‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ पर अभिलेख–चित्र एवं पुस्तक प्रदर्शनी का आयोजन, मौन सभा में दी गई श्रद्धांजलि
भदोही (संजय सिंह). स्वाधीनता दिवस के पूर्व दिवस (14 अगस्त) को ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ का आयोजन किया गया। जिला पंचायत सभागार ज्ञानपुर में अभिलेख-चित्र व पुस्तक प्रदर्शनी का आगाज जिलाधिकारी विशाल सिंह, सीडीओ डा. शिवाकांत द्विवेदी ने किया। इस दौरान मौन सभा हुई और हर घर तिरंगा अभियान की सफलता को तिरंगा बांटा गया।
जिलाधिकारी विशाल सिंह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संदेश पढ़कर सुनाया। कहा, ‘देश के बंटवारे के दर्द को कभी भुलाया नहीं जा सकता। नफरत और हिंसा की वजह से हमारे लाखों भाइयों-बहनोंको विस्थापित होना पड़ा। जान तक गंवानी पड़ी। उन लोगों के संघर्ष एवं बलिदान की याद में 14 अगस्त को ‘विभाजन विभीषिता स्मृति दिवस’ के तौर पर मनाया जा रहा है।
‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ की पृष्ठ भूमि पर प्रकाश डालते हुए जिलाधिकारी ने बताया कि भारत का विभाजन अभूतपूर्व मानव विस्थापन और मजबूरी में पलायन की दर्दनाक कहानी है। यह एक ऐसी कहानी है, जिसमें लाखों लोग अजनबियों के बीच एकदम विपरीत वातावरण में नया आशियाना तालाश रहे थे।
विश्वास व धार्मिक आधार पर एक हिंसक विभाजन की कहानी होने के अतिरिक्त यह एक बात की भी कहानी है, कैसे एक जीवन शैली एक वर्षों पुराने सह-अस्तिव का युग अचानक और नाटकीय रूप से समाप्त हो गया। लगभग 60 लाख गैर मुसलमान उस क्षेत्र से निकलकर आए, जो बाद में पश्चिमी पाकिस्तान बन गया।
65 लाख मुसलमान पंजाब, दिल्ली आदि के भारतीय हिस्सों से पश्चिमी पाकिस्तान चले गए। 20 लाख गैर मुसलमान पूर्वी बंगाल, जो बाद में पूर्वी पाकिस्तान बना, से निकल कर पश्चिम बंगाल आए। 1950 में 20 लाख और गैर मुसलमान पश्चिम बंगाल आए। 10 लाख मुसलमान पश्चिम बंगाल से पूर्वी पाकिस्तान चले गए। इस विभीषिका में मारे गए लोगों का आंकड़ा पांच लाख बताया जाता है, लेकिन अनुमानतः यह आंकड़ा 10 लाख के करीब है।
सीडीओ डा. शिवाकांत द्विवेदी ने बताया कि यह मानव इतिहास की सबसे बड़ी विभीषिका थी। विश्व की किसी भी त्रासदी में इतनी बड़ी संख्या में न तो लोगों ने अपनी प्राण गंवाए, न ही अपने घरों से उजाड़े गए। भारत के लाखों लोगों ने बलिदान देकर आजादी प्राप्त की थी। ऐसे समय पर देश का दो टुकड़ों में बंट जाने का दर्द लाखों परिवारों में एक गहरे जख्म की तरह घर कर गया था।
डीडीओ ज्ञानप्रकाश ने कहा, विभाजन विभीषिका इतनी भयावह और लंबे काल तक चली कि दशकों बाद तक लोग पाकिस्तान और बांग्लादेश से पलायन करते रहे। इस समय के बंगाल का भी विभाजन हुआ। इसमें बंगाल के पूर्वी हिस्से को भारत से अलग कर पूर्वी पाकिस्तान बनाया गया था, जो सन् 1971 में बांग्लादेश के रूप में एक स्वतंत्र राष्ट्र बना।
डीआईओ डा. पंकज कुमार ने विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस की उपादेयता व प्रासंगिकता पर बल देते हुए बताया कि अपनी मातृभूमि के उन परिवारों को नमन करते हुए जिन्हें भारत के विभाजन के दौर में अपने परिवार जन के प्राण न्यौछावर करने पड़े, ऐसे लोगों के संघर्ष एवं बलिदान की याद में यह दिवस मनाया जाता है।
उन्होंने बताया कि 20 फरवरी, 1947 को ब्रिटिश प्रधानमंत्री क्लेमेंटएटली ने लंदन के हाउस ऑफ कॉमंस में घोषणा कर दी कि 30 जून, 1948 तक भारत को सत्ता का हस्तांतरण कर दिया जाएगा। इसके क्रम में वायसराय लार्ड माउंट बेटन 31 मई, 1947 को लंदन से दिल्ली आया।
दो जून, 1947 को विभाजन विषयक ऐतिहासिक बैठक में 14/15 अगस्त को पाकिस्तान एवं भारत को आजाद एवं चार जून को पत्रकार सम्मेलन में जनसंख्या के स्थानांतरण पर बल दिया। 18 जुलाई, 1947 को ब्रिटिश संसद ने भारत का स्वतंत्रता अधिनियम पारित हुआ।
डीआईओ अंशुमान ने कहा, -मजहब के नाम पर हुआ देश बंटवारा, विभाजन की विभीषिका ने करोड़ों को उजाड़ा। उन्होंने कहा कि शरणार्थी बनने को मजबूर हुए करोड़ों लोग अपना घर-बार को छोड़कर पैदल ही चल दिए। गांव के गांव उजड़ते गए, वे काफिलों में बदलते गए और यह काफिला मीलों तक पसरा रहा।
कार्यक्रम को शिक्षक दीपक मिश्र, डिस्ट्रिक मास्टर ट्रेनर राकेश सिंह समेत कई अन्य लोगों ने संबोधित किया और पार्टीशन की विभीषिका का दर्द बयां किया। जनपद के अन्य कई संस्थाओं, संगठनों सहित जिला विद्यालय निरीक्षक व जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी के नेतृत्व में विभिन्न स्कूल, कालेजों में विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस पर विचार संगोष्ठी सहित अन्य कार्यक्रम आयोजित हुए।
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