पूर्वांचलराज्य

श्रीकृष्ण और सुदामा की मित्रता अद्वितीयः मारुति नंदन

भदोही (संजय सिंह). सीतामढ़ी के कला तुलसी में चल रही भागवत कथा के सातवें दिन कथाव्यास मारूतिनंदन महराज ने सुदामा चरित्र और परीक्षित मोक्ष का वर्णन किया। हरिहरानंद पांडेय के यहां चल रही कथा में महराज ने कहा, गिरधर गोपाल के बाल सखा सुदामा जितेंद्रिय थे। वह भिक्षा मांगकर अपने परिवार का पालन पोषण करते थे।

गरीबी के बावजूद भी हमेशा भगवान के ध्यान में मग्न रहते। पत्नी सुशीला अपने पति से बार-बार आग्रह करतीं कि आपके मित्र तो द्वारकाधीश हैं, उनसे जाकर मिलो, शायद वह हमारी मदद कर दें। पत्नी सुदामा के बार-बार कहने पर सुदामा द्वारका पहुंचते हैं और जब द्वारपाल भगवान कृष्ण को बताते हैं कि सुदामा नाम का ब्राह्मण आया है।

द्वारपाल के मुख से सुदामा का नाम सुनते ही श्रीकृष्ण नंगे पैर दौङकर आते हैं और अपने मित्र को गले से लगा लेते हैं। उनकी दीनदशा देखकर कृष्ण की आंखों से अश्रुओं की धारा प्रवाहित होने लगती है।

इसके पश्चात श्रीकृष्ण अपने बालसखा सुदामा को सिंहासन पर बैठाकर चरण धोते हैं। सभी पटरानियां सुदामा से आशीर्वाद लेती हैं। सुदामा अपने मित्र से विदा लेकर अपने स्थान लौटते हैं तो भगवान कृष्ण की कृपा से अपने यहां महल बना पाते हैं, लेकिन सुदामा अपनी घास की बनी कुटिया में रहकर भगवान का सुमिरन करते हैं।

अगले प्रसंग में परीक्षित की कथा सुनाते हुए कहा, शुकदेव ने राजा परीक्षित को सात दिन तक श्रीमद्भागवत कथा सुनाई, जिससे उनके मन से मृत्यु का भय निकल गया। इसी दरम्यान तक्षक नाग राजा परीक्षित को डस लेता है। राजा परीक्षित के कथा श्रवण करने के कारण वह भगवान के परमधाम को पहुंचते है। इसी के साथ कथा का विराम हो गया। आयोजक अनिल सुनील पांडेय ने बताया कि सोमवार 27 तारीख को  हवन यज्ञ एवम विशाल भंडारे का आयोजन होगा, जिसमें सभी भक्तजन प्रसाद ग्रहण करेंगे।

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