फूलपुर लोकसभाः …तब जवाहरलाल नेहरू के साथ मसुरियादीन भी चुनाव जीतकर पहुंचे थे संसद
प्रयागराज (आलोक गुप्ता). फूलपुर ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण लोकसभा सीट है। यहां से सांसद रहे पंडित जवाहर लाल नेहरू (Jawaharlal Nehru) और राजा मांडा के नाम से मशहूर विश्वनाथ प्रताप सिंह (VP Singh) ने देश की बागडोर भी संभाली।
वर्तमान में विधानसभा फाफामऊ, सोरांव, फूलपुर, इलाहाबाद पश्चिमी और उत्तरी को जोड़कर बनाई गई फूलपुर लोकसभा सीट को पहले आम चुनाव (सन 1951-52) में इलाहाबाद ईस्ट-जौनपुर वेस्ट सीट के नाम से जाना जाता था। हालांकि, साल 1957 के चुनाव में इस सीट (Allahabad District East cum Jaunpur District West) को आज का फूलपुर नाम दिया गया।
फूलपुर लोकसभा (Phulpur Lok Sabha) चुनाव के इतिहास में एक रोचक तथ्य यह भी दर्ज है कि एक समय तक फूलपुर लोकसभा सीट से एक साथ दो-दो सांसद चुने जाते रहे। देश के पहले आम चुनाव 1952 (General election) और दूसरे 1957 में फूलपुर लोकसभा सीट से कांग्रेस के ही टिकट पर दो लोग जीतकर सदन में पहुंचे। इसमें पहला नाम देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू (Jawaharlal Nehru) का है और दूसरे सांसद रहे मसुरियादीन। मसुरियादीन ने भी कांग्रेस के ही टिकट पर चुनाव लड़ था।
दरअसल, 1947 में आजादी के बाद हुए चुनाव में निचले तबके (आरक्षित वर्ग) को प्रतिनिधित्व देने के लिहाज से एक सीट पर दो-दो सांसदों को चुनाव लड़वाया जाता था। खास यह है कि इन सीटों पर मतदाताओं को भी दो-दो मतदान का अधिकार प्राप्त था। मतगणना के पश्चात सबसे ज्यादा मत पाने वाला प्रत्याशी विजयी घोषित होता, जबकि आरक्षित श्रेणी से चुनाव लड़कर सर्वाधिकवोट पाने वाले को भी सांसद चुन लिया जाता था।
पहले आम चुनाव (General election) में कुल 489 लोकसभा सीटों पर चुनाव करवाए गए थे, जिसमें से 89 सीटें ऐसी थीं, जिन पर दो-दो सांसद चुने गए। साल 1957 के चुनाव में भी यह व्यवस्था बनी रही और 57 में 89 के स्थान पर 90 सीटों पर दो-दो सांसद चुने गए।
हालांकि, 1962 के आम चुनाव के पहले ही दो सांसदों के चुने जाने वाली व्यवस्था को चुनाव आयोग ने समाप्त कर दिया। इस तरह एक सीट पर एक से ज्यादा प्रतिनिधि वाली व्यवस्था खत्म हो गई और बाद में 1962 का चुनाव जवाहरलाल नेहरू ने फूलपुर से अकेले जीता।
इसी तरह फूलपुर लोकसभा सीट से पहली बार 1952 में और दूसरी बार 1957 में जवाहरलाल नेहरू के साथ मसुरियादीन (Masuriadin) भी चुनाव जीतकर सदन में पहुंचे थे। जिस समय पहला चुनाव हुआ था, उस समय चुनाव प्रणाली उतनी सशक्त नहीं थी। पहले आम चुनाव में फूलपुर सीट पर कुल 40.21 फीसद मतदाताओं ने वोट डाला था।
कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले जवाहरलाल नेहरू को कुल मतदान का 38.73 फीसद (2,33,571 मत) तो कांग्रेस के ही आरक्षित श्रेणी के दूसरे उम्मीदवार मसुरियादीन (Masuriadin) को 30.13 प्रतिशत मत (1,81,700 मत) प्राप्त हुआ था। पहले स्थान पर जवाहरलाल नेहरू व दूसरे स्थान पर मसुरियादीन को लोकसभा जाने का मौका मिला।
इसी तरह सन 1957 के चुनाव में कांग्रेस के सिंबल पर जवाहरलाल नेहरू 2,27,447 (कुल मतदान का 36.87 प्रतिशत) मत पाकर विजेता बने और दूसरे स्थान पर फिर से मसुरियादीन चुने गए। दूसरे चुनाव में मसुरियादीन को 1,98,431 मत (32.17 फीसद) मत मिले थे।
हालांकि, 80 के दशक के खत्म होते-होते यूपी में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का उदय हो चुका था और इन दोनों पार्टियों का दायरा, पहुंच और पहचान बढ़ने के कारण कांग्रेस ने ‘कांग्रेस का गढ़’ कही जाने वाली फूलपुर लोकसभा सीट को छोड़ दिया।
साल 1984 में फूलपुर सीट से कांग्रेस के टिकट पर रामपूजन पटेल ने चुनाव जीता था। बाद में वह जनता दल में शामिल हो गए और 1989 व 1991 में भी जनता दल के सिंबल पर फूलपुर से सांसद चुने गए। कायदे से यह कहें कि पंडित जवाहरलाल नेहरू (Jawaharlal Nehru) की पीढ़ी के बाद से गांधी परिवार (Gandhi Family) की तरफ से कोई भी यहां चुनाव लड़ने नहीं आया।