संसार

Earthquake: उबरने की कोशिश कर रहा तुर्की और सीरिया, 50 हजार हुई मृतकों की संख्या

एक लाख, 60 हजार आवासीय इमारतों को पहुंचा नुकसान, कई देशों से पहुंच रही मदद

नई दिल्ली (the live ink desk). छह फरवरी को तुर्की (Turkey) और सीरिया (Syria) में आए विनाशकारी भूकंप (Earthquake) से मरने वालों की संख्या 50 हजार से ऊपर पहुंच गई है। इस भूकंप की वजह से 1.6 लाख से अधिक आवासीय इमारतें जमींदोज हो गई थीं। बताते चलें कि यह भूकंप 6 फरवरी, दिन सोमवार को तुर्की के दक्षिणी शहर गाजियानटेप (Gajiyantep) में अलसुबह आया था। यह 7.8 तीव्रता वाला भीषण था। गाजियानटेप शहर सीरिया की सीमा से सटा हुआ है।

जानकारों के मुताबिक आधिकारिक तौर पर इस तरह के भूकंप को विनाशकारी श्रेणी में रखा जाता है। इसका केंद्र अपेक्षाकृत उथला और 19 किलोमीटर जमीन के नीचे था, जिसके कारण जमीन पर खड़ी इमारतों को गंभीर क्षति हुई और हजारों इमारतें जमींदोज हो गईं। जानकारों की मानें तो बीते 200 सालों में इस इलाके में इस तरह का कोई भी भूकंप या ऐसा कोई खतरनाक संकेत नहीं आया था, इसीलिए यहां उन इलाकों के मुकाबले कम तैयारी थी, जहां पर भूकंप के झटके आते रहते हैं।

तुर्की के गृहमंत्री सुलेमान के अनुसार इस विनाशकारी भूकंप ने तुर्की के 10 शहरों में तबाही मचाई है। समाचार एजेंसी रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक तुर्की और सीरिया में अब तक 520000 अपार्टमेंट वाली 160000 से अधिक इमारतें जमींदोज हो गई हैं या गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त हो गई हैं।

उल्लेखनीय है कि तुर्की दुनिया के सबसे अधिक सक्रिय भूकंप वाले क्षेत्रों में स्थित है। साल 1999 में तुर्की के उत्तर पश्चिमी क्षेत्र में आए विनाशकारी भूकंप में 17000 से अधिक लोगों की मौत हुई थी। फिलहाल वैज्ञानिकों का कहना है कि साल 1970 के बाद इस क्षेत्र में 6 या इससे अधिक तीव्रता के तीन ही भूकंप आए हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि तुर्की और सीरिया में आने वाला भूकंप अपरिहार्य था, लेकिन इसकी सटीक जानकारी वैज्ञानिक नहीं दे सके।

बता दें कि तुर्की के 81 प्रांतों में से 10 प्रांत जबरदस्त भूकंप का शिकार हुए हैं। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक अकेले तुर्की में ही 35000 से ज्यादा लोग इस विनाशकारी भूकंप मारे गए हैं, जबकि सीरिया में भी 15,000 से ज्यादा लोग इस भूकंप का शिकार बने हैं। फिलहाल साल 1939 में आए भूकंप के बाद तुर्की में इस भूकंप को सबसे विनाशकारी भूकंप बताया जा रहा है।

दरअसल, तुर्की में आए इस विनाशकारी भूकंप में 20 साल से तुर्की की सत्ता पर काबिज राष्ट्रपति अर्दोआन ने सेना को राहत और बचाव कार्य अभियान में नहीं उतारा। जानकारों के मुताबिक यह सेना की ताकत कम करने की एक कोशिश है। साल 1999 में तुर्की में आए विनाशकारी भूकंप में सेना ने राहत बचाव कार्य विज्ञान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और कई लोगों की जान बचाई थी।

तुर्की में आगामी मई महीने में आम चुनाव होने हैं और पिछले 20 सालों से तुर्की की सत्ता पर काबिज राष्ट्रपति अर्दोआन का जबरदस्त विरोध भी देखा जा रहा है। उनकी कई नीतियों की आलोचना हो रही है और आम जनता में इन सब चीजों को लेकर काफी असंतोष है। फिलहाल तुर्की में राष्ट्रपति अर्दोआन की तानाशाही का आलम यह है कि उनका मुखर विरोध करने वाले ज्यादातर नेता या तो देश छोड़कर भाग गए हैं या फिर जेल में बंद हैं।

लगातार बिगड़ रही तुर्की की माली हालतः साल 2016 में तुर्की में अर्दोआन के खिलाफ तख्तापलट की कोशिशों को नाकाम कर दिया गया था और भारी खूनखराबे के बीच कई लोगों को जेल में बंद कर दिया गया था या फिर कई लोगों ने आत्मसमर्पण कर दिया था। फिलहाल तुर्की की अर्थव्यवस्था लगातार बिगड़ती जा रही है। यहां महंगाई 57 फ़ीसदी से ज्यादा पहुंच गई है। आम लोगों के जीवन यापन की लागत दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। फिलहाल तुर्की और सीरिया के बॉर्डर पर आए इसे भूकंप में अब तक कई हजार लोग मारे जा चुके हैं और लाखों लोग घायल हैं।

भारत चला रहा आपरेशन दोस्तः अंतरराष्ट्रीय मदद भी तुर्की में युद्ध स्तर पर चलाई जा रही है। संयुक्त राष्ट्र से लेकर अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, जर्मनी समेत तमाम देशों ने तुर्की और सीरिया में मदद की खेप भेजी है। भारत भी ऑपरेशन दोस्त के तहत तुर्की में मदद भेज रहा है। भारत द्वारा भेजी गई मदद से तुर्की का मिजाज भी बदला हुआ दिखाई पड़ रहा है। इसके दीर्घकालिक परिणाम आने वाले समय में दिखाई पड़ेंगे। कुल मिलाकर तुर्की में आए इसे भूकंप का प्रभाव आगामी मई महीने में होने वाले आम चुनाव में कितना असर दिखाएगा यह कहना मुश्किल है।

 

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button