प्रयागराज (आलोक गुप्ता). इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रिश्वत लेने के मामले में बर्खास्त (टर्मिनेट) किए गए सब इंस्पेक्टर को फिर से नौकरी पर बहाल करने का आदेश देते हुए कहा, उत्तर प्रदेश अधीनस्थ श्रेणी के पुलिस अधिकारियों की (दंड एवं अपील) नियमावली 1991 के नियम-8 (2) (बी) के प्रावधानों में पर्याप्त साक्ष्य के आधार हों, तो भी बगैर विभागीय कार्रवाई के पुलिसकर्मी की बर्खास्तगी अवैध और नियम-कानून के विरूद्ध है। यह आदेश न्यायमूर्ति सलिल कुमार राय ने पारित किया।
जानकारी के मुताबिक सब इंस्पेक्टर गुलाब सिंह पुलिस स्टेशन इकोटेक, ग्रेटर नोएडा, गौतमबुद्धनगर में उपनिरीक्षक के पद पर कार्यरत था। याची दरोगा के द्वारा धारा 380 आईपीसी की विवेचना की जा रही थी। विवेचना के दौरान प्रकाश में आए अभियुक्त राजीव सरदाना से 27 जनवरी, 2023 को सार्वजनिक रूप से खुले स्थान पर चार लाख रुपये की रिश्वत लेते हुए उसे गिरफ्तार किया गया।
उक्त के संबंध में एसआई गुलाब सिंह के विरूद्ध थाना सूरजपुर (गौतमबुद्धनगर) में धारा 7 भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 का केस लिखा गया।
उक्त मुकदमे में एसआई गुलाबचंद्र को 27 जनवरी, 2023 को गिरफ्तार कर जेल भेजा गया। इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) से जमानत होने के बाद वह 12 मार्च, 2024 को जेल से रिहा हुआ। याची के विरूद्ध 27 जनवरी, 2023 को एंटीकरप्शन टीम द्वारा एफआईआर दर्ज कराई गई और उसी दिन उत्तर प्रदेश अधीनस्थ श्रेणी के पुलिस अधिकारियों की (दंड एवं अपील) नियमावली 1991 के नियम-8 (2) (बी) के प्रावधानों के तहत यह कहते हुए बर्खास्त कर दिया गया कि उसे खुले स्थान पर चार लाख की रिश्वत लेते हुए रंगेहाथ गिरफ्तार किया गया है। इस कारण इस प्रकरण में किसी जांच की आवश्यकता नहीं है
उपनिरीक्षक द्वारा इस प्रकार के कृत से जनमानस में पुलिस विभाग की छवि धूमिल हुई है। इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने कहा है कि बगैर स्पष्ट कारण बताए कि क्यों विभागीय कार्यवाही नहीं की जा सकती एवं सिर्फ इस आधार पर कि याची के खिलाफ पर्याप्त साक्ष्य हैं, जिससे यह साबित हो रहा है कि याची दोषी है, नियमित विभागीय कार्यवाही के बगैर पुलिस अधिकारियों को बर्खास्त करना गलत है।
याचिका में कहा गया है कि याची पर बर्खास्तगी आदेश में जो आरोप लगाए गए हैं, वह असत्य एवं निराधार है। उसे साजिशन अभियुक्त राजीव सरदाना द्वारा षडयंत्र कर एंटीकरप्शन टीम की मिलीभगत से गलत रिकवरी दिखाई गई है। जबकि याची ने रिश्वत के एवज में चार लाख रुपये नहीं लिए है और न ही याची के पास से कोई रिकवरी हुई है।
याची की तरफ से कहा गया कि बगैर विभागीय कार्यवाही एवं नोटिस के यह कार्यवाही की गई। सुनवाई का अवसर नहीं दिया गया, जो कि सर्वोच्च न्यायालय एवं इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा प्रतिपादित विधि की व्यवस्था के विरूद्ध है। इलाहाबाद हाईकोर्ट (High Court) ने बर्खास्तगी आदेश को निरस्त कर दिया है एवं याची को समस्त सेवा लाभ देने के साथ बहाल करने का आदेश पारित किया है।
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