बेटों की खुशहाली के लिए रखा व्रतः महुआ और तिन्नी का चावल खाकर बिताया दिन
प्रयागराज (आलोक गुप्ता). मंगलवार को हल छठ (भादौं छठ) का पर्व उल्लास के साथ मनाया गया। महिलाओं ने बेटों की खुशहाली के लिए व्रत रखा और फलाहार के स्थान पर बिना जोते-बोले में उगने वाले खाद्य पदार्थों का सेवन किया। यहां बिना जोते-बोए का मतलब जिसकी खेती न की जाती हो, से है। हल छठ पूजा के मौके पर महुआ, तिन्नी का चावल (फसही का चावल), करेमुआ का साग, भैंस के दूध-दही की खूब डिमांड रही।
हल छठ पर्व को लेकर जिले में अलग-अलग स्वरूप में मनाया जाता है। जिले के पूर्वी क्षेत्र (गंगापार) के ग्रामीणांचल में महिलाओं ने सामूहिक पूजा की। गांव की महिलाओं ने परंपरागत स्वरूप में तालाब किनारे एकत्र होकर छठी मइया कीपूजा की तो दूसरी तरफ शहरी, यमुनापार और पश्चिमांचल में लोगों ने घरों में एक छोटे तालाब का निर्माण किया। जिनके पास कच्ची जमीन नहीं थी, उन्होंने तालाब बनाने के लिए किसी बड़े बर्तन का इस्तेमाल किया।
बहुत से स्थानों में आसपास के साफ-स्वच्छ तालाबों के पानी का इस्तेमाल किया गया। इस पूजा में कुश और छ्यूल के पत्ते का भी महत्व है। जिनका उपयोग पूजा में किया जाता है। महिलाओं ने विधि-विधान से छठ की पूजा की, साथ ही छठ पर्व की कथा भी सुनी। हलछठ पूजा के साथ ही महिलाओं ने पुत्र की दीर्घायु की कामना की। पूजन के उपरांत महिलाएं कुश में छह गांठ भी लगाई।
पूजन के उपरांत घर के सभी सदस्यों का उसी तालाब के पानी से हाथ-पैर धुलवाया गया और काजल भी लगाया गया। पंडित त्रियुगीकांत मिश्र कहते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव से ठीक पहले भाद्रपद के कृष्ण पक्ष को हलधर बलराम के जन्म पर हल न चलाकर कृषक परिवारों में हल की पूजा करने की परंपरा है।
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मंगलवार को जनपद के कोरांव, मेजा, मांडा, करछना, जारी, जसरा, कौंधियारा, शंकरगढ़, शिवराजपुर, नैनी, हंडिया, फूलपुर, सैदाबाद, हनुमानगंज, बहरिया, सहसों, थरवई, फाफामऊ, मऊआइमा, सोरांव, शिवगढ़, नवाबगंज, मंसूराबाद, लालगोपालगंज में भी हल छठ पूजा की धूम देखने को मिली। बाजारों में चीनी के बने खिलौने, मिट्टी के दीए, बर्तन, कुश, छ्यूल के पत्तों की बिक्री देखी गई।