लंपी रोग से घबराएं नहीं, पारंपरिक पद्धति से भी उचार संभव
पशुपालन विभाग ने पशुपालकों से की अपीलः लंपी रोग का लक्षण दिखने पर तत्काल अपनाएं यह उपाय
भदोही (कृष्ण कुमार द्विवेदी). लंपी रोग जनित लंपी रोग के प्रकोप इन दिनों चरम पर है। ऐसे में पशुपालकों को किसी भी तरह से घबराने की जरूरत नहीं है। एलोपैथ के साथ-साथ इस बीमारी का उपचार पारंपरिक पद्धति से भी किया जा सकता है। मुख्य पशु चिकित्साधिकारी ने बताया कि यह विषाणु जनित स्किन डिजीज है। इसकी चपेट में आने पर पशु को तेज बुखार, आंख व नाक से पानी गिरना, पैरों में सूजन, पूरे शरीर में कठोर एवं चपटी गांठ के लक्षण दिखाई पड़ते हैं। इसके अलावा कभी-कभी पूरे शरीर पर (विशेष रूप से गर्दन, थूथन, थन व पृष्ठभाग पर) गांठ बन जाती है। यह गांठें नेक्रोटिक और अल्सरेटिव (घावयुक्त) भी हो सकती हैं, जिससे मक्खियों के द्वारा अन्य पशुओं यह बीमारी फैल सकती है।
इसके अलावा लंपी रोग की चपेट में आने पर सांस लेने वाली नली में भी घाव हो जाता है, जिससे सांस लेने में दिक्कत होती है। वजन तेजी से घटता है और समय से इलाज नहीं मिलने पर पशु की मौत भी हो सकती है।
यह भी पढ़ेंः खेत-खलिहानों को छोड़ नीचे लौट रहीं गंगाः खतरे के निशान से ढाई मीटर नीचे आया पानी
मच्छर और मक्खियों से भी फैलती है बीमारीः त्वचाजनित इस बीमारी का विषाणु बीमार पशु के लार, दूध एवं वीर्य में भारी मात्रा में पाए जाते हैं। बीमार पशु के संपर्क में आने से या रोगग्रस्त पशु का चारा किसी दूसरे मवेशी द्वारा खा लिए जाने से भी यह तेजी से फैलता है। रोगग्रस्त पशु का दूध पीने से बछड़ों में भी यह रोग ट्रांसफर हो सकता है। इसके अतिरिक्त मच्छरों, मक्खियों, किलनी (खून चूसने वाले कीड़े आदि) आदि के जरिए भी लंपी रोग तेजी से फैलता है। विषाणुजनित लंपी रोग का कोई उपचार नहीं है। यह मुख्यतः नरम या गरम मौसम में तेजी से फैलता है।
घाव पर लेप लगाकर मक्खियों से करें बचावः पशुपालन विभाग ने बताया कि टीकाकरण और इंजेक्शन के दौरान दूषित निडिल के प्रयोग से यह अन्य पशुओं में फैल सकता है। जब भी पशुओं में लंपी रोग के लक्षण दिखें, तत्काल अपने नजदीकी पशु चिकित्साधिकारी से संपर्क करें। बुखार की स्थिति में पशु चिकित्सक की सलाह पर पैरासिटामॉल या एंडीबायोटिक की गोली दे सकते हैं। सूजन एवं चर्मरोग की स्थिति में उचित दवाओं का लेप लगाएं। घावों को मक्खियों से बचाने केलिए नीम की पत्ती, मेहँदी की पत्ती, लहसुन, हल्दी पाउडर को नारियल तेल में मिलाकर लेप लगाएं।
यह भी पढ़ेंः बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में चलाएं विशेष सफाई अभियान, कैंप लगाकर दवा बांटने का निर्देश
गॉट पाक्स टीके की एक खुराक है कारगरः लंपी रोग से रोकथाम के लिए टीकाकरण ही सबसे अच्छा तरीका है, लेकिन वर्तमान में इस बीमारी के लिए कोई वैक्सीन उपलब्ध नहीं है। हालांकि इंडियन इम्युनोलाजिकल हेस्टर बायोसाइंस द्वारा निर्मित गॉट पाक्स टीका इस बीमारी में काफी कारगर है। इस टीके की 3.5 एमएल चमड़े में देने पर एक वर्ष तक बीमारी से बचाव किया जा सकता है। इसके अलावा बीमार पशु को समूह से तत्काल अलग करें। वहां अन्य पशुओं का आवागमन भी बंद कर दें। रोगग्रस्त पशु को साफ पानी पिलाएं। मच्छरों,मक्खियों व किलनी से बचाव के लिए कीटनाशक का प्रयोग करें।
वैज्ञानिक विधि से करवाएं शव का निस्तारणः पशुबाड़ा की सफाई केलिए फिनाइल का यूज करें। पशुओं को खुला न छोड़ें। स्वस्थ पशुओं के साथ चारा-पानी न कराएं। यदि लंपी रोग से ग्रस्त किसी मवेशी की मौत होती है तो उसके शरीर का निस्तारण खुले में न करके वैज्ञानिक विधि से दफनाएं। उक्त के संबंध में पशु चिकित्साधिकारियों को रोगग्रस्त पशुओं का परीक्षण और नमूना संकलन आदि के निर्देश दिए गए हैं। इसके अतिरिक्त टीकाकरण, पशुओं की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने, पशुपालकों को जागरुक करने के निर्देश जारी किए गए हैं।