अवध

चुप ताज़िया व अमारी जुलूस के साथ खत्म हुआ अय्यामे अज़ा

कल मनाई जाएगी ईद-ए-ज़हरा, जगह-जगह सजेगी जश्न की महफिल

इमामबाड़़ा मिर्ज़ा नक़ी बेग से भारी बारिश के बीच निकला चुप ताज़िए का जुलूस

प्रयागराज (आलोक गुप्ता). माहे मोहर्रम के चांद के दीदार के साथ करबला के 72 शहीदों की याद में 68 दिवसीय ग़म का सिलसिला आज चुप ताज़िया व अमारी जुलूस निकलने के साथ खत्म हो गया। माहे रबीउल अव्वल की आठवीं को इमाम हसन अस्करी की शहादत पर अय्यामे अज़ा का अंतिम जुलूस निकाला गया। बशीर हुसैन की सरपरस्ती में रानीमंडी के चकय्या नीम स्थित इमामबाड़़ा मिर्ज़ा नक़ी बेग में सुबह नौबजे चुप ताज़िया की मजलिस हुई। ज़ैग़म अब्बास ने मर्सिया पढ़ी तो ज़ाकिरे अहलेबैत रज़ा अब्बास ज़ैदी ने मजलिस को खेताब करते हुए रसूले खुदा, फात्मा ज़हरा और वक़्त के इमाम को शहीदों का पुरसा पेश किया।

मजलिस में ग़मगीन मसाएब सुन कर अक़ीदतमंदों की आँखें छलछला आईं। अंजुमन हैदरिया रानीमंडी के नौहाख्वानों हसन रिज़वी, अब्बन भाई व अन्य साथियों ने ग़मगीन नौहे पढ़े। उम्मुल बनीन सोसाइटी के महासचिव सैय्यद मोहम्मद अस्करी ने बताया, भारी बारिश के बावजूद अक़ीदतमंदों में अय्यामे अज़ा को अलवेदा कहने का अलग जज्बा देखने को मिला। जुलूस रानीमंडी, बच्चाजी धर्मशाला, चड्ढ़ा रोड, कोतवाली, नखास कोहना, खुल्दाबाद, हिम्मतगंज से चकिया करबला पर पहुंचकर समाप्त हुआ। असद हुसैन, बब्बू भाई, हैदर बशीर, समर, ज़हीर आदि जुलूस में शामिल चुप ताज़िए के आगे सुगंधित लोबान (लोहबान) की धूनी जलाते चल रहे थे।

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अमारी जुलूस में दर्जनों मातमी अंजुमनें हुईं शामिलः दरियाबाद के ऐतिहासिक बंगले के नाम से विख्यात इमामबाड़ा से सैकड़ों वर्ष पुराना अख्तर रज़ा खाँ की ओर से उठने वाला अमारी जुलूस दो वर्ष की कोरोना बंदिशों के खत्म होने पर इस वर्ष तुराब हैदर की देखरेख में निकाला गया। निर्धारित समय पर मौलाना की तक़रीर के बाद मातमी अंजुमनों के नौहों और मातम के साथ जुलूस निकलने का सिलसिला शुरु हुआ। पहले से तय तरतीब के अनुसार सबसे पहले अंजुमन शब्बीरिया, दूसरे नंबर पर अंजुमन मज़लूमिया, तीसरे पर अंजुमन गुंचा ए क़ासिमया, चौथे पर अंजुमन अब्बासिया, पांचवें पर हुसैनिया क़दीम और सबसे आखिर में अंजुमन हाशिमया सभी तबर्रुक़ात के साथ जुलूस के विभिन्न इलाक़ों में गश्त के बाद इमामबाड़़ा अरब अली खाँ पर पहुंचे, जहां एक-एक अंजुमनों ने नम आँखों के साथ हुसैन ए मज़लूम को अलवेदा कहा।

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साढ़े चार सौ सदस्यों के साथ कहा, अलवेदा हुसैनः अय्यामे अज़ा के आखिरी दिन अंजुमन गुंचा ए क़ासिमया सेक्रेटरी मिर्ज़ा अज़ादार हुसैन की सरपरस्ती में साढ़े चार सौ सदस्यों के साथ दरियाबाद के अमारी जुलूस में शामिल होकर नौहों और मातम की सदाओं के साथ अलवेदा या हुसैन कह कर करबला के शहीदों को पुरसा पेश किया। नौहाख्वानों शादाब ज़मन, अस्करी अब्बास, अखलाक़ रज़ा, यासिर ज़ैदी, ज़हीर अब्बास, एजाज़ नक़वी, कामरान रिज़वी, शबीह रिज़वी, अली रज़ा रिज़वी, अकबर रिज़वी, ज़ीशान बाँदवी, कुमैल, असद, ज़ीशान भदौरवी, हैदर मेंहदी, अयाज़ रज़ा, रज़ा भदौरवी आदि के नौहों करबला में सोने वालों महापारों अलवेदा हो रहा है, हम से रुखसत माहे ग़म माहे अज़ा, ऐ अज़ादाराने मौला तुम पुकारो अलवेदा, पढ़कर नम आँखों माहे ग़म को अलवेदा कहा।

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