जुलूसे अमारी ने ताजी की कर्बला की दास्तान, हर आंख रही नम
प्रयागराज (आलोक गुप्ता). दांदूपुर (यमुनापार) गांव में शुक्रवार को लश्करे अलमदार कमेटी की ओर से अमारी का जुलूस निकाला गया। जो परंपरागत रास्तों से होता हुआ करबला पहुंचा। अकीदतमंदों ने 18 बनी हाशिम के अलम, जुल्जनाह, शबीहे ताबूत और अमारी की ज़ियारत की।
महाराष्ट्र के मालेगांव से आए मौलाना अमीर हमज़ा अशरफी ने जुलूस की मजलिस को खिताब करते हुए इमाम हुसैन के मदीना से कर्बला तक के हालात को बयान किया। उन्होंने इमाम हुसैन की दर्दनाक शहादत को पढ़ा तो अज़ादारों की आंखे नम हो गईं। मजलिस के बाद अकबरपुर से आए मौलाना कुमैल अब्बास ने बनी हाशिम के 18 शहीदों की दर्दनाक शहादत की मंज़रकशी पेश की। इसके बाद जौनपुर की अंजुमन सज्जादिया और बक्शी बाज़ार की गुंचा-ए-कासिमिया ने नौहा व मातम का पुरसा पेश किया।
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मौलाना इरशाद हैदर के संचालन में आयोजित जुलूस में भारी संख्या में अकीदतमंद जुटे। स्थानीय कर्बला पर अलविदाई तकरीर मौलाना अंसर हुसैन ने की। उम्मुलबनीन सोसाइटी के महासचिव सैय्यद मोहम्मद अस्करी के अनुसार ज़ुलजुनाह की बिना किसी के बाग थामे दौड़ते हुए करबला तक के सफर की मंज़रकशी को देखने को हर अक़ीदतमंद बेताब नज़र आया। दुलदुल घोड़ा गांव की पगडंडियों पर दौड़ते हुए करबला तक गया। महिलाओं व बच्चियों ने जुलूस के करबला जाने के बाद स्टेज से नौहा पढ़कर फात्मा ज़हरा को उनके लाल हुसैन का पुरसा पेश किया। इस दौरान दांदूपुर की सभी अंजुमन, कमेटी व संस्थाओं की ओर से लंगर व सबील का इंतजाम रहा। आयोजन में मोजिज़ अब्बास, शबीह हैदर, बाक़र भाई, मुशाहिद अब्बास, नज़र मेंहदी, असग़र अली, मोहम्मद अब्बास, फैज़ान, रेहान, सैय्यद मोहम्मद अस्करी, तय्याबैन आब्दी, इब्ने हसन, शीराज़ रिज़वी, आसिफ रिज़वी आदि शामिल रहे।
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