।
लेखिका ने इनके व्यक्तित्व में विभिन्न गुणों का समावेशन जैसे गरीबों से हमदर्दी, समाज को आगे ले जाने की चाह, नवाचार में रुचि, शिक्षा के स्तर को बढ़ाना, विद्यार्थियों को प्रोत्साहित करना, प्रकृति के संरक्षण को देखकर ही किताब को विभिन्न चैप्टर एवं सब चैप्टरस में विभाजित किया है, ताकि इनके अंदर मौजूदा विभिन्न व्यक्तित्वों को एक समुचित और न्यायोचित जगह मिल सके।
पढ़ने वाला इनके आरंभिक जीवन संघर्ष से लेकर अब तक के कार्यकाल के सारे अनुभवों को आसानी से समझ सकता है। इस किताब में संदेश, प्रस्तावना, आभार, शुभकामनाएं, प्रशंसा एवं बधाइयां सहित कुल अन्य पांच चैप्टर है, साथ ही कुछ उपचैप्टरस भी हैं, जिनमें समाज की विभिन्न मूलभूत समस्याओं का जिक्र तो है ही, साथ ही उनके समाधान एवं उपाय, जो ख़ुद डीएम हीरालाल के द्वारा अपनाएं गए हैं, का विस्तृत जिक्र किया गया है।
एक चैप्टर उनके द्वारा विकसित संकल्पना ‘मॉडल गांव’ पर भी दिया गया है, जिसमें गांव को उपलब्ध संसाधनों के आधार पर विकास के पथ पर आगे ले जाने के तौर-तरीकों पर चर्चा की गई है। आजकल इस मॉडल गांव की परिकल्पना की धूम चारों तरफ है। स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इस मॉडल की सराहना कर चुके है। बांदा जिले में अपनाया गया यह मॉडल अब सभी जिलों एवं गांवों के लिए आदर्श का पर्याय बन गया है, जिसे अब अन्य जिलों में भी इनके सहयोग एवं मार्गदर्शन से लागू किया जा रहा है।
183 पृष्ठ की यह पुस्तक अपने भीतर पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन से लेकर सुशासन तक, नेतृत्व क्षमता से लेकर ऑफिसर की सहजता तक, पिछड़ापन से लेकर आधुनिकीकरण तक कई बारीकियां समेटे हुए है। यह किताब सिविल सेवा की तैयारी में जुटे छात्रों के लिए तो उपयोगी है ही, साथ ही उन सभी छोटे-बड़े प्रशासनिक अधिकारियों के लिए भी लाभप्रद है, जिनके भीतर आत्मविश्वास की कमी है और जो व्यवस्था के आगे घुटने टेक देते हैं।
सरकार के साथ प्रशासन और प्रशासन के साथ जनता की भागीदारी कैसे सुनिश्चित हो, इसकी व्याख्या इस किताब की एक अन्य उपलब्धि के रूप में देखी और समझी जा सकती है।
पानी और कुपोषण की समस्या, चुनाव में जनता की भागीदारी बढ़ाना, प्रकृति और पेड़ों का संरक्षण, योग, छात्रों का विकास, किसानों की आय बढ़ाना, जैसी तमाम छोटी-बड़ी समस्याओं का विवरण और निवारण देकर डा. हीरालाल (IAS Hiralal) ने न सिर्फ आने वाली पीढ़ियों, बल्कि उन सभी प्रशासनिक पदाधिकारियों का भी पथ प्रदर्शन किया है, जो या तो संसाधनों की कमी का रोना रोकर विकास को बाधित करते हैं या फिर सिस्टम को विकास में बाधक बताकर विकास कार्य को आगे बढ़ाने से रोकते हैं।
यह किताब हमें एक परिवर्तन के दौर की ओर आगे बढ़ने को प्रेरित करती है। यह पुस्तक उन अधिकारियों के लिए एक सबक है, जो सरकारी नौकरी में आते तो हैं जनता की मदद करने, मगर पद और प्रतिष्ठा के नशे में चूर होकर जनता का सेवक बनना तो दूर उनसे मिलना और बात करना भी पसंद नहीं करते। अपनी सारी जिंदगी यह साबित करने में बिता देते हैं कि सरकारी ऑफिसर का अर्थ होता है रौब और पॉवर।
लेखनः शालिनी सिन्हा (पूर्व-रिसर्च एसोसिएट-केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान, लखनऊ, गेस्ट फैकल्टी-एज़ाज़ रिज़्वी कॉलेज ऑफ जर्नलिज्म एवं फ्रीलांस लेखिका)