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सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं पर भरोसा कर रहे लोग, 16 फीसद कम हुआ जेब खर्च

नई दिल्ली (The live ink desk). हेल्थ सेक्टर का इंफ्रास्ट्रक्चर मजबूत होने, स्वास्थ्य सेवाओं के सुलभ होने से आम आदमी में सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं के प्रति भरोसा बढ़ा है। इसका नतीजा यह रहा कि लोगों की सेहत पर होने वाले खर्च में कुल 16 फीसदी से अधिक की कमी आई है। कोरोना काल में जिन स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी देखने को मिली थी, अब उनमें काफी सुधार हो चुका है। बात अगर उत्तर प्रदेश की करें तो यहां पर भी मेडिकल कालेजों की स्थापना से लेकर आक्सीजन की सप्लाई और आक्सीजन प्लांटों की स्थापना को काफी तरजीह दी गई है। कमोवेश यही स्थिति देश के अन्य राज्यों की है।

सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के लिए किए जा रहे प्रयासों के फलस्वरूप स्वास्थ्य व्यय के रूप में लोगों की तरफ से किए जाने वाले जेब खर्च (ओओपीई) साल 2013-14 में 62.2 फीसद था, जबकि 2018-19 में यह खर्च घटकर 48.2 फीसद रह गया है। प्रति व्यक्ति जेब खर्च की बात करें तो यह 2336 रुपये से घटकर 2155 रुपये हो गई है। स्वास्थ्य मंत्रालय की तरफ से जारी की गई रिपोर्ट में कहा गया है कि इसका मुख्य कारण सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं के उपयोग में बढ़ोत्तरी और सेवाओं की लागत में कमी है।

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राष्ट्रीय स्वास्थ्य लेखा (एनएचए) की रिपोर्ट के मुताबिक सरकारी स्वास्थ्य व्यय में प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा का हिस्सा वर्ष 2013-14 में 51.1 फीसद से बढ़कर वर्ष 2018-19 में 55.2 प्रतिशत हो गया है। प्राथमिक एवं द्वितीयक स्वास्थ्य सुविधाओं का कुल सरकारी स्वास्थ्य व्यय 80 फीसद की हिस्सेदारी है। रिपोर्ट के मुताबिक निजी क्षेत्र का तृतीयक स्वास्थ्य देखभाल के क्षेत्र में हिस्सेदारी बढ़ी है, लेकिन प्राथमिक और द्वितीयक क्षेत्र में गिरावट आई है।

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एनएचए के मुताबिक सरकार का स्वास्थ्य पर देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की तुलना में 1.15 फीसद (2013-14) से बढ़कर 1.28 फीसद (2018-19) हो गया है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य लेखा द्वारा वर्ष 2018-19 की रिपोर्ट के मुताबिक देश में स्वास्थ्य पर होने वाले कुल खर्चे में सरकार के स्वास्थ्य व्यय का हिस्सा 28.6 फीसद (2013-14) से बढ़कर 40.6 फीसद (2018-19) हो गया है।

इसके अलावा स्वास्थ्य सामाजिक सुरक्षा खर्च भी बढ़ा है, जिसमें सामाजिक स्वास्स्थ्य बीमा कार्यक्रम, सरकार द्वारा वित्तपोषित स्वास्थ्य बीमा योजनाएं और सरकारी कर्मचारियों को दी जाने वाली चिकित्सा प्रतिपूर्ति भी शामिल है। कुल स्वास्थ्य व्यय के रूप में वृद्धि 2013-14 में छह प्रतिशत से बढ़कर 2018-19 में 9.6 फीसद हो गई है। उल्लेखनीय है कि वित्तीय परिप्रेक्ष्य में भारत दुनिया में ओओपीई (जेबखर्च) के सबसे ऊंचे स्तर वाले देशों में से एक है। जो प्रत्यक्ष रूप से भारी व्यय है। लेकिन, आज सरकार की तमाम स्वास्थ्य संबंधी योजनाओं से भारत की बड़ी आबादी को सस्ता उपचार मिल रहा है।

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