नारद को नकार विश्वमोहिनी ने भगवान विष्णु के गले में डाली वरमाला
नगर पंचायत सुरियावां में नारद मोह के साथ रामलीला मंचन का शुभारंभ
भदोही. शारदीय नवरात्र के शुरू होते ही दुर्गा पूजा पंडालों की वजह से कस्बाई बाजारों गांवों में रौनक बढ़ गई है। सांझ ढलते ही सन्नाटे में पसर जाने वाली बाजारों में आधी रात तक चहल-पहल बनी रहती है। कई स्थानों पर रामलीला का मंचन भी शुरू हो गया है। रामलीला समिति सुरियावां के बैनर तले रामलीला मैदान में अयोध्या से आए कलाकारों द्वारा नारद मोह का मंचन किया गया।
कलाकारों द्वारा मंचित रामलीला पाठ देखकर लोग भावविभोर हो उठे। कार्यक्रम का शुभारंभ नगर पंचायत चेयरमैन विनय चौरसिया ने दीप प्रज्ज्वलित कर किया। मंचन का क्रम भगवान नारद की तपस्या व राजा दक्ष के श्राप से शुरू हुआ। नारद को राजा दक्ष श्राप देते हैं कि आप कभी दो घड़ी से अधिक समय तक एक जगह पर नहीं रह सकते। इस श्राप को प्रभावहीन करने के लिए नारद तपस्या करने लगते हैं। उनकी तपस्या से परेशान देवराज इंद्र, कामदेव व उनके साथी तपस्या भंग करवाना चाहते हैं, लेकिन सफल नहीं हो पाते।
तपस्या पूर्ण होने पर नारद को अभिमान हो जाता और वे क्षीर सागर में पहुंच भगवान विष्णु से कहते हैं कि भगवान शंकर ने तो केवल काम पर विजय प्राप्त की है। मैंने काम व क्रोध दोनों पर विजय प्राप्त कर ली है। नारद के अभिमान को तोड़ने के लिए रास्ते में विष्णु एक नगर की रचना कर वहां की राजकुमारी का स्वयंवर रच देते हैं। कन्या की हस्तरेखा देख नारद मायाजाल में फंस जाते हैं और दोबारा क्षीर सागर लौट भगवान विष्णु से उनके रूप की मांग करते हैं।
इसके बाद वहां से लौट नारद स्वयंवर में विश्वमोहिनी को प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। राजकुमारी, नारद के बजाय विष्णु के गले में जयमाल डाल देती है। इससे नारद क्रोधित होकर विष्णु को श्राप देते हैं कि जिस पत्नी के लिए मैं व्याकुल हो गया था, उसी के लिए एक दिन आपको वन-वन भटकना पड़ेगा और बंदर, भालू आपके सहयोगी बनेंगे।
अंत में रावण जन्म के प्रसंग का भी मंचन किया गया। इस मौके पर मुख्य रूप से राधेश्याम गुप्ता, अवधेश उमर, अश्विनी साहू, अशोक उमर, छेदीलाल, अशोक जलान, मदन जायसवाल, विजय वर्मा, गोपाल जायसवाल, चंदन घनश्यमदास आदि उपस्थित रहे।