अवध

याद किए गए आजादी के रणबांकुरेः शहीद भगत सिंह, राजगुरु व सुखदेव को किया नमन

प्रयागराज (आलोक गुप्ता). जंग-ए-आजादी में खुशी-खुशी अपने प्राणों की आहुति देने वाले देश के अमर बलिदानियों को आज याद किया गया। बहादुरगंज के मोती पार्क में भारत माता के लिए शहीद होने वाले भगत सिंह (Shaheed Bhagat Singh), राजगुरु और सुखदेव के बलिदान दिवस पर उन्हे नमन किया गया। कांग्रेसियों ने तीनों शहीदों के चित्रों पर पुष्प अर्पित कर श्रद्धासुमन अर्पित किया।

कांग्रेस नेता इरशाद उल्ला व राजकुमार सिंह रज्जू ने संयुक्त रूप से कहा भगत सिंह, राजगुरु (Rajguru) और सुखदेव (Sukhdev) भारत माता के सच्चे सपूत थे। उनमें देश प्रेम की भावना कूट-कूटकर भरी हुई थी। उन्होंने अपनी देश भक्ति व देश प्रेम को अपने प्राणों से अधिक महत्व दिया और देश की आजादी के लिए संघर्ष किया। इस संघर्ष में मातृभूमि के लिए हंसते-हंसते अपने प्राणों की आहुति दी और वीरगति को प्राप्त हुए।

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इस मौके पर श्रद्धांजलि अर्पित करने वालों में इरशाद उल्ला, राजकुमार सिंह रज्जू, शाहिद कुरेशी, अरशद कुरेशी, लालबाबू साहू, अजय केसरवानी, जावेद कुरेशी, कुलदीप यादव, मुनाऊ, गोलू, गुड्डू,  मोहम्मद सत्तार, कमल अग्रहरी आदि लोग मौजूद रहे।

उल्लेखनीय है कि शहीद भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू को 23 मार्च, 1931 को लाहौर जेल में फांसी दी गई थी। तीनों अमर बलिदानियों को लाहौर के सेंट्रल जेल में 24 मार्च को फांसी दी जानी थी। भगत सिंह इस फैसले से खुश नहीं थे। उन्होंने 20 मार्च 1931 को पंजाब के गवर्नर को एक खत लिखा था कि उनके साथ युद्धबंदी जैसा सलूक किया जाए और फांसी की जगह उन्हें गोली से उड़ा दिया जाए।

22 मार्च, 1931 को अपने क्रांतिकारी साथियों को लिखे आखिरी खत में भगत ने कहा- “जीने की इच्छा मुझमें भी है, ये मैं छिपाना नहीं चाहता। मेरे दिल में फांसी से बचने का लालच कभी नहीं आया। मुझे बेताबी से अंतिम परीक्षा का इंतजार है।” इसके बाद गोरों की हुकूमत वाली सरकार ने फांसी के लिए तय वक्त से 12 घंटे पहले ही 23 मार्च, 1931 को शाम 7 बजकर, 33 मिनट पर भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दे दी। इस घटना को आज (23 मार्च, 2023) 92 साल पूरे हो चुके हैं।

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