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देश के हजारों परिवारों को रोजगार दे रहा मंदिरों में चढ़ने वाला फूल

देशभर के बड़े मंदिरों में स्वयंसेवी संस्थाओं, ट्रस्ट व स्टार्टअप के जरिए हो रहा फूलों का अपशिष्ट का समाधान

The live ink desk. मंदिरों के देश भारत में फूलों की उपयोगिता को दरकिनार नहीं किया जा सकता। यह एक फलता-फूलता उद्योग है। हम बड़े पैमाने पर फूलों की विभिन्न प्रजातियों का निर्यात भी करते हैं। आज हम बात करते हैं उन फूलों की, जिनका इस्तेमाल हम रोजमर्रा की जिंदगी में मंदिरों में करते हैं।

मंदिरों में रोजाना चढ़ाए जाने वाले फूलों की बात करें तो यह चढ़ाए जाने से पूर्व तो रोजगार दे ही रहा है, साथ ही साथ मंदिरों में चढ़ाए जाने के बाद भी यह हजारों परिवारों के रोजगार का साधन बन रहा है। यह संभव हो रहा है कि ‘स्वच्छ भारत मिशन-शहरी 2.0’ और ‘हरित मंदिर’ अवधारणा की वजह से। भारत सरकार इस दिशा में तेजी से प्रयास कर रही है। स्थिरता और सर्कुलर इकोनॉमी की तरफ तेजी से कदम बढ़ा रहा भारत अपशिष्ट से संपदा बनाने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है।

संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन रिपोर्ट के अनुसार, अकेले गंगा नदी सालाना आठ मिलियन मीट्रिक टन से अधिक फूलों के कचरे को सोख लेती है। स्वच्छ भारत मिशन-शहरी 2.0 के तहत कई शहर समाधान ला रहे हैं। सामाजिक उद्यमी फूलों से जैविक खाद, साबुन, मोमबत्तियां और अगरबत्ती जैसे मूल्यवान उत्पाद बनाने के लिए आगे आ रहे हैं।

स्वच्छ भारत मिशन के प्रयासों से फूलों का अपशिष्ट कार्बन फुटप्रिंट में महत्वपूर्ण योगदानकर्ताओं में से एक के रूप में उभर रहा है, जिससे फूलों के कचरे से निपटने के लिए शहरों और स्टार्टअप्स के बीच सहयोगात्मक प्रयास हो रहे हैं।

उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में रोज़ाना 75,000 से 100,000 तक दर्शनार्थी आते हैं और लगभग 5-6 टन फूल और अन्य अपशिष्ट उत्पन्न होता है। इसके लिए खास ‘पुष्पांजलि इकोनिर्मित’ वाहन हैं, जहां इस कचरे को एकत्र किया जात है और फिर इसे थ्रीटीपीडी प्लांट में संसाधित कर पर्यावरण के अनुकूल उत्पादों में बदल दिया जाता है। शिव अर्पण स्वयं सहायता समूह की 16 महिलाएं फूलों के कचरे से विभिन्न उच्च गुणवत्ता वाली वस्तुएं बनाती हैं और इसके लिए उन्हें रोजगार भी दिया गया है।

इसके अलावा, इस कचरे से स्थानीय किसानों के लिए खाद बनाई जाती है और यह जैव ईंधन के रूप में भी काम करता है। उज्जैन स्मार्ट सिटी 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, अब तक 2,200 टन फूलों के कचरे से कुल 3,02,50,000 स्टिक का उत्पादन किया गया है।

इसी तरह मुंबई के सिद्धिविनायक मंदिर में रोजाना करीब 40,000-50,000 श्रद्धालु आते हैं। खास दिनों में यह आंकड़ा 1,00,000 तक पहुंच जाता है। मुंबई स्थित डिजाइनर हाउस ‘आदिव प्योर नेचर’ ने एक स्थाई उद्यम शुरू किया है, जो मंदिर में अर्पित किए गए फूलों को प्राकृतिक रंगों में बदलकर कपड़े के टुकड़े, परिधान, स्कार्फ, टेबल लिनेन और बड़े थैले के रूप में अलग-अलग वस्त्र बनाता है। सप्ताह में तीन बार फूलों का अपशिष्ट इकट्ठा किया जाता है, जो 1000-1500 किलोग्राम/सप्ताह होता है। कचरे को छांटने के बाद कारीगरों की एक टीम सूखे फूलों को प्राकृतिक रंगों में बदल देती है।

आमतौर पर इस्तेमाल किए जाने वाले गेंदा, गुलाब और अड़हुल के अलावा  टीम प्राकृतिक रंग बनाने और भाप के माध्यम से बनावट वाले प्रिंट बनाने के लिए नारियल के छिलकों का भी उपयोग करती है।

तिरुपति नगर निगम हर दिन मंदिरों से छह टन से ज़्यादा फूलों का अपशिष्ट एकत्र करता है और दोबारा इस्तेमाल करने योग्य मूल्यवान उत्पादों में बदल दिया जाता है। इसके ज़रिए स्वयं सहायता समूहों की 150 महिलाओं को रोज़गार मिला है। रीसाइकिलिंग का यह काम तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम अगरबत्ती के 15 टन क्षमता वाले निर्माण संयंत्र में किया जाता है। इन उत्पादों को रीसाइकिल किए गए कागज़ और तुलसी के बीजों से भरे कागज़ से पैक किया जाता है ताकि कार्बन उत्सर्जन शून्य हो।

फूलों के कचरे की रीसाइकिलिंग करने वाले कानपुर स्थित ‘फूल’, प्रतिदिन विभिन्न शहरों के मंदिरों से फूलों का अपशिष्ट एकत्र कर रहा है। यह संस्था (फूल) भारत के पांच प्रमुख मंदिरों अयोध्या, वाराणसी, बोधगया, कानपुर और बद्रीनाथ से लगभग 21 मीट्रिक टन फूलों का अपशिष्ट प्रति सप्ताह एकत्र करता है। इस कचरे से अगरबत्ती, धूपबत्ती, बांस रहित धूपबत्ती, हवन कप आदि जैसी वस्तुएं बनाई जाती हैं। ‘फूल’ द्वारा नियोजित महिलाओं को सुरक्षित कार्य स्थान, निश्चित वेतन, भविष्य निधि, परिवहन और स्वास्थ्य सेवा जैसे लाभ मिलता है। गहन तकनीकी शोध के साथ, स्टार्टअप ने ‘फ्लेदर’ विकसित किया है, जो पशु चमड़े का एक व्यवहार्य विकल्प है और इसे हाल ही में पेटा (पीईटीए) के सर्वश्रेष्ठ नवाचार शाकाहारी दुनिया से सम्मानित किया गया था।

हैदराबाद स्थित स्टार्टअप, ‘होलीवेस्ट’ ने ‘फ्लोरजुविनेशन’ नामक एक अनूठी प्रक्रिया के माध्यम से फूलों के कचरे को पुनर्जीवित किया है। 2018 में स्थापित कंपनी के संस्थापक माया विवेक और मनु डालमिया ने विक्रेताओं, मंदिरों, कार्यक्रम आयोजकों, सज्जाकारों और फूलों का अपशिष्ट  पैदा करने वालों के साथ भागीदारी की। वे 40 मंदिरों के साथ फूल विक्रेताओं और बाजार क्षेत्र से फूलों का अपशिष्ट एकत्र करते हैं और खाद, अगरबत्ती, सुगंधित शंकु और साबुन जैसे उत्पाद बनाते हैं।

पूनम सहरावत का स्टार्टअप ‘आरुही’ दिल्ली-एनसीआर में 15 से अधिक मंदिरों से फूलों का अपशिष्ट इकट्ठा करता है। 1,000 किलोग्राम कचरे को रिसाइकिल करता है और हर महीने दो लाख रुपये से अधिक कमाता है। सहरावत ने फूलों के कचरे से उत्पाद बनाने के लिए 3,000 से अधिक महिलाओं को प्रशिक्षित किया है। (इनपुट क्रेडिटः पीआईबी)

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