लोक कला बचेगी तभी देश बचेगाः डॉ. ज्योतिष जोशी
एनसीजेडसीसी में हुई गोष्ठी में अतुल यदुवंशी के प्रयासों की खूब हुई सराहना
स्वर्ग रंग मंडल की राष्ट्रीय स्तर पर बहुचर्चित नौटंकी ‘बहुरूपिया’ का भावपूर्ण मंचन
प्रयागराज (आलोक गुप्ता). प्रसिद्ध नाट्य आलोचक लेखक एवं विचारक ज्योतिष जोशी ने कहा, लोक कला बचेगी तभी आप बचेंगे। औपनिवेशिक सोच को लोक के अवचेतन पर थोपा जा रहा है। कहा, नाट्यशास्त्र पढ़ाया तो जाता है मगर उसको व्यावहारिकता में उपेक्षित किया जाता है। एनसीजेडसीसी (उत्तर मध्य सांस्कृतिक क्षेत्र) के प्रेक्षागृह में स्वर्ग संस्था के तत्वावधान में रविवार को नौटंकी सहित लोक कलाओं के संरक्षण और संवर्द्धन पर आयोजित राष्ट्रीय कलाविदों की गोष्ठी में ज्योतिष जोषी ने लोक कलाओं के संरक्षण पर जमीनी स्तर पर जाकर कार्य करने की जरूरत पर जोर दिया। इस दौरान प्रसिद्ध नाट्य आलोचक, लेखक एवं विचारक ज्योतिष जोशी रचित पुस्तक ‘नौटंकी कला परंपरा और संघर्ष’ का विमोचन किया गया।
बताते चलेंकि ‘स्वर्ग रंगमंडल’ लोक नाट्य नौटंकी के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए विगत दो दशक से लोक कलाओं के क्षेत्र में देश के अग्रणी संस्था है। राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय महोत्सवों में प्रदर्शन के साथ-साथ स्वर्ग रंगमंडल लोक कलाओं पर गंभीर एवं आवश्यक शोध के लिए भी जानी मानी संस्था है।
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एनसीजेडसीसी के प्रेक्षागृह में आयोजित गोष्ठी में सुधीर तिवारी (सदस्य, विशेषज्ञ समिति संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार) ने कहा, नौटंकी के लिए नये स्वरूप और और चिंतन को पुनर्जागृत करने के लिए अतुल यदुवंशी के योगदान को आज ही नहीं वरन आने वाले समय में सुनहरे अक्षरों में याद किया जाएगा। लोकनायकों की संस्कृति प्रशस्ति स्वरूप लाला हरदौल आल्हा ऊदल जैसी कृतियों में मौजूद हैं।
गोष्ठी के पश्चात गुजरात से आए प्रसिद्ध निर्देशक अभिनेता एवं चित्रकार कनु पटेल ने कहा, नई शिक्षा नीति में भारतीय लोक कलाओं के महत्व को रेखांकित किया गया है, उसमें जोशी की यह विशेष सन्दर्भित पुस्तक एक मील का पत्थर साबित होगी। लोक कलाएं लोक रंजन और सुख की अनुभूति के लिए मूल तत्व के रूप में हैं। भवाई के संदर्भ में बताते हुए लोक की भव को पार कराने वाली कला बताया और कहा कि लोक कलाएं अनुष्ठानिक हैं। लोक-श्लोक की पद्धति हमारे चिंतन के अवचेतन में विद्यमान है।
दिल्ली से आए प्रसिद्ध नाटककार लेखक एवं विचारक और संगीत नाटक अकादमी के उपसचिव सुमन कुमार ने कहा नौटंकी को समस्त लोक ने अपने मे आत्मसात किया है, वैसे ही नौटंकी ने भी अनेकों-अनेक लोक कलाओं को अपने में समाहित किया है। विशुद्ध रूप से व्यावसायिक तौर पर नौटंकी के चलन के कारण यह शोषित हुई और सबको जोड़ने वाली नौटंकी खुद टूटती गई।
नौटंकी को अतुल ने नये सपने, नई सोच, उमंग, उल्लास से भरा उसे नए कथानकों से ऊर्जावान बनाया और उसी फलक पर टांग दिया है, जहाँ पर कभी यह विद्यमान थी। अतुल यदुवंशी की ज़िद ही इसे ज़िंदा रखे हुए है।
इस अवसर पर वरिष्ठ संस्कृतज्ञ और सलाहकार इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र वाराणसी से विजय शंकर शुक्ल ने कहा वर्तमान में बिना अतुल यदुवंशी की बात किए नौटंकी की बात नहीं की जा सकती। महाराष्ट्र से आए वरिष्ठ नाट्य आलोचक एवं लेखक सत्यदेव त्रिपाठी ने कहा लोक कलाएं कभी दुखांत नहीं होतीं, यानी लोक कलाओं का अंत कभी दुखांत नहीं होता।
संगोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे राजस्थान से आए भारत रत्न भार्गव ने कहा, चुनौतियों से लड़ने का नाम है अतुल यदुवंशी, साथ ही उन्होंने कहा कि यदि डा. ज्योतिष जोशी लोक कलाओं के विलुप्त होने से डरते हैं तो वही अतुल यदुवंशी उन परंपराओं को आगे बढ़ाने और लोक कलाओं के संरक्षण एवं संवर्धन की बात करते हैं। इस दौरान स्वर्ग रंगमंडल की राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित नौटँकी ‘बहुरूपिया‘ का मंचन भी किया गया। इस संगोष्ठी का संचालन कला विदुषी, लोकनाट्य नौटंकी नायिका डॉ सोनम सेठ ने किया।