भारत की इस सांस्कृतिक विरासत को यूनेस्को (UNESCO) दी विश्व धरोहरों की सूची में जगह
The live ink desk. पाटकाई पर्वतमाला की तलहटी (असम) में चराईदेव ताई-अहोम विरासत (अहोम रजवंश) का एक गहरा प्रतीक बना हुआ है, जो उनकी मान्यताओं, अनुष्ठानों और स्थापत्य कौशल को दर्शाता है। सदियों से चली आ रही शाही अंत्येष्टि से निर्मित परिदृश्य के रूप में, यह आज भी विस्मय और श्रद्धा को प्रेरित करता है।
ताई-अहोम (Ahom dynasty) के सांस्कृतिक विकास और आध्यात्मिक विश्व दृष्टिकोण के बारे में अंतर्दृष्टि प्रदान करता है। सावधानीपूर्वक संरक्षण प्रयासों के माध्यम से संरक्षित, चराईदेव ब्रह्मपुत्र नदी घाटी में ताई-अहोम सभ्यता की स्थायी विरासत का प्रमाण है। चराईदेव के मोईदाम न केवल वास्तुशिल्प और सांस्कृतिक महत्व को दर्शाते हैं, बल्कि ताई-अहोम लोगों के अपनी भूमि और अपने दिवंगत राजाओं के साथ गहरे आध्यात्मिक संबंध की मार्मिक याद भी दिलाते हैं।
भारत में हो रही यूनेस्को (UNESCO) की 46वीं विश्व धरोहर समिति की बैठक में भारत की इस सांस्कृतिक विरासत चराईदेव मोईदाम को विश्व धरोहर स्थल (सांस्कृतिक श्रेणी में) के रूप में नामित किया गया। चराईदेव मोईदाम, असम में शासन करने वाले अहोम राजवंश के सदस्यों के नश्वर अवशेषों को दफनाने की प्रक्रिया थी। यह यूनेस्को द्वारा सूचीबद्ध भारत का 43वाँ विश्व धरोहर (World Heritage) स्थल बन गया है।
चीन से आकर ताई-अहोम राजवंश (Ahom dynasty) ने 12वीं से 18वीं शताब्दी ईस्वी तक ब्रह्मपुत्र नदी घाटी के विभिन्न भागों में अपनी राजधानी स्थापित की। उनमें से सबसे अधिक पवित्र स्थल चराईदेव था, जहां ताई-अहोम ने पाटकाई पर्वतमाला की तलहटी में स्थित में चौ-लुंग सिउ-का-फा के अधीन अपनी पहली राजधानी स्थापित की थी।
यह पवित्र स्थल, जिसे चे-राय-दोई या चे-ताम-दोई के नाम से जाना जाता है, ऐसे अनुष्ठानों के साथ पवित्र किए गए थे जो ताई-अहोम की गहरी आध्यात्मिक मान्यताओं को दर्शाते थे। सदियों से, चराईदेव ने एक टीला शवागार के रूप में अपना महत्व बनाए रखा है, जहां ताई-अहोम राजघरानों की दिवंगत आत्माएं परलोक में चली जाती थीं।
ताई-अहोम (Ahom dynasty) लोगों का मानना था कि उनके राजा दिव्य थे, जिसके कारण एक अनूठी अंत्येष्टि परंपरा स्थापित हुई। राजवंश के सदस्यों के नश्वर अवशेषों को दफनाने के लिए मोईदाम या गुंबददार टीलों का निर्माण किया गया। यह परंपरा 600 वर्षों से चली आ रही है, जिसमें विभिन्न सामग्रियों का उपयोग किया गया। समय के साथ वास्तुकला की तकनीकें विकसित होती रहीं।
शुरुआत में लकड़ी और बाद में पत्थर और पकी हुई ईंटों का इस्तेमाल करके मोईदाम का निर्माण किया गया। यह एक सावधानीपूर्वक की जाने वाली प्रक्रिया थी, जिसका विवरण चांगरुंग फुकन में दिया गया है, जो अहोमों का एक प्रामाणिक ग्रंथ है। शाही अंतिम संस्कार से जुड़ी रस्में बड़ी भव्यता के साथ आयोजित की जाती थीं, जो ताई-अहोम समाज की पदानुक्रमिक संरचना को दर्शाती थीं।
यहां हुए खनन से पता चलता है कि प्रत्येक गुंबददार कक्ष के बीच एक उठा हुआ भाग है, जहाँ शव को रखा जाता था। मृतक द्वारा अपने जीवनकाल में उपयोग की जाने वाली कई वस्तुएं, जैसे शाही प्रतीक चिन्ह, लकड़ी, हाथी दांत या लोहे से बनी वस्तुएं, सोने के पेंडेंट, चीनी मिट्टी के बर्तन, हथियार, वस्त्र (केवल लुक-खा-खुन कबीले से) को उनके राजा के साथ दफनाया दिया जाता था।
मोईदाम में विशेष गुंबददार कक्ष होता है, जो प्रायः दो मंजिला होते हैं, जिन तक मेहराबदार मार्गों से पहुंचा जा सकता है। कक्ष में बीच में उभरे स्थान बने हुए थे, जहां मृतकों को उनके शाही चिन्ह, हथियार और निजी सामानों के साथ दफनाया जाता था। इन टीलों के निर्माण में ईंट, मिट्टी और वनस्पतियों की परतों का इस्तेमाल किया गया, जिससे यहां का परिदृश्य सुंदर पहाड़ियों में बदल गया।
चराईदेव में मोईदाम (Charaideo Moidam) परंपरा की निरंतरता यूनेस्को मानदंडों के तहत इसके उत्कृष्ट सार्वभौमिक मूल्य को रेखांकित करती है। यह अंत्येष्टि स्थल न केवल जीवन, मृत्यु और परलोक के बारे में ताई-अहोम मान्यताओं को दर्शाता है, बल्कि यह उनकी सांस्कृतिक पहचान का भी प्रमाण है, क्योंकि इनकी जनसंख्या का रुझान अब बौद्ध धर्म और हिंदू धर्म की ओर बढ़ रहा है। ताई-अहोमों की अद्वितीय भव्य शाही दफन प्रथाओं को संरक्षित करता है।
20वीं सदी की शुरुआत में खजाने की तलाश करने वालों द्वारा की गई बर्बरता जैसी तमाम चुनौतियों के बावजूद, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण और असम राज्य पुरातत्व विभाग के ठोस प्रयासों ने चोराईदेव की अखंडता को बहाल और संरक्षित किया है। राष्ट्रीय और राज्य कानूनों के तहत संरक्षित, इस स्थल का प्रबंधन इसकी संरचनात्मक और सांस्कृतिक प्रामाणिकता की सुरक्षा के लिए जारी है।
चराईदेव के मोईदाम या मोइदम्स (Charaideo Moidam) की तुलना प्राचीन चीन के शाही मकबरों और मिस्र के फिरौन के पिरामिडों से की जा सकती है, जो स्मारकीय वास्तुकला के माध्यम से शाही वंश को सम्मानित करने और संरक्षित करने के सार्वभौमिक विषयों को दर्शाता है। दक्षिण-पूर्व एशिया और पूर्वोत्तर भारत के कुछ हिस्सों में फैले व्यापक ताई-अहोम सांस्कृतिक क्षेत्र में, चराईदेव अपने स्तर, संकेंद्रण और आध्यात्मिक महत्व के लिए जाना जाता है। Input:PIB
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