प्रयागराज (आलोक गुप्ता). न्यायमूर्ति राहुल चतुर्वेदी ने कहा तीर्थराज प्रयाग, विश्व में एक अद्भुत भौगोलिक संरचना थी। जहां तीन तरफ नदियां मिलकर एक त्रिकोण भूमि, टापू बीच में बनाती थी। गुरुओं, ऋषियों के कारण इस स्थान का प्रथम नाम तीर्थराज था। जीवन जीने की कला, खेती विकसित होने के कारण यहां अनेक यज्ञ हुए और बाद में इसका नाम प्रयाग हुआ।
प्रयागराज के वैदिक एवं पौराणिक तीर्थ और माधव पर आयोजित गोष्ठी को संबोधित करते हुए मुख्य अतिथि न्यायमूर्ति राहुल चतुर्वेदी ने कहा कि ऋषियों, मनीषियों के कारण यह स्थान तीर्थराज था। प्रयागराज के सारे तीरथ और आश्रम अगर महाकुंभ के पहले स्थापित होंगे तो प्रयागराज की गरिमा और बढ़ेगी। इस गोष्ठी का आयोजन केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के गंगानाथ झा परिसर में किया गया था।
प्रयागराज के वैदिक और पौराणिक तीर्थ की खोज करने वाले प्रयागराज विद्वत परिषद के समन्वयक वीरेंद्र पाठक ने बताया कि प्रयाग में गंगा पश्चिम वाहिनी होकर यमुना में मिलती थीं। इस तरह एक सम त्रिभुज बन जाता था। यही त्रिकोण भूमि के कारण इस स्थान पर छह तट थे। इन्हीं तट पर प्रयागराज के तीर्थ और ऋषियों के आश्रम भी थे। यहां पर वशिष्ठ का आश्रम था। परशुराम का आश्रम था। महर्षि भारद्वाज विश्वामित्र दुर्वासा का आश्रम था। कुबेर और यम का स्थान भी यहीं था।
उनका मानना है कि जल ही यहां तीर्थ है। अक्षय वट मूल स्थान, जिसके पत्ते पर विष्णु के बाल रूप का वर्णन मिलता है प्रयागराज के देवता विष्णु माधव स्वरूप में यहां विराजमान है। तीन माधव वट के मूल और दाएं-बाएं और आठ माधव 8 दिशाओं में जल के किनारे विराजते हैं। इनके साथ ही इनकी जोगणिया भी यहां पर विराजती हैं। वेणी माधव गंगा और यमुना के संधि स्थान पर लक्ष्मी के साथ विराजते हैं।
दिशाओं के अनुसार ही इन्हीं गंगा और यमुना के तट पर वरुण, इंद्र, यमराज, कुबेर, सूर्य आदि गणेश सहित सभी देवता विराजते हैं। उन्होंने शास्त्रों में प्रयागराज की भौगोलिक स्थिति और आधुनिक तकनीक सैटेलाइट पिक्चर्स के जरिए यह साबित किया कि प्रयाग से लेकर चित्रकूट तक धरती ऊंची होती चली जा रही है। इसी तरह संगम से खागा तक भूमि ऊंची हो रही है। ऐसे में संगम वर्तमान स्थान के आसपास ही था न कि किसी अन्य स्थान पर।
उन्होंने सैटेलाइट पिक्चर्स के जरिए यह साबित किया कि बक्शी बांध बनने के बाद और किला के निर्माण के बाद गंगा की वर्तमान धारा का स्वरूप आया है। संगम का बदलाव थोड़ा ही हुआ है।
उन्होंने सैटेलाइट इमेज के जरिए प्रयागराज की सीमा पर तीन संरचनाओं को दिखाया, जिसमें नागवासुकि, तक्षक तीर्थ और सोमेश्वर तीर्थ, त्रिभुज के बिंदु के रूप में हैं। तीनों की दूरी एक समान है और तीनों की दूरी कुल पांच कोश है।
अध्यक्षता कर रहे केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के निदेशक प्रोफेसर ललित त्रिपाठी ने कहा कि निश्चित ही ऋषियों, मनीषियों के इस क्षेत्र में रहने के कारण इसका प्रथम नाम तीर्थराज है। उन्होंने गंगा और यमुना के संगम तथा यहां के तीर्थ के महिमामंडन की बात कही। उन्होंने कहा कि मुख्य वक्ता ने हमारे लिए कई शोध के आयाम खोल दिए हैं। उनसे सार्वजनिक रूप से को गाइड के रूप में प्रस्ताव करता हूं, जिससे इस पर कई शोध किया जा सके।
प्रोफेसर के बी पांडेय ने यहां के ऋषियों की महिमा का बखान किया, साथ ही महर्षि भारद्वाज के बारे में बताया कि यहां पर महर्षि भारद्वाज जैसे अनेक गुरुकुल थे, इसीलिए इसे तीर्थराज कहा गया।
‘माधव और उनके स्थान’ पुस्तक का विमोचन
गोष्ठी की शुरुआत में प्रयागराज में माधव और उनके स्थान नामक एक पुस्तक का विमोचन हुआ। इसमें 12 माधव के शास्त्रीय वर्णन को प्रकाशित किया गया है। कौन-कौन माधव हैं। वह कहां विराजते हैं और उनके साथ उनका महात्म्य क्या है। उल्लेखनीय है कि 1900 के बाद की पुस्तकों में शास्त्रीय आधार नहीं लिया गया है। और जगह-जगह मंदिर बताए गए हैं। जबकि शास्त्रीय आधार के अनुसार पवित्र गंगा जमुना के संधि स्थल और अक्षय वट की आठ दिशाओं में गंगा और यमुना के तट पर 12 माधव विराजते हैं।
अपर नगर आयुक्त ने दी नीतियोंकी जानकारी
अपर नगर आयुक्त दीपेंद्र ने सरकार की नीतियों की जानकारी दी और कहा कि किस तरह से स्वच्छता और पर्यावरण के लिए हम प्रयागवासी महाकुंभ के पहले कार्य कर सकते हैं। कार्यक्रम में विद्वत परिषद के रामनरेश पिण्डीवासा, शैलेंद्र अवस्थी, बृजेंद्र मिश्र, राजेंद्र पांडेय, भोला तिवारी, शरद पांडेय, अभिषेक मिश्र, विक्रम मालवीय, अनिल पांडेय, प्रमोद शुक्ल, अमित मिश्र, रघुनाथ द्विवेदी, आरव भारद्वाज, अनुराग द्विवेदी, ऊषा पांडेय, दामोदर दास मौजूद रहे। संचालन धीरज मिश्र ने किया।