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Banda Lok Sabha: बुंदेलखंड वासियों ने हर बार बदल दिया चेहरा, 2024 में टूटेगा मिथक!

प्रयागराज (आलोक गुप्ता). प्रयागराज, कौशांबी, फतेहपुर और हमीरपुर की सीमा से लगती बांदा लोकसभा (Banda LokSabha) ऐसी सीट है, जिस पर किसी भी प्रत्याशी को लगातार जीतने का मौका नहीं मिला। इस सीट पर साल 1957 से अब तक 16 बार आम चुनाव हो चुके हैं। 1957 और 1962 में दो बार लगातार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस जीती, लेकिन चेहरे बदले रहे।

बुंदेलखंड रीजन वाली इस प्रमुख लोकसभा सीट ने किसी भी सांसद को जीत दोहराने का मौका नहीं दिया। यहां, बात लगातार जीत की हो रही है। अब तक के 16 बार के चुनाव में कुल चार बार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने चुनाव जीता है। जबकि पांच बार भारतीय जनता पार्टी (1971 में भारतीय जनसंघ) बांदावासियों का दिल जीतने में कामयाब रही।

2014 के चुनाव में इलाहाबाद लोकसभा सीट से चुनाव जीतने वाले श्यामाचरण गुप्ता (अब स्वर्गीय), 2004 में बांदा लोकसभा से सांसद चुने गए थे। अब बात करते हैं उन सांसदों की, जिन्होंने बांदा लोकसभा सीट से एक से अधिक बार चुनाव जीता है। इसमें सबसे पहला नाम है आरके सिंह पटेल का।

2019 में भाजपा से लोकसभा चुनाव जीतने वाले आरके सिंह पटेल ने 2009 में भी सपा प्रत्याशी के रूप में यहां से चुनाव जीता था। दूसरे ऐसे सांसद रामसजीवन रहे, जिन्होंने बांदा लोकसभा सीट तीन बार चुनाव जीता। साल 1999 में बहुजन समाज पार्टी के बैनर तले चुनाव लड़ने वाले रामसजीवन यहां से तीन बार सांसद बने।

साल 1989 और 1996 के आम चुनाव में भी रामसजीवन बांदावासियों की पहली पसंद थे। 1989 में रामसजीवन ने सीपीआई (कम्युनिस्ट पार्टी आफ इंडिया) के बैनर तले चुनाव लड़ा था। जबकि 1996 में वह बसपा में आ गए थे। रामसजीवन और आरके सिंह पटेल को छोड़ दें तो बांदा में एक से अधिक बार कोई भी चुनाव नहीं जीत सका।

अब बात करते हैं बांदा लोकसभा सीट से चुनाव जीतने वालों की तो इस लिस्ट में सबसे पहला नाम राजा दिनेश सिंह का है। 1957 में राजा दिनेश सिंह बांदा लोकसभा सीट से पहली बार सांसद चुने गए थे। राजा दिनेश सिंह कालाकांकर रियासत (प्रतापगढ़) के राजा थे। राजा दिनेश सिंह प्रतापगढ़ लोकसभा सीट से भी चार बार लोकसभा सदस्य चुने गए थे। वह देश के विदेश मंत्री भी रहे।

इसके बाद साल 1962 में कांग्रेस की सावित्री निगम ने लोकसभा का चुनाव जीता। साल 1967 में सीपीआई से जगेश्वर यादव, 1971 में भारतीय जनसंघ से रामरतन शर्मा, 1977 में जनता पार्टी से अंबिका प्रसाद पांडेय को चुनाव जीतने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। जबकि 1980 के चुनाव में कांग्रेस ने फिर से वापसी की।

1980 के चुनाव में कांग्रेस से रामनाथ दुबे और 1984 के चुनाव में कांग्रेस से भी भीष्मदेव दुबे ने चुनाव जीता और लोकसभा पहुंचने का सौभाग्य प्राप्त किया। इसके बाद साल 1989 में हुए चुनाव में सीपीआई ने फिर से वापसी की और रामसजीवन बांदावासियों की पहली पसंद बने।

1991 में भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर प्रकाशनारायण त्रिपाठी, 1996 में बहुजन समाज पार्टी के रामसजीवन, 1998 में भाजपा के रमेशचंद्र द्विवेदी सांसद चुने गए। इसके बाद 1999 में एक बार फिर बसपा ने जोर लगाया और बांदा लोकसभा सीट से रामसजीवन तीसरी दफा सांसद बने।

2004 में बांदा लोकसभा सीट पर समाजवादी पार्टी ने इंट्री मारी और श्यामाचरण गुप्ता को अपना प्रत्याशी बनाया, जो चुनाव जीतने में कामयाब रहे। 2009 में एक फिर समाजवादी पार्टी को आरके सिंह पटेल ने सफलता दिलाई। साल 2014 के बाद से अब तक यह सीट भाजपा के पास है, लेकिन 2014 में यहां से भैरोप्रसाद मिश्र तो 2019 के चुनाव में आरके सिंहपटेल मतदाताओं की पहली पसंद बने।

भाजपा ने आरके सिंह पटेल पर फिर लगाया दांव

बांदा लोकसभा सीट, जिसने दोबारा किसी को जीतने का मौका नहीं दिया, उसी सीट पर भारतीय जनता पार्टी ने एक बार फिर से आरके सिंह पटेल पर दांव लगाया है। बांदा की जनता ने लगातार किसी को भी जीतने का मौका नहीं दिया, ऐसे में भाजपा की यह रणनीति कितनी सफल होती है, यह समय बताएगा। भाजपा के सामने इंडी गठबंधन के सहयोगी दल समाजवादी पार्टी ने शिवशंकर सिंह पटेल को चुनाव मैदान में उतारा है, तो बसपा ने भी मयंक द्विवेदी पर दांव लगाया है। बसपा भी इस सीट पर दमदारी से चुनाव लड़ती आई है।

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