पूर्वांचल

जलधारा के साथ शिव को अर्पित करें बिल्वपत्र, पूरी होगी मनोकामना

प्रयागराज/भदोही. 17 जुलाई, 2023 को सावन महीने का दूसरा सोमवार पड़ रहा है। सावन महीना देवों के देव महादेव को समर्पित माना जाता है। सावन के दिनों में पूजन-अर्चन के लिए सोमवार का विशेष महत्व है। मान्यता है कि सावन मास में शिवलिंग पर बेलपत्र (बिल्वपत्र), धतूरा, भांग, दूध और जल अर्पित करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। भक्त, भोलेनाथ की विशेष कृपा पाने के लिए सोमवार व्रत भी रखते हैं।

भगवान शिव की अराधना के लिए सावन मास सबसे उत्तम माना गया है। शिवपुराण के अनुसार, सावन में हर दिन सच्चे मन से भगवान शंकर की पूजा करने से अमोघ फल की प्राप्ति होती है।  भगवान शिव की पूजा से जीवन में आने वाले दुख, कष्टों और परेशानियों का अंत होता है।

पंडित त्रियुगीकांत मिश्र कहते हैं कि सावन माह भगवान भोलेनाथ का सबसे प्रिय महीना होता है। इस माह में सोमवार व्रत रखते हुए भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करने पर सभी तरह की मनोकामनाएं जल्द पूरी होती हैं। 16 सोमवार व्रत रखने सभी तरह की इच्छाएं भगवान भोलेनाथ अवश्य ही पूरी करते हैं।

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सावन के दूसरे सोमवार पर भी इस बार  कई तरह के शुभ योग बन रहे हैं। ऐसे में भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा उपासना करने का विशेष लाभ प्राप्त होगा। माना जाता है कि भगवान शिव को बेलपत्र बहुत ही प्रिय होता है। इसी कारण से शिव आराधना में बेलपत्र को जरूर अर्पित किया जाता है।  शास्त्रों में बेलपत्र को चढ़ाने के कुछ नियम भी बताए गए हैं। जिनका पालन करने पर भगवान शिव की पूजा सफल मानी जाती है।

पंडित त्रियुगीकांत मिश्र ने बताया कि भगवान शिव को हमेशा उल्टा बेलपत्र यानी चिकनी सतह की तरफ वाला भाग स्पर्श कराते हुए ही बेलपत्र चढ़ाना चाहिए। बेलपत्र को हमेशा अनामिका, अंगूठे और मध्यमा अंगुली की मदद से चढ़ाएं एवं मध्य वाली पत्ती को पकड़कर शिवजी को अर्पित करना चाहिए। महादेव को कभी भी सिर्फ बिल्वपत्र अर्पण नहीं करना चाहिए। बेलपत्र के साथ जल की धारा जरूर चढ़ानी चाहिए।

बेलपत्र की तीन पत्तियां ही भगवान शिव को चढ़ती है। कटी-फटी पत्तियां अर्पित नहीं की जाती हैं। कुछ तिथियों को बेलपत्र तोड़ना वर्जित होता है। जैसे कि चतुर्थी, अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी और अमावस्या को, संक्रांति के समय और सोमवार को बेल पत्र नहीं तोड़ना चाहिए। ऐसे में पूजा से एक दिन पूर्व ही बेल पत्र तोड़कर रख लिया जाता है। बेलपत्र कभी अशुद्ध नहीं होता। पहले से चढ़ाया हुआ बेलपत्र भी फिर से धोकर चढ़ाया जा सकता है।

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