भदोही (संजय सिंह). रइयापुर ग्राम में चल रही भागवत कथा के समापन मौके पर आचार्य रविकृष्ण महराज ने श्रीकृष्ण और सुदामा की मित्रता की कथा सुनाकर लोगों को भावविभोर करदिया। श्रीकृष्ण और सुदामा के चरित्र पर रोशनी डालते हुए आचार्य ने कहा, मित्रता करो तो भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा जैसी करो।
आजकल तो स्वार्थ की मित्रता रह गई है। पहले मित्रता में स्वार्थ नहीं रहता था। भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा जैसी मित्रता आजकल कोई नहीं करता। एक प्रसंग का वर्णन करते हुए बताया कि जब सुदामा अपने बालसखा भगवान श्रीकृष्ण से मिलने पहुंचे तो फटे कपड़े में थे।
सुदामा ने द्वार पर खड़े द्वारपाल को अपने आने की मंशा बताई। सुदामा की दीन दशा को देखते हुए न चाहते हुए भी द्वारपाल ने यह बात श्रीकृष्ण तक पहुंचाई तो भगवान नंगे पांव ही दरवाजे की तरफ दौड़ पड़े। दरवाजे पर पहुंचते ही अपने बालसखा सुदामा को गले लगाया और अपने मित्र को सिंहासन पर बैठाया।
कथा को विस्तार देते हुए महाराज ने- गोपियां कौन, विषय पर बोलते हुए कहा कि भगवान राम-सीता वनगमन के पश्चात हजारों यज्ञ किए और हर यज्ञ में स्वर्णमयी सीताजी की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा की गई। उन सभी मूर्तियों ने भगवान से निवेदन किया कि आप हमें पत्नी के स्वरूप में धारण करें, तो भगवान ने कहा कि आप सभी जाकर वृंदावन में तपस्या करें, कृष्णावतार में यह मनोकामना पूर्ण होगी।
वेद की ऋचाएं, गंधर्व, विद्याधर, देवता एवं बड़ी संख्या में रसिक संत गोपियां बन, यहां तक भगवान महादेव आशुतोष भी गोपेश्वर बन भगवान श्रीकृष्ण के महारास में परमानंद की प्राप्ति के लिए पहुंचे।
आचार्य ने कहा कि बच्चों को राष्ट्रभक्ति के साथ माता-पिता के प्रति भक्ति प्रदान करने का आह्वान किया। मुख्य जजमान वंशराज तिवारी, राम मोहन मिश्र, श्रीनिवास चतुर्वेदी, निर्मला, रीना, पूनम, किरन, सुशीला तिवारी, मंजू मिश्रा, साक्षी, निर्मला, ओमप्रकाश मिश्र, अशोक तिवारी, विपिन मिश्र, विनोद मिश्र, मौजूद रहे। धन्यवाद ज्ञापन शैलेष तिवारी ने किया।