भागवत कथा के अंतिम दिन सुदामा चरित्र सुन छलक पड़े नैन
प्राचीन शिव मंदिर कुरमैचा में आयोजित भागवत कथा का समापन
भदोही (संजय मिश्र). प्राचीन शिव मंदिर कुरमैचा में आयोजित श्रीमद भागवत कथा के अंतिम दिन कथा वाचक शिवश्याम महराज ने नटखट नंदगोपाल और उनके बाल सखा सुदामा के विभिन्न प्रसंगों का वर्णन किया।
भागवत कथा के अंतिम दिवस पर वृंदावन से पधारे शिवश्याम महाराज ने भागवत कथा का रसपान कराते हुए कहा कि मित्रता हो तो कृष्ण और सुदामा जैसी। भगवान कृष्ण के राजपाट संभालने के बाद कुछ काल के लिए अलग हो गए, लेकिन सुदामा के रोम-रोम में उनके बाल सखा श्रीकृष्ण समाए रहे। एक दिन सुदामा की पत्नी सुशीला ने कहा कि अपने मित्र भगवान श्रीकृष्ण के पास जाकर कुछ सहायता मांगिए। भगवान श्रीकृष्ण बड़े दयालु हैं। इस पर योगेश्वर के अनन्य भक्त सुदामा ने कहा कि वह एक पराक्रमी राजा हैं और मैं एक गरीब ब्राह्मण हूं।
पत्नी को जवाब देते हुए विप्र सुदामा ने कहा कि मित्रता में अमीरी- गरीबी का कोई भेद नहीं होता। पत्नी के कहने पर सुदामा ने अपने पड़ोसी के यहां से थोड़ा सा चावल लेकर भगवान श्रीकृष्ण के द्वार पर पहुंचे। द्वारपालों ने अपना नाम बताते हुए श्रीकृष्ण के पास संदेशा भेजवाया। जैसे ही द्वारपाल ने श्रीकृष्ण को सुदामा का नाम बताया, भगवान नंगे पैर ही दौड़ पड़े। आदरपूर्वक सुदामा को महल में ले गए। पैर धोकर अपने सिंहासन पर बैठाया।
महराज शिवश्याम ने कहा, भगवान भाव के भूखे होते हैं। जो भी व्यक्ति भक्ति-भावना से उन्हे याद करता है, वह उसकी रक्षा करते हैं। कहा कि आज स्वार्थ की मित्रता हो रही है। जब स्वार्थ पूर्ण हो जाता है, मित्रता खत्म हो जा रही है। कहा कि श्रेष्ठ कर्म से ही मोक्ष की प्राप्ति संभव है, इसलिए मनुष्य को सत्संग और सत्कर्म करना चाहिए। फल की इच्छा ईश्वर पर छोड़ देनी चाहिए। कथा का विश्राम धार्मिक जयकारों के बीच हुआ। कथा में प्रमुख रूप से भाजपा राष्ट्रीय परिषद सदस्य एवं पूर्व सांसद भदोही पंडित गोरखनाथ पांडेय, जिला पंचायत अध्यक्ष अनिरुद्ध त्रिपाठी, डा. राकेश दुबे, राजेश दुबे, संजय मिश्र, अरविंद सिंह, नागेश श्रीवास्तव, संगम लाल पांडेय, महेश शुक्ल, कड़ेनाथ शुक्ल, आशीष सिंह, पप्पू सिंह, अमरीश चतुर्वेदी मौजूद रहे।