Allahabad Lok Sabha: राजनीतिक दिग्गजों के सामने साख बचाने की चुनौती
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमित शाह, योगी आदित्यनाथ, राहुल गांधी, अखिलेश यादव, असदुद्दीन ओवैसी समेत तमाम दिग्गज नेता कर चुके हैं इलाहाबाद सीट का दौरा
प्रयागराज (आलोक गुप्ता). वीवीआईपी सीटों में गिनी जाने वाली इलाहाबाद लोकसभा सीट (Allahabad Lok Sabha) पर चुनावी रण बेहद दिलचस्प हो गया है। दो तरफा दिख रहे इस मुकाबलों में दो दिग्गजों को अपनी साख बचाने की चुनौती है तो दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी हैट्रिक लगाने को बेताब है।
लाल बहादुर शास्त्री, हेमवती नंदन बहुगुणा, राजा मांडा विश्वनाथ प्रताप सिंह, छोटे लोहिया जनेश्वर मिश्र और मेगास्टार अमिताभ बच्चन को लोकसभा भेजने वाली इस सीट पर मौजूद समय में क्षेत्र के ही दो दिग्गजों की साख दांव पर है। एक तरफ इंडी गठबंधन के सहयोगी दल कांग्रेस से कुंवर उज्ज्वल रमण सिंह हैं तो दूसरी तरफ भाजपा से नीरज त्रिपाठी।
दोनों बड़े राजनीतिक घराने से ताल्लुक रखते हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि उज्ज्वलरमण सिंह चुनावों में अपनी किस्मत आजमाते आ रहे हैं, जबकि विधानसभा के अध्यक्ष व राज्यपाल रह चुके पंडित केशरीनाथ त्रिपाठी के पुत्र नीरज त्रिपाठी के लिए यह पहला अनुभव है।
अपने प्रत्याशी को जीत दिलाने केलिए भारतीय जनता पार्टी के स्टार प्रचारक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर होम मिनिस्टर अमित शाह, चीफ मिनिस्टर योगी आदित्यनाथ जनता-जनार्दन को अपने फेवर में करने के लिए रैलियां कर चुके हैं।
इसके अतिरिक्त सांसद रीता बहुगुणा जोशी, कैबिनेट मंत्री नंद गोपाल गुप्ता, केशवप्रसाद मौर्य, मेयर गणेश केसरवानी के अलावा अनगिनत मंत्री और विधायक इलाहाबाद लोकसभा सीट पर नीरज त्रिपाठी के साथ खड़े नजर आए।
Allahabad Lok Sabha सीट से अपनी जीत पक्की करने के लिए समाजवादी पार्टी के पुरोधा व राजनीति के दिग्गज कुंवर रेवतीरमण सिंह के पुत्र उज्ज्वल रमण सिंह के लिए इंडी गठबंधन ने पूरा जोर लगा दिया है। कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी, सपा सुप्रीमो व पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, एआईएमआईएम के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी समेत अनेक विपक्षी दलों के नेता इलाहाबाद संसदीय क्षेत्र का दौरा कर चुके हैं।
मतदाताओं को रिझाने के लिए दोनों तरफ से कोई कसर नहीं छोड़ी जा रही है। खासतौर से दोनों दलों की उन मतदाताओं पर विशेष नजर है, जो पहली दफा मतदान करने जा रहे हैं, जिनकी संख्या 50 हजार से अधिक है। राजनीतिक विश्लेषकों के अपने-अपने तर्क हैं। तर्कों के आधार पर वह हारजीत को लेकर मंथन में जुटे हैं। वैसे, ऊंट किस करवट बैठेगा, यह तो चार जून को मतगणना के बाद ही पता चलेगा।
जनता से जुड़ाव नहीं तो नब्ज कैसे पकड़ में आएगी!
एक समय वह भी था जब कोई नेता दरवाजे पर आ जाए तो घर का मुखिया कंधे पर टंगे गमझे से ही आसन साफ कर नेताजी को बैठाता था। यह एक प्रकार सम्मान था। अपने नेता के प्रति आदर भाव था। इसका कारण कोई दबाव नहीं बल्कि अंतरात्मा से जुड़ाव और आत्मिक लगाव होता था। नेता भी अपनी अवाम से ऐसा ही रिश्ता रखते थे।
अगर, आज की तारीख में बात की जाए तो है कोई ऐसा नेता। जवाब शायद न में मिले। बहुत हद तक शायद यही वजह है, जिसकी कमी इस लोकसभा चुनाव में देखने को मिल रही है और राजनीतिक विश्लेषक भी इस चुनाव का सही तरीके से आकलन नहीं कर पा रहे हैं कि चुनाव एकतरफा जा रहा है कि दोतरफा। या फिर कोई भी तीसरा सेंधमारी कर रहा है।
कभी-कभी एक का पलड़ा भारी दिखता है तो चंद घंटे बाद ही दूसरे का पलड़ा अपने आप भारी हो जाता है। पिछले पखवारेभर से चुनाव लड़ रहे प्रत्याशी, उनके समर्थक और पार्टी कार्यकर्ता गली-गली की खाक छान रहे हैं। मतदाताओं की मनुहार कर रहे हैं। मतदाताओं का मन टटोलने की कोशिश कर रहे हैं।
पर, बाहर कुछ नहीं आ रहा है। मतदाता अपने में ही मस्त है। कुछ खास वर्ग को छोड़ दें तो एक सामान्य मतदाता के ऊपर इस चुनाव और चुनाव में दिए जा रहे लच्छेदार भाषण, लोक-लुभावन वादों का कोई फर्क नहीं दिख रहा है। वैसे, निकालने को तो इसके कई मतलब निकाले जा सकते हैं, जिसमें एक मतलब यह भी है कि उसे जो मिल रहा है, उससे वह (मतदाता) संतुष्ट है।
आज की तारीख में जो मतदाता 40-50 आयु वर्ग का है, उसने सपा-बसपा का भी कार्यकाल देखा है और पिछले दो चुनावों से भाजपा के कार्यकाल को देख और समझ रहा है।
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