घूमने लगे कुम्हारों के चाक, बन रहे मिट्टी के छोटे-बड़े दीये और बर्तन। काली मिट्टी में भूसी मिलाकर तैयार की जाती है मिटटी की खास लोई
प्रयागराज (राहुल सिंह). रोशनी का पर्व दीपावली नजदीक है। बाजारों में अभी से रौनक दिखने लगी है। घरों की साफ-सफाई शुरू हो गई है। गांव-गिरांव में कुम्हारों के चाक की गति भी तेज हो गई है। लकड़ी के चाक पर बने दीयों से ही हमारी दीपावली रोशन होगी।
सदियों से चली आ रही यह भारतीय परंपरा हमारी सामाजिक व्यवस्था का वह अनुपम उदाहरण है, जो अन्यत्र देखने को नहीं मिलती। हालांकि, मशीनीकरण के इस दौर में लकड़ी के चाक पर बने दीयों का महत्व भले ही कम हुआ हो पर गांवों में अभी भी कुम्हारों का हुनर बोलता है, जिससे न सिर्फ हमारे घर-आंगन रोशन होते हैं बल्कि हजारों परिवारों की उम्मीदें भी जिंदा रहती हैं।
कोरांव के मानपुर के रहने वाले कुम्हार भोला प्रजापति अभी भी पारंपरिक आजीविका को जीवित रखे हुए हैं। गुरुवार को जब पूरा गांव गहरी नींद में था, तब वह उठ चुके थे और रात में ही तैयारी करके रखी गई मिट्टी की लोई को चाक के ऊपर रखकर हाथों के हुनर मिट्टी में उतार रहे थे।
भोला प्रजापति ने अपने जीवन का एक लंबा हिस्सा मिट्टी को आकार देने मेंही निकाल दिया। चलती हुई चाक को छोड़कर वह कहते हैं कि इस लकड़ी की चाक ने उन्हे बहुत कुछ दिया है। उनकी उम्मीदें अभी भी जिंदा हैं।
कोरांव क्षेत्र में ऐसे न जाने कितने भोला प्रजापति हैं, जो इस पुश्तैनी रोजगार के सहारे जीवन यापन कर रहे हैं। हालांकि, योगी सरकार में कई परिवारों को इलेक्ट्रानिक चाक का तोहफा भी मिला है, फिर भी बहुतेरे परिवार अभी भी हाथ से चलाई जाने वाली चाक पर निर्भर हैं।
मिट्टी मंगल तो तेल शनिदेव का प्रतीक
कोरांव के रहने वाले पंडित सच्चिदानंद त्रिपाठी कहते हैं, भारतीय संस्कृति और परंपरा में मिट्टी को मंगल स्वरूप माना जाता है, जबकि सरसो के तेल को शनि का प्रतीक। शनि न्याय और भाग्य के भी देवता हैं। दीपावली पर जब मिट्टी के दीये में सरसो का तेल डालकर दीया जलाया जाता है तो मंगल और शनि की कृपादृष्टि मिलती है। यही कारण है कि दीपावली पर अंधकार मिटाने के लिए मिट्टी के दीपक जलाने की परंपरा सदियों से चलीआ रही है।
इस परंपरा को हम भारतीय सदियों से निभाते आ रहे हैं। छोटी दीपावली, बड़ी दीपावली, दीपावली के बाद पड़ने वाली एकादशी पर भी दीयों में सरसो का तेल डालकर रोशनी की जाती है।
योगी सरकार दे रही ट्रेनिंग और टूलकिट
शास्त्रों के मुताबिक, सरसों और घी डालकर मिट्टी का दीपक जलाने से वातावरण शुद्ध होता है और मच्छरों का नाश होता है। हाल के दिनों में मिट्टी के दीयों की मांग हर साल बढ़ती जा रही है। शादी-विवाह में भी अब यदा-कदा भारी आर्डर मिलने लगा है। कुम्हारी पेशे से जुड़े परिवारों केलिए योगी सरकार भी कई योजनाएं चला रही हैं।
इन्ही के तहत कुम्हारों को चयनित कर प्रशिक्षित किया जा रहा है। उन्हे टूलकिट देकर और बेहतर उत्पाद बनाने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। वर्ष में कई बार जिला प्रशासन के द्वारा इस तरह के कार्यक्रम का आयोजन कर कुम्हारी कला को फिर से जीवित करने की कोशिशें जारी हैं।
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