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सर्वार्थ और अमृत सिद्धि योग में हो रहा शारदीय नवरात्रि का शुभारंभ

प्रयागराज (आलोक गुप्ता). कल, यानी 26 सितंबर से बरसात के दिन (वर्षा ऋतु) खत्म हो जाएंगे और शरद ऋतु का आगमन होगा। ज्योतिषियों के अनुसार शारदीय नवरात्रि का शुभारंभ सर्वार्थ सिद्धि और अमृत सिद्धि योग में हो रहा है। अश्विन माह (कार्तिक) माह के प्रथम दिन, शारदीय नवरात्रि को सूर्योदय 6.17 बजे होगा। शारदीय नवरात्रि के प्रथम दिन नौ दिनों का व्रत शुरू हो जाएग। इस वर्ष शारदीय नवरात्रि 26 सितंबर से पांच अक्टूबर तक रहेगी। नवरात्रि के मौके पर भक्तगण अपनी-अपनी परंपराओं और रीति-रिवाजों से मां की आराधना करते हैं। शारदीय नवरात्रि में अश्विन माह की प्रतिपदा की स्थापना कलश स्थापना से होती है।

पंडित त्रियुगीकांत मिश्र ने बताया कि इस बार घट स्थापना सुबह 6.28 बजे से 10.19 बजे तक कर सकते हैं। घट स्थापना की कुल अवधि 1.33 मिनट होगी। इसके अलावा अभिजीत मुहूर्त में भी कलश स्थापित किया जा सकेगा। अभिजीत मुहूर्त सबसे शुभ माना जाता है। यह काल 11.55 बजे से 12.43 बजे तक रहेगा। जबकि प्रतिपदा की समाप्ति 27.9 बजे होगी।

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हालांकि घट स्थापना को लेकर विद्वानों में मतैक्य नहीं है। अलग-अलग पंचाग और धार्मिक ग्रंथोंके अनुसार इस समय में थोड़ा बहुत अंतर है। पंचांगों में कहा गया है कि कलश स्थापना के लिए सुबह 06 बजकर 28 मिनट से 08 बजकर 01 मिनट तक का ही समय है। घटस्थापना की कुल अवधि 01.33 घंटे की होगी। हालांकि कुछ विद्वानों का मानना है कि दिनभर घट स्थापना की जा सकती है।

प्रथम दिन शहद से लगाएं भोगः पंडित त्रियुगीकांत मिश्र ने बताया कि नौ दिनों तक मां की आराधना पूरी श्रद्धाभाव से करें। मां सबका कल्याण करती हैं। बताया कि नवरात्रि के प्रथम दिन मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप शैलपुत्री को देशी घी का भोग लगाएं। दूसरे दिन मां के  ब्रह्मचारिणी स्वरूप को शक्कर, सफेद मिठाई, मिश्री और फल, तीसरे दिन मां चंद्रघंटा को मिठाई और खीर का भोग लगाएं। इसी तरह चौथे दिन मां कुष्मांडा को मालपुआ, पांचवें दिन स्कंदमाता को केला, छठें दिन मां कात्यायनी को शहद, सातवें दिन मां कालरात्रि को गुड़, आठवें दिन मां महागौरी को नारियल और अंतिम दिन मां सिद्धिदात्री को अनार और तिल का भोग लगाएं। मां सभी का मनोरथ पूर्ण करेंगी।

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घट स्थापना में इन गलतियों से बचेंः प्रथम दिन घट स्थापना में सावधानी बरतनी चाहिए। ज्योतिषी पंडित त्रियुकीकांत मिश्र का मानना है कि घट स्थापना के समय कलश का मुंह खुला न रखें। कलश का ढक्कन चावल से भरकर उस पर एक नारियल रखें। कलश को ईशान कोण (उत्तर-पूर्व)की दिशा में स्थापित करें। कलश के पास अखंड ज्योति प्रज्ज्वलित करें। अखंड ज्योति को आग्नेय कोण (दक्षिण-पूर्व) में रखें। पूजा करते समय अपना चेहरा पूर्व या उत्तर दिशा में रखें। देवी की चौकी के साफ-सफाई का विशेष ध्यान दें। पूजा स्थलके ऊपर यदि कोई आलमारी या रैक आदि है तो उसे साफ-सुथरा रखें।

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