पितृ विसर्जन पर बन रहा गजच्छाया योग, पूरी श्रद्धा से करें पिंडदान
भदोही (कृष्ण कुमार द्विवेदी). पितृ विसर्जन का दिन अपने ज्ञात-अज्ञात सभी पुरखों को तारने (मुक्ति दिलाने) का दिन होता है। आश्विन मास की अमावस्या को पितरों की विदाई की जाती है। यह पितृ पक्ष का अंतिम दिवस होता है, जो पितृ विसर्जन के नाम से जाना जाता है। पितृ पक्ष की अमावस्या रात 2.54 बजे से लग गई है और यह 25 सितंबर की रात 3.23 बजे तक रहेगी।
इस बार पितृ विसर्जन आज यानी रविवार को पड़ रहा है। वरिष्ठ विद्वान पंडित देवमणि मिश्र ने बताया कि इस दिन सूर्य व चंद्र दोनों के हस्त नक्षत्र में होने से गजच्छाया नामक योग बन रहा है। शास्त्रों में इसकी बहुत बड़ी महिमा है। इस योग में स्नान, दान, जप एवं ब्राह्मणों को भोजन, अन्न, वस्त्रादि का दान व श्राद्ध करने का विशेष महात्म्य माना गया है।
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पंडित देवमणि मिश्र ने बताया, सर्वपितृ श्राद्ध के दिन ज्ञात-अज्ञात तिथियों में मृतकजनों के निमित्त श्राद्ध कर्म करने से पितरों की शांति तथा श्राद्धकर्ता के घर में सुख-शांति एवं पारिवारिक सौभाग्य में वृद्धि होती है। इस दिन ब्राह्मण भोजन, दान आदि के बाद गौ ग्रास देना शुभ होता है। श्राद्ध के दौरान तुलसी, आम और पीपल के पेड़ पर जल चढ़ाएं और सूर्य देवता को सूर्योदय के समय अर्घ्य देना न भूलें। सायंकाल गृह द्वार के बाहर दीप प्रज्ज्वलित कर श्रद्धा पूर्वक पितृ विसर्जन करना चाहिए।
ब्रह्मपुराण के अनुसार पितृ अमावस्या में पवित्र होकर यत्नपूर्वक श्राद्ध करने से मनुष्य की समस्त अभिलाषाएं पूरी होती हैं और वह अनंत काल तक स्वर्ग में सुखपूर्वक निवास करते हैं।
वरिष्ठ विद्वान पं. देवमणि मिश्र ने बताया कि इस दिन पितृ दोष के लिए त्रिपिंडी श्राद्ध करने के साथ गीता का पाठ, रुद्राष्ट्राध्यायी के पुरुष सूक्त, ब्रह्मसूक्त आदि का पाठ करना चाहिए। पीपल के पेड़ के मूल में भगवान विष्णु का पूजन कर गाय का दूध अर्पित करें। पितृ श्राप से मुक्ति के लिए पीपल का पौधा भी लगा सकते हैं। पितृ विसर्जन के दिन पितृ लोक से आए हुए पितरों की विदाई होती है।
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