प्रदेश सरकार ने 800 से अधिक सरकारी वकीलों को हटाया, 586 की नई नियुक्ति
आलोक गुप्ता
प्रयागराज/लखनऊ. इलाहाबाद हाईकोर्ट की प्रधानपीठ और लखनऊ बेंच में नियुक्त 841 सरकारी वकीलों (राज्य विधि अधिकारियों) को प्रदेश सरकार ने सेवा से हटा दिया है। विधि एवं न्याय विभाग के विशेष सचिव निकुंज मित्तल की तरफ से जारी आदेश में इलाहाबाद हाईकोर्ट की प्रधान पीठ (इलाहाबाद) से 505 राज्य विधि अधिकारी और लखनऊ बेंच से 336 सरकारी अधिवक्ताओं की छुट्टी की गई है।
दूसरी तरफ राज्य सरकार ने हटाए गए सरकारी वकीलों के सापेक्ष 586 राज्य विधि अधिकारियों की नियुक्ति भी की है। सरकारी आदेश के मुताबिक इलाहाबाद हाईकोर्ट की प्रधानपीठ में 366 और लखनऊ बेंच में 220 सरकारी वकीलों को नियुक्ति दी गई है।
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विधि एवं न्याय विभाग के विशेष सचिव की तरफ से जारी आदेश में इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपर महाधिवक्ता विनोदकांत और प्रधान पीठ में 26 अपर मुख्य स्थाई अधिवक्ताओं को भी हटाया गया है। इसके अलावा 179 स्थाई और 111 ब्रीफ होल्डर सिविल की सेवाएं समाप्त की गई हैं।
जबकि लखनऊ बेंच के दो चीफ स्टैंडिंग काउंसिल की सेवा समाप्त की गई है। इसके अलावा 33 एडिशनल गवर्नमेंट एडवोकेट भी हटाए गए हैं। फिलहाल इतने बड़े पैमाने पर राज्य विधि अधिकारियों को हटाए जाने को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म है।
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बताते चलें कि राज्य विधि अधिकारियों की नियुक्ति केंद्र सरकार और राज्य सरकार दोनों मिल कर करती हैं। उच्च न्यायालय में सरकारी वकीलों की नियुक्ति, उस स्टेट की गवर्नमेंट और केंद्र की सरकार द्वारा उच्च न्यायालय से विचार-विमर्श के बाद किया जाता है। जबकि जिला न्यायालय में वकीलों की नियुक्ति स्टेट गवर्नमेंट द्वारा की जाती है।
राज्य विधि अधिकारियों के ऊपर पुलिस द्वारा फाइल की गई चार्जशीट का विश्लेषण करना होता है। इसके अलावा राज्य विधि अधिकारी द्वारा पुलिस द्वारा फाइल की गई एफआईआर और सबूतों की जांच, केस से संबंधित सभी तथ्यों को कोर्ट के सामने रखना होता है। गवाहों की पेशी करना, सबूतों को न्यायधीश के समक्ष रखना और उचित निष्कर्ष तक पहुंचने में कोर्ट न्यायिक अधिकारी/जज का सहयोग करना भी होता है।
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