श्रीरामकथा का चौथा दिनः मर्यादा पुरुषोत्तम की बाललीला सुन श्रद्धालु हुए निहाल
रामजानकी कुटी में आयोजित कथा में शिवम महराज ने सुनाई बाललीला और नामकरण की कथा
प्रयागराज (आलोक गुप्ता). ऋषि-मुनियों की तपोभूमि रामजानकी कुटी में आयोजित सात दिवसीय श्रीराम कथा के चौथे दिन भगवान श्रीराम के नामकरण व बाल लीला का प्रसंग सुनाया गया। अवध के परम पूज्य शिवम शास्त्री महाराज ने भगवान राम की मनमोहक बाल लीलाओं का वर्णन किया। बताया कि बचपन से ही लक्ष्मण की श्रीराम के चरणों में प्रीति थी। भरत और शत्रुघ्न दोनों भाइयों में स्वामी और सेवक की जिस प्रीति की प्रशंसा है, वैसी प्रीति हो गई। वैसे तो चारों ही पुत्र शील, रूप और गुण के धाम हैं, लेकिन सुख के समुद्र श्रीरामचंद्र सबसे अधिक हैं।
बाल लीला का वर्णन करते हुए शिवम महराज ने कहा, मां कौशिल्या कभी गोदी में लेकर भगवान को प्यार करती हैं, कभी सुंदर पालने में लिटाकर ‘प्यारे ललना’ कहकर दुलार करती हैं। जो भगवान सर्वव्यापक, निरंजन (मायारहित), निर्गुण, विनोदरहित और अजन्मे ब्रह्म हैं, वो आज प्रेम और भक्ति के वश कौशल्या की गोद में खेल रहे हैं।
शिवम महराज ने बाल लीला का वर्णन करने के दौरान भगवान श्रीराम के बालपन के शारीरिक खूबियों का सजीव चित्रण किया। बताया कि भगवान के कान और गाल बहुत ही सुंदर हैं। ठोड़ी बहुत ही सुंदर है। दो-दो सुंदर दंतुलियां (दांत) हैं, लाल-लाल होठ हैं। नासिका और तिलक के सौंदर्य का वर्णन ही कौन कर सकता है। जन्म से ही भगवान के बाल चिकने और घुंघराले हैं, जिनको माता ने बहुत प्रकार से बनाकर संवार दिया है। शरीर पर पीली झंगुली (झबला) पहनाई है। उनका घुटनों और हाथों के बल चलना बहुत ही प्यारा लगता है। उनके रूप का वर्णन वेद और शेषजी भी नहीं कर सकते।
मनमोहनक श्रीरामकथा के बीच अचानक रिमझिम फुहारें पड़ने लगीं तो कथा कर रहे शिवम महराज ने मंच से कहा- आज इंद्रदेव को भी बारिश रोकनी चाहिए। आज इंद्र को हम सबकी याचना स्वीकारनी होगी, फिर क्या था, मिनट भर के अंदर बारिश थम गई। चौथे कथा सुनने वालों की भारी भीड़ देखने को मिली। क्षेत्रवासियों के सहयोग से आयोजित श्रीराम कथा में दूरदराज से श्रद्धालु आ रहे हैं।