कल्पना करें, किसी दिन आप सोकर उठे, वाशरूम में जाएं और जैसे ही चेहरा धोने के लिए नल खोले, उसमें पानी न हो। फिर क्या होगी आपकी प्रतिक्रिया? शायद आप पानी भरने के लिए मोटर चलाने जाएंगे। क्या होगा, जब घंटों मोटर चलने के बाद भी एक बूंद पानी टंकी में न चढ़े। आसपास पूछने पर सबके घर की स्थिति यही हो। ऐसे में जब आप पानी का गैलन लेने बाजार जाएं और वहां भी पानी खत्म हो चुका हो तो फिर आप क्या करेंगे?
नदी, कुएं, तालाब सब पहले ही सुख चुके हैं। चापकल ( चापाकल या हैंडपंप) सब घरों के टूट चुके हैं। जेब में पैसे होने के बावजूद आप पानी खरीद नहीं सकते, क्योंकि पानी कहीं उपलब्ध ही नहीं है।
आप अंबानीज नहीं है कि विदेशों से पानी मंगवा सके और आप बड़े गुंडे या बदमाश भी नहीं कि आपके एक इशारे पर पानी की नदियां बह सकें। न ही आप उच्च सरकारी ऑफिसर हैं, जो अपना प्रबंध येन-केन-प्रकारेन कर ही लेंगे।
आप एक गरीब या मध्यम या उच्च मध्यम वर्ग से आने वाले इंसान हैं, जिन्हें अब तक पानी बिना किसी बाधा के उपलब्ध होता रहा है। ऐसे में पानी के अचानक खत्म होने पर आपकी प्रतिक्रिया चाहे जो हो, परन्तु उस वक्त सरकार, प्रशासन या खुद को दोष देने के बाद भी आप स्वयं और अपने परिवार के लिए पानी का प्रबंध नहीं कर सकेंगे। यह अटल सत्य है। आप बहुत खुशकिस्मत है कि आज तक आपके घरों में पानी अनवरत बहता रहा है। परन्तु जो कल्पना आज आपने की, वह बहुत जल्द हकीकत में तब्दील हो जाएगी।
आज भी देशभर के बहुत से इलाके पानी की कमी से जूझ रहे है। कई घरों में पीने का पानी नहीं है । कइयों को जहरीले पानी का सेवन करना पड़ रहा है। जो प्राकृतिक चीज़े हमें मुफ्त में मिली हैं, उनमें हमारी पीढियां सदियों से जहर घोलती आई हैं। पानी से लेकर हवा, सबमें हम विकास के नाम पर जहर घोलते जा रहे हैं। बगैर यह सोचे कि आखिर हम यह विकास किसके लिए कर रहे है और इसका परिणाम क्या होगा?
जो इंडस्ट्रीज हमने लगाई हैं, उसका वेस्टेज सीधे नदियों में जा रहा है, जिससे नदी का पानी जहरीला हो गया है कि नदियों पर आश्रित जानवर और इंसान सभी बीमारियों से ग्रसित हो मारे जा रहे है। अवसंरचना विकास के नाम पर हमने जंगल काट दिए, जिससे न सिर्फ प्रदूषण बल्कि प्राकृतिक आपदाओं की प्रवृति बढ़ती जा रही है।
मानव को कौन कहे कि इससे पूरे विश्व पर खतरा मंडरा रहा है। वैश्विक तापन जैसी समस्या बस इसी कारण है। जिन वनों को हमने काटा, आज उन्ही को बोने की बात कर रहे हैं। जिन पोखरों, तालाबों, नदियों को हमने पाटा, आज उन्हीं को पुनर्जीवित करना चाह रहे हैं। जिस पलास्टिक को हमने वरदान समझा, आज उसी से मुक्ति की गुहार लगा रहे हैं।
जहां से चले थे हम विकास के नाम पर, आज वहीं, उसी प्राचीन काल में वापस लौटना चाह रहे हैं। मिट्टी के बर्तन से लेकर मिट्टी का घर हम सभी पुरानी चीजों को आज अपना कर अपना स्वास्थ्य और भविष्य बेहतर करना चाह रहे हैं। एसी की जगह प्राकृतिक हवा, फ्रीज की जगह मिट्टी का घड़ा, मल्टीस्टोरेज बिल्डिंग की जगह गांव की हरियाली के बीच छोटा सा कॉटेज, कार्बाइड वाले फल की जगह अपने बगीचे का फल, केमिकल वाली सब्जियों की जगह नेचुरल फॉर्मिंग वाली सब्जियां। जब विकास करके पीछे वाली चीजें ही अपनानी हैं तो विकास के नाम पर इतनी बर्बादी क्यों?
कार की जगह पैदल चलने की बात हो रही है। साइकिल चलाना और योग आज बेहतर एक्सरसाइज है। मोटे अनाज की तरफ आज पुनः विश्व की वापसी हो रही है। आयुर्वेद का लोहा आज संपूर्ण विश्व मानता है। पैकेटबंद चीजों से दूरी आज का स्लोगन बना हुआ है तो फिर ये झूठमूठ का प्रकृति का हनन कर विकास क्यों और किसके लिए?
समय से बारिश न हो तो परेशानी, अत्यधिक गर्मी या ठंडी पड़े तब भी दिक्कत, ऐसे में जब हम प्राकृतिक चीजों का सामना साहस पूर्ण नहीं कर सकते तो उन्हें नुकसान पहुंचाकर अपने को खतरे में डालने का प्रयत्न ही क्यों कर रहे हैं।
जब हम अपने अधिकारों के हनन पर तिलमिला उठते हैं तो ऐसे में प्रकृति के भी कुछ मौलिक अधिकार हैं। हम उन्हें क्यों नुकसान पहुंचाते हैं? प्रकृति की रक्षा में ही हमारा जीवन सुरक्षित है। उसके विनाश में हम सब का विनाश निश्चित है।
आज, पानी की दिक्कत है। कल को कोई और दिक्कत विकराल रूप में आ खड़ी होगी। आखिर कब तक हम समस्याओं को सुलझाते रहेंगे? क्यों न हम कोई ऐसा मार्ग तलाशें, जिससे समस्या हो ही न और अगर हो भी तो ऐसा हो, जिसका दूसरा मार्ग या तत्काल उपाय संभव हो।
जो लोग गरीब तथा वंचित हैं, उन तक तकनीक देर से पहुंचती है या तो पहुंचती ही नहीं। पानी को शुद्ध करने की भी तकनीक तब कारगर होगी जब घर घर पानी उपलब्ध हो। अगले 200 सालों में सबके घर में पानी की उपलब्धता सुनिश्चित होगी, इसका कोई ठोस प्लान हमारी सरकारों के पास नहीं है। अतः अब आम जनता मतलब हमको और आपको तय करना होगा कि हम अपनी पीढ़ियों के लिए शुद्ध पानी की उपलब्धता सुनिश्चित करें।
इसके लिए जो उचित कदम हो वह आज ही उठाना शुरू कर दें, क्योंकि इसकी कोई गारंटी नहीं है कि कल से आपके नल में पानी आएगा या नहीं। और यदि नहीं आएगा तो आपका अगला कदम क्या होगा? आप आज ही चेत जाएं तो अच्छा होगा क्योंकि जब तक सोचेंगे और जीवनशैली बदलेंगे तब तक बहुत देर हो जाएगी।
कल जब आपके नल में पानी नहीं आएगा तो उस वक्त आपके दरवाजे पर कोई सरकार खबर लेने नहीं पहुंचेगी, क्योंकि आपने भी अपनी सरकार चुनते वक्त समस्या का समाधान करने वाला नहीं बल्कि अपनी जाति और धर्म को बढ़ावा देने वाला चुना था। ऐसी सरकार बस यहीं तक सीमित है।
आप मनुष्य जाति में हैं प्रगतिशील एवं विवेकपूर्ण। आप स्वयं निर्णय लें कि इतनी गर्मी पड रही है यदि ऐसे में धरती का जल भीतर से सूख गया तो फिर आपके पास क्या विकल्प होगा? समुद्र का पानी पीने लायक बनाने की तकनीक है नहीं और सीवर का पानी अपने बच्चों को पिला सकेंगे? यदि नहीं, तो पानी बचाएं, पेड़ लगाएं और वर्ष जल संचयन स्वयं करे और अपने पीढियों को भी बताएं।
शालिनी सिन्हा, मुक्त लेखिका (वरिष्ठ पत्रकार शालिनी सिन्हा सम-सामयिक मुद्दों और सामाजिक मुद्दों पर बेबाकी से अपनी राय रखती हैं।)