अदालत ने प्रदेश सरकार से नियम बनाने को लेकर मांगा हलफनामा
प्रयागराज (आलोक गुप्ता). दहेज प्रतिषेध अधिनियम के हो रहे दुरुपयोग को रोकने के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने एक फैसले में कहा कि विवाह में मिलने वाले उपहारों की एक लिस्ट बननी चाहिए। इस लिस्ट पर वर और वधू के हस्ताक्षर भी जरूरी है। ऐसे सामानों की लिस्ट बन जाने के बाद विवाहोपरांत होने वाले विवादों के निस्तारण में मदद मिलेगी।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अंकित सिंह व अन्य द्वारा दाखिल 482 दंड प्रक्रिया संहिता के मामले की सुनवाई करते हुए उपरोक्त सलाह दी, साथ ही अदालत ने सरकार से हलफनामा मांगा है कि वह बताए कि दहेज प्रतिषेध अधिनियम के रूल 10 में कोई नियम प्रदेश सरकार ने बनाया है।
Allahabad High Court के जस्टिस विक्रम डी. चौहान की बेंच ने कहा, दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1985 (Dowry Act) का हवाले से कहा कि इस कानून में एक नियम यह भी है कि वर एवं वधू को मिलने वाले उपहारों की सूची बनानी चाहिए। ताकि, यह स्पष्ट हो कि उन लोगों को क्या-क्या उपहार विवाह में मिला था। अदालत ने कहा कि शादी के दौरान मिलने वाले गिफ्ट्स को दहेज के दायरे में नहीं रखा जा सकता।
बेंच ने कहा कि दहेज की मांग का आरोप लगाने वाले लोग अपने आवेदन में ऐसी लिस्ट क्यों नहीं लगाते। कहा कि, यह जरूरी है कि दहेज अधिनियम का उसकी पूरी भावना के साथ पालन होना चाहिए।
अदालत ने कहा कि यह नियम बताता है कि दहेज और उपहारों में क्या अंतर है। शादी के दौरान लड़का और लड़की को मिलने वाले गिफ्ट्स को दहेज में नहीं शामिल किया जा सकता। इसीलिए शादी-विवाह पर मिलने वाले उपहारों के सभी सामानों एक लिस्ट बनाई जाए, जिस पर वर-कन्या के हस्ताक्षर हों, ताकि दहेज अधिनियम (Dowry Act) के दुरुपयोग को रोका जा सके।
अदालत ने कहा, -दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1985 (Dowry Act) को केंद्र सरकार की ओर से इसी भावना के तहत बनाया गया था कि भारत में शादियों में गिफ्ट देने का रिवाज है। भारत की परंपरा को समझते हुए ही उपहारों को दहेज की श्रेणी से अलग रखा गया।
अदालत ने कहा कि इस नियम के अनुसार तो दहेज प्रतिषेध अधिकारियों की भी तैनाती की जानी चाहिए, लेकिन आज तक शादी में ऐसे अधिकारियों को नहीं भेजा गया। राज्य सरकार को बताना चाहिए कि उसने ऐसा क्यों नहीं किया, जबकि दहेज की शिकायतों से जुड़े मामलों में इजाफा देखने को मिल रहा है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट की यह टिप्पणी/सुझाव दहेज उत्पीड़न के बढ़ते मामलों को लेकर काफी अहम है। नियम है कि विवाह के सात साल बाद तक दहेज उत्पीड़न का केस दायर किया जा सकता है। अदालत में अक्सर ऐसे मामले पहुंचते हैं, जिनमें विवाद किसी और वजह से होता है, लेकिन आरोप दहेज का लगा दिया जाता है।
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