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20वीं सदी के प्रभावशाली एशियाई शख्सियतों में एक थे डा. एमएस स्वामीनाथन

The live ink desk. भारत में हरित क्रांति के जनक (Father of Green Revolution) व 1972 में पद्मभूषण से सम्मानित डा. एमएस स्वामीनाथन का जीवन खेती-किसानी को समृद्ध करने केलिए समर्पित रहा। फरवरी, 2024 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली भारत सरकार ने जिन-जिन लोगों को भारत (Bharat Ratna) का सम्मान देने की घोषणा की, उनमें दो नाम ऐसे हैं, जिनका जीवन किसानी और किसानों के लिए समर्पित रहा।

पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के बाद अगला नाम डा. एमएस स्वामीनाथन (Dr. MS Swaminathan) का है। एमएस स्वामीनाथन का जन्म सात अगस्त, 1925 को कुंबकोनम, तमिलनाडु में हुआ था। 98 वर्ष की अवस्था में 28 सितंबर, 2023 को उनका निधन हुआ। डा. एमएस स्वामीनाथन को भारत में हरित क्रांति (Green Revolution) का जन्म माना जाता है। दरअसल द्वितीय विश्व युद्ध (WW-2) के दौरान साल 1943 में भीषण अकाल पड़ा।

बंगाल में अकाल को देख हुए विचलित
बंगाल में आए इस अकाल ने डा. एमएस स्वामीनाथन को अंदर से झकझोर दिया। अकाल की भयावहता को देखते हुए उन्होंने कृषि की पढ़ाई का निर्णय लिया और साल 1944 में मद्रास एग्रीकल्चरल कालेज से कृषि विज्ञान में स्नातक की डिग्री हासिल की। 1947 में अनुवांशिकी और पादप प्रजनन कीपढ़ाई के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI), नई दिल्ली आए। साल 1949 में उन्होंने साइटोजेनेटिक्स में परास्नातक किया और आलू पर शोध किया। अनुवांशिकी में शोध केलिए वह नीदरलैंड भी गए।

हरित क्रांति से आत्मनिर्भर बना भारत
साल 1954 में उन्होंने भारत में कृषि के लिए कार्य करना शुरू किया। 1966 में मैक्सिको के बीजों को पंजाब की घरेलू किस्मों के साथ मिश्रित कर उच्च उत्पादकता वाले गेहूं के संकर बीजों का विकास किया। हरित क्रांति कार्यक्रम के तहत उस दौरान खेतों में ज्यादा उपज देने वाले गेहूं व धान के बीज लगाए गए। इसी क्रांति ने खाद्यान्न संकट से जूझ रहे भारत को उबारा और उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाया। इसके पश्चात एमएस स्वामीनाथन खाद्य सुरक्षा के क्षेत्र विश्वस्तरीय नेता का दर्जा दिलाया।

मैक्सिकन गेहूं के उन्नत किस्म को पहचाना
एमएस स्वामीनाथन (M.S. Swaminathan) ने ही सबसे पहले गेहूं की उन्नत किस्म (मैक्सिकन प्रजाति) की पहचान की और उसे स्वीकार कर शोध किया। इसका परिणाम भी आश्चर्यजनक रहा। नतीजा यह हुआ कि किसी दौर में रोटी-रोटी को मोहताज रहने वाला भारत आज उत्पादन में न सिर्फ आत्मनिर्भऱ बना, बल्कि निर्यात भी कर रहा है। एमएस स्वामीनाथन को भारत सरकार की तरफ से 1967 में पद्मश्री, 1972 में पद्मभूषण और 1989 में पद्मविभूषण के सम्मान से नवाजा गया। और, फरवरी, 2024 में उन्हे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने भारत रत्न के सम्मान से नवाजा।

विश्व समुदाय ने सम्मान से भरी झोली
अन्न संकट से जूझने वाले भारत जैसे विशालकाय देश को उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने वाले एमएस स्वामीनाथन को देश ने भी सिर आंखों पर बिठाया। साल 1971 में उन्हे मैग्सेसे पुरस्कार, 1986 में अल्बर्ट आइंस्टीन वर्ल्ड साइंस पुरस्कार, 1987 में विश्व खाद्य पुरस्कार, 1991 में टाइलर पुरस्कार, 1994 में होंडा पुरस्कार (जापान), 1997 में आर्डर टू मेरिट एग्रीकोल (फ्रांस), 1998 में हेनरी शॉ पदक (अमेरिका), 1999 में वाल्वो इंटरनेशनल एनवायरमेंट पुरस्कार और 1999 में यूनेस्को गांधी स्वर्ग पदक से सम्मानित किया गया।

टाइम मैग्जीन ने बताया प्रभावशाली व्यक्तित्व
लक्ष्य को प्राप्त करने के उपरांत भी एमएस स्वामीनाथन देश की भलाई में लगे रहे और विभिन्न पुरस्कारों के माध्यम से मिली धनराशि से 90 के दशक में चेन्नई में शोधकेंद्र (एमए स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन) की स्थापना की। पर्यावरण प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में वह यूनेस्को में पदासीन रहे। उनकी विद्वता को स्वीकार करते हुए इंग्लैंड की रॉयल सोसाइटी और बांग्लादेश, इटली, स्वीडन, चीन, सोवियत संघ और अमेरिका की राष्ट्रीय विज्ञान अकादमियों में शामिल किया गया। साल 1999 में टाइम मैग्जीन ने एमएस स्वामीनाथन को 20वीं सदी के 20 प्रभावशाली एशियाई व्यक्तियों में से एक बताया था।

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