कोरोना काल में जिस क्षेत्र ने हमे वी शेप की रिकवरी प्राप्त करने में अहम भूमिका निभाई थी, आज दुर्भाग्य से उसी क्षेत्र में वृद्धि दर सबसे धीमी है। वह क्षेत्र है कृषि एवं उससे संबद्ध क्षेत्र। पशुपालन और मत्स्य ने कृषि क्षेत्र में वृद्धि को आधार प्रदान किया है। आज भी इन्हीं के बल पर कृषि क्षेत्र आगे बढ़ रहा है। विचार करने वाली बात ये है कि जो क्षेत्र हमारी अर्थव्यवस्था को गति प्रदान करने में अपनी अहम भूमिका निभा रहा है, आज वहीं क्षेत्र सबसे अधिक पिछड़ेपन का शिकार क्यों है?
हमारे नीति-नियंताओं के पास इस क्षेत्र के धारणीय विकास के लिए कोई पुख्ता योजना नहीं है। 70% से अधिक किसान हमारे देश में मार्जिनल है। 30% या उससे कम ही किसान ऐसे हैं, जिनके पास प्रति हेक्टेयर भूमि ज्यादा है। हरित क्रांति (Green Revolution) के बाद से कृषि योग्य भूमि में बढ़ोतरी तो हुई है, लेकिन इसके सापेक्ष्य उत्पादन एवं उत्पादकता में कोई खास बढ़ोतरी नहीं देखी गई।
बढ़ती आबादी का पेट भरने के लिए कृषि पर न सिर्फ ध्यान देना होगा बल्कि नई-नई तकनीकों (Technical Farming) का समावेशन भी जरूरी है। अब वर्षा आधारित कृषि के बलबूते भारत की जनता का पालन-पोषण करने में हम सक्षम नहीं हैं। आज ग्लोबल वार्मिंग (Globel Warming), हीटवेब (Heatwave), क्लाइमेट चेंज (Climate change) जैसी समस्याएं कृषि को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित कर रही हैं।
समय से बारिश का न होना, अत्यधिक गर्मी या ठंड पड़ना, ये सभी अब शाश्वत समस्याएं बन चुकी हैं। ऐसे में जरूरी है कि अब कृषि को तकनीक एवं कौशल से जोड़ा जाए और नवाचार को बढ़ावा दिया जाए। पानी की कमी से जो फसलें बर्बाद हो रही हैं, उन फसलों की नई किस्में विकसित की जाएं, ताकि वे कम पानी में भी जीवित रह सकें। ड्रिप इरिगेशन, स्प्रिंकल सिंचाई, जलवायु अनुकूल खेती के साथ किसानों को तकनीक, कौशल एवं बाजारों तक सीधी पहुंच सुनिश्चित की जाए।
फसल भंडारण, गांवों में किसानों तक बाजार एवं कोल्ड स्टोरेज की सुविधाओं का विकास किया जाए। इन सबके साथ खाद्य प्रसंस्करण की इकाई गांव-गांव में लगाई जाए एवं मैनुफैक्चरिंग क्षेत्र पर ध्यान दिया जाए।
उदारीकरण के बाद से हमारा देश सेवा क्षेत्र की तरफ मुड़ा। आज भी जीडीपी में सबसे ज्यादा योगदान इसी क्षेत्र का है। अतः अब जरूरत है प्राथमिक क्षेत्र को गति देने के साथ निर्माण क्षेत्र को बढ़ाने की। ताकि युवाओं को रोजगार से जोड़ा जा सके और जनता की जरूरतों को पूरा किया जा सके। विनिर्माण हब बनाने के साथ ही भारत को निर्यात उन्मुख देश बनना होगा, तभी आने वाले समय में प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्र की कमी को पूरा किया जाना संभव हो पाएगा।
युवाओं को सरकारी और प्राइवेट नौकरी के अलावा कृषि क्षेत्र की अपार संभावनाओं पर भी ध्यान केंद्रित करना चाहिए और हमारे नीति-निर्धारकों को चाहिए कि क्लाइमेट रेसिलियंट कृषि को आगे बढ़ाएं। पाठ्यक्रम में कृषि और उनके करने के नये-नये तरीकों को शामिल किया जाए। अर्बन फार्मिंग से लेकर रूफ फार्मिंग की ट्रेनिंग हर बच्चे को प्रदान की जाए। अपना खाद्य उगाने के लिए बच्चों को प्रेरित किया जाए एवं उनमें खेती के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित किया जाए।
नवाचार को इस क्षेत्र में प्राथमिकता मिले, युवाओं को इस क्षेत्र में आने के लिए नये तरीके से प्रेरित किया जाए। जगह-जगह कृषि ट्रेनिंग कैंप, कृषि सुविधा कैंप, सेमिनार, वेबिनर, कृषि जागरुकता अभियान आयोजित कर इस क्षेत्र को सशक्त करने की आवश्यकता है। इस क्षेत्र की तरफ ध्यान आकर्षक के लिए एक और हरित क्रांति (Green Revolution) की जरूरत आज समय की मांग है।
शालिनी सिन्हा, मुक्त लेखिका (वरिष्ठ पत्रकार शालिनी सिन्हा सम-सामयिक मुद्दों और सामाजिक मुद्दों पर बेबाकी से अपनी राय रखती हैं।)