आचार्य प्रवर पद्मश्री प्रो. जीसी पांडेय के ‘साहित्यिक एवं सांस्कृतिक अवदान’ पर व्याख्यान, पद्मश्री प्रो. गोविदचंद्र पांडेय स्मृति व्याख्यान में विद्वतजनों ने साझा किया संस्मरण
प्रयागराज (आलोक गुप्ता). निखिल भारतीय इतिहास शोध संस्थान प्रयागराज एवं इतिहास संकलन समिति महाकौशल प्रांत के संयुक्त तत्वावधान में पद्मश्री प्रो. गोविंदचंद्र पांडेय की पुण्यतिथि पर ऑनलाइन व्याख्यान का आयोजन किया गया। व्याख्यान का विषय ‘आचार्य प्रवर प्रो. गोविंदचंद्र पांडेय का साहित्यिक एवं सांस्कृतिक अवदान’ था।
व्याख्यान की अध्यक्षता विक्रम विश्वविद्यालय के प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्त्व विभाग की पूर्व अध्यक्षा प्रो. सुष्मिता पांडेय ने किया। अध्यक्षीय उद्बोधन में उन्होंने कार्यक्रम संयोजक डा. शिवाकांत त्रिपाठी के प्रयासों की सराहना की और प्रोफेसर पांडेय के व्यक्तित्व पर विस्तार से प्रकाश डाला।
रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय जबलपुर के पूर्व कुलपति प्रो. कपिलदेव मिश्र ने स्वयं के आचार, व्यवहार एवं शब्द को अपने गुरुओं की कृति बताते हुए कहा कि ‘मैं ऐसा द्वितीयक स्त्रोत हूं, जिसकी रचना में प्रो. पांडेय प्राथमिक स्त्रोत रहे हैं।’ इलाहाबाद संग्रहालय के सहायक संग्रहालयाध्यक्ष डा. राजेश मिश्र ने प्रो पांडेय के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए उनकी कृतियों में वर्णित आत्मचिंतन के तत्वों एवं प्रयाग से जुड़ी स्मृतियों को आलोकित करते हुए कहा कि ‘कहां से शुरू करूं और कहां से अंत, मूल्य मीमांसा से सौंदर्य दर्शन विमर्श तक, बुद्ध से वेद तक? का कहने का सामर्थ्य मेरे अंदर उनके किए का सहस्त्रांश भी नहीं है’।
मुख्य वक्ता एवं निखिल भारतीय इतिहास शोध संस्थान के संरक्षक प्रो. एचएन दुबे ने अपने गुरु को स्मरण करते हुए गुरु परंपरा की समृद्धता पर प्रकाश डाला। प्रो पांडेय की रचना धर्मिता, इतिहास दृष्टि, भाषाई उत्कृष्टता का वर्णन करते हुए कहा कि ऐसे गुरु का शिष्य होना मेरे लिए सौभाग्य की बात है। प्रो दुबे ने कहा कि हमने सदैव उनके हाथों में किताब, मानस में चिंतन और हम सबके लिए स्नेह देखा। उनकी रचनाधर्मिता न सिर्फ पुस्तकों में अपितु उनके छात्रों में भी देखी जा सकती है।
प्रख्यात पुरातत्वविद् प्रो जेएन पाल ने प्रो. पांडेय के पुरातात्विक ज्ञान पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा कि यह सदैव हम सबके लिए आश्चर्य था कि शिक्षा की कोई विधा इनसे अछूती नहीं रही। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास विभाग की पूर्व अध्यक्षा प्रो. अनामिका रॉय ने अपने बाल्यावस्था से लेकर अकादमिक जीवन के विभिन्न चरणों में प्राप्त हुए प्रो. पांडेय के स्नेहिल सहयोग का स्मरण करते हुए कहा कि पहली बार उन्होंने राजस्थान के कुलपति के रूप में उन्हें देखा था और मैं उनकी सरलता पर आश्चर्यचकित रह गई थी।
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रसिद्ध कला मर्मज्ञ प्रो. मारुति नंदन प्रसाद तिवारी ने उनकी कलाधर्मिता पर प्रकाश डाला। शोध छात्र शिवांश तिवारी ने ‘धर्मज्ञों धर्मकर्ता च सदा धर्मपरायणः’ के रूप में प्रो. पांडेय का स्मरण करते हुए उस परंपरा को प्रणाम किया, जिसके संवाहक प्रो. सुष्मिता पांडेय, प्रो. एचएन दुबे, प्रो. अनामिका रॉय और डा. शिवाकांत त्रिपाठी हैं।
कार्यक्रम का स्वागत उद्बोधन प्रो. प्रवीण मिश्र एवं मंगलाचरण डा. सचिन देव द्विवेदी ने किया। संचालन संयोजक डा. शिवाकांत त्रिपाठी एवं धन्यवाद ज्ञापन डा. प्रज्ञा मिश्रा ने किया। कार्यक्रम में प्रो. सुभाष नाग, प्रो. एपी ओझा, प्रो. आलोक श्रोत्रीय, डा. नीरज कालिया, डा. एमसी गुप्ता, डा. मीनाश्री यादव, डा. मीनू अग्रवाल, डा. मनोज पांडेय, डा. जीनेंद्र जैन, डा. रमेश प्रकाश चतुर्वेदी, डा. अवधेश मिश्र, डा. श्याम नारायण तिवारी, डा. प्रिया तिवारी, डा. आशीष मिश्र, आनंद मिश्र, डा. जीतेंद्र जायसवाल, डा. पंकज कुमार, डा. अजिता ओझा, डा. पीयूष मिश्र, डा. राजेंद्र कुमार, डा. धीरेंद्र सिंह, डा. संतोष गौड़, शिशिरकांत त्रिपाठी, संग्राम सिंह, सत्यम दुबे, गोविंद पांडेय, सत्यम त्रिपाठी विशेष रूप से जुड़े रहे।