अवध

भागवत कथा श्रवण की भी भूख-प्यास होनी चाहिएः गोस्वामी

स्व. श्रीराम त्रिपाठी के स्मृति में पृतपक्ष में भक्तों ने सुनी भागवत कथा

प्रयागराज (आलोक गुप्ता). भागवत कथा के श्रवण का सौभाग्य बांसुरी वाले गोविंद और पूर्वजों की कृपा से पृतपक्ष में प्राप्त होती है। जब मन में भागवत कथा सुनने का दृढ़ संकल्प हो तो नारायण की कृपा हो ही जाती है। मनुष्य को भूख, प्यास कथा सुनने की भी होना चाहिए। भगवत कथा से ही मनुष्य भवसागर पार कर जाता है। अच्छा होता सभी को भगवत कथा की भूख और प्यास रहे तो अच्छा भी लगेगा और मुक्ति की प्राप्ति भी होगी। भागवत कथा का उपदेश देते हुए कथावाचक विनोद बिहारी गोस्वामी ने राजा परीक्षित की कथा सुनाई

गोस्वामी ने कहा, एक बार राजा परीक्षित कहते हैं, मुझे भागवत कृपा (कथा) विस्तार से सुननी है। सुकदेवजी प्रसन्न हुए और नवम अध्याय तक सुकदेव स्वामी ने कथा सुनाई लेकिन दशम स्कंद भगवान के हृदय स्वरूप कथा सुनाने में अस्मर्थ होने लगे है। यह अध्याय सुनाने का सामर्थ्य बिना स्वयं श्रीकृष्ण-राधा के संभव नहीं था। बस निश्छल मन से स्मरण करने की आवश्यकता होती है।

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कथावाचक विनोद बिहारी गोस्वामी ने कहा, मन का निरोग्य होना ही मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करता है। भागवत कथा के रहस्यों को सुनते हुए आत्मसार करना चाहिए। कथा में कृष्णजन्म की बाल झांकी और दही की मटकी भक्तों को भावविभोर कर रही थी। वहीं संगीतमय कथा श्रोताओं के रोम-रोम कंपन कर रहे थे। कथा सुनने वाले यजमान और भक्तों में प्रमुख रूप से मुख्य यज्ञमान स्व. श्रीराम त्रिपाठी, उनकी धर्म पत्नी बेलाकली त्रिपाठी, पंडित रामबोला प्रसाद त्रिपाठी, ऊषा देवी, बद्रीनारायण त्रिपाठी, लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी, मुक्तिनारायण त्रिपाठी, चंद्रनारायण त्रिपाठी, सुषमा देवी, रामेश्वरी देवी, कृष्णेश्वरी देवी, गंगेश्वरी देवी, शिवचरित द्विवेदी, दिलीप कुमार चतुर्वेदी, कृष्ण त्रिपाठी, हरीनारायण, मनमोहन, दुर्गा लक्ष्मी, भरत त्रिपाठी, शत्रुघ्न त्रिपाठी, व्यास त्रिपाठी शामिल हुए। अंत में प्रसाद वितरण के साथ कथा का समापन किया गया।

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