चकिया करबला और दरियाबाद क़ब्रिस्तान में सुपुर्द-ए-खाक हुए अक़ीदत के फूल
प्रयागराज (the live ink desk). माहे मोहर्रम की दसवीं (यौमे आशूरा) को हर शख्स सियाह लिबास, नंगे पैर और लबों पर सदाएं या हुसैन के साथ जुलूस में शामिल होकर नौहा और मातम करते हुए चकिया करबला क़ब्रिस्तान तक गया। नूरुलएन आब्दी, ज़ुलक़रनैन आब्दी, ज़ुन्नुनरैन आब्दी, तय्याबैन आब्दी, फराज़ आब्दी की क़यादत में बख्शी बाज़ार के इमामबाड़ा नाज़िर हुसैन से 95 वर्ष पूर्व शुरु किया गया तुरबत का जुलूस दसवीं मोहर्रम को प्रातः सात बजे निकाला गया। जुलूस में आगे-आगे ज़ैग़म अब्बास मर्सिया पढ़ते हुए दायरा शाह अजमल, सेवंई मंडी इमामबाड़ा से रानीमंडी बच्चाजी धरमशाला इमामबाड़ा मीर हुसैनी तक लेकर गए।
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इमामबाड़े में ज़ाकिरे अहलेबैत रज़ा अब्बास ज़ैदी ने शहादत इमाम हुसैन का मार्मिक अंदाज में पेश किया तो अक़ीदतमंदों की आँखें छलछला आईं। अंजुमन आबिदया के नौहाख्वान मिर्ज़ा काज़िम अली विज़ारत व तौसीफ नौहों और मातम की सदाओं के साथ तुरबत जुलूस को बच्चाजी धर्मशाला, चड्ढ़ा रोड, कोतवाली, नखास कोहना, खुल्दाबाद, हिम्मतगंज होते हुए चकिया करबला तक लेकर गए। करबला में इमाम हुसैन के रौज़े पर तुरबत रखकर सिर व छाती पीट कर मातम किया और लगभग दो सौ इमामबाड़ों में तबर्रुक़ात पर चढ़ाए गए फूलों और ताज़िये को करबला में बनाए गए गंजे शहीदाँ में नम आँखों से सुपुर्देखाक किया गया।
वहीं दूसरा जुलूस रानीमंडी चकय्या नीम इमामबाड़ा मिर्ज़ा नक़ी बेग से अंजुमन हैदरिया रानीमंडी की ओर से बशीर हुसैन की क़यादत में निकाला गया। जिसमें अंजुमन के नौहाख्वान हसन रिज़वी व साथियों ने नौहा और मातम किया। अलम व ज़ुलजनाह की शबीह भी साथ साथ रही। रास्ते भर अक़ीदतमंदों ने दुलदुल व अलम का बोसा लेने के साथ फूल-माला चढ़ाकर मन्नत व मुरादें मांगी। जुलूस अपने परंपरागत मार्ग से होते हुए चकिया करबला में समाप्त हुआ।
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करबला में खुले आसमान के नीचे बड़ी संख्या में अक़ीदतमंदों ने रोज़े आशूरा का आमाल मौलाना सैय्यद रज़ी हैदर साहब क़िबला की क़यादत में अंजाम दिया। एक दूसरे का हाथ पकड़कर लोगों ने अपने क़दमों को सात बार आगे-पीछे चलकर इमाम हुसैन के उस अमल को याद किया जो उन्होंने हज़रत अली असग़र की शहादत होने पर किया था। अंजुमन गुंचा ए क़ासिमया के प्रवक्ता सैय्यद मोहम्मद अस्करी के मुताबिक़ दरियाबाद के इमामबाड़ा जद्दन मीर साहब, इमामबाड़ा अरब अली खाँ, इमामबाड़ा सलवात अली खाँ, इमामबाड़ा मलिक साहब, इमामबाड़ा ज़ैदी, इमामबाड़ा हुसैन अली खाँ, इमामबाड़ा गुलज़ार अली खाँ से दसवीं मोहर्रम पर इमामबाड़ों पर चढ़ाए गए फूलों व ताज़िये को दरियाबाद क़ब्रिस्तान में अश्कों का नज़राना पेश करते हुए सुपुर्द ए लहद किया। कई मातमी अंजुमनों की ओर से जुलूस भी निकाला गया। अलम ताबूत ज़ुलजनाह भी साथ साथ रहे।
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इसी प्रकार बड़ा ताज़िया, बुड्ढ़ा ताज़िया, अलम मेहंदी, ताज़िया झूला आदि के फूलों को सुन्नी समुदाय के लोगों ने अपने अपने ताज़ियादारों के साथ या अली या हुसैन की सदा बुलंद करते हुए सुपुर्देखाक किया।
चौक से करबला तक लगी शरबत की सबीलः करबला में तीन दिन के भूखे प्यासे खानदाने रेसालत की शहादत दसवीं मोहर्रम को तमाम स्वयं सेवी संस्थाओं तंजीमों व अंजुमनों की ओर चौक कोतवाली से चकिया करबला तक तक़रीबन दो दर्जन स्थानों पर अक़ीदतमंदों के लिए ठंडे शरबत, पानी बिस्किट और तमाम तरह की चीज़ें तक़सीम की गईं। बड़ी संख्या में अक़ीदतमंदों ने नज़्रे मौला के नाम पर शरबत पिया।
शाम को सतनजे और शरबत से तोड़ा फाक़ाः करबला में नवासा ए रसूल की शहादत के वाक़ये को चौदह सौ बरस बीतने के बाद भी आज तक ग़मे हुसैन उसी प्रकार मनाया जा रहा है जैसे पहले मनाया जाता था और सभी रस्मों-रिवाज भी उसी प्रकार बदसूतूर जारी हैं। आशूरा यानि दसवीं मोहर्रम पर शिया समुदाय दिनभर जहां फाक़ा रहकर गुज़ारता है और शाम को सात प्रकार के भुने दाने (सतनजा) और शरबत पर शोहदाए करबला और असीराने करबला की नज़्र दिलाकर उसी सतनजे और शरबत से फाक़ा तोड़ता है। सुन्नी मुसलमान दसवीं पर रोज़ा रखते है और मग़रिब की अज़ान के साथ रोज़ा खोलते हैं।