पूर्वांचल

भक्तों के हर कष्ट हरती हैं स्कंदमाताः आचार्य शिवेंद्र

शारदीय नवरात्रि के पांचवें दिन विधि-विधान से हुई स्कंद माता की आराधना

भदोही (कृष्ण कुमार द्विवेदी). शारदीय नवरात्रि के समय में पूरा जनपद देवीमय हो गया है। देवी मंदिरों व घरों में भक्तजनों के द्वारा माता रानी की पूजा व आरती बड़े आस्था के साथ की जा रही है। शाम के समय पूजा पंडालों की आकर्षक छटा देखते ही बन रही है। सुबह-शाम देवी गीतों के साथ-साथ हर तरह मां के जयकारे की गूंज सुनाई पड़ रही है। इसके अलावा रामलीला का मंचन भी ग्रामीणांचल में माहौल को भक्तिमय बना रहा है।

शुक्रवार को शक्ति के पांचवें स्वरुप स्कंदमाता की विधि-विधान से पूजा हुई। आचार्य शिवेंद्र शुक्ल महाराज ने बताया जगतजननी मां जगदंबा के पांचवें स्वरूप स्कंदमाता के स्वरूप की व्याख्या की। कहा, सच्चे मन से मां की पूजा करने से मां अपने भक्तों पर प्रसन्न होकर उन्हें मोक्ष प्रदान करती हैं। माता के पूजन से व्यक्ति को संतान प्राप्त होती है। स्कंदमाता, भगवान स्कंद को गोद में लिए हुए हैं। मां का ये स्वरूप दर्शाता है कि वात्सल्य की प्रतिमूर्ति मां स्कंदमाता अपने भक्तों को अपने बच्चे के समान समझती हैं।

यह भी पढ़ेंः पुलिस हर समय आपकी सेवा में तत्परः अजय सेठ

आचार्य शिवेंद्र शुक्ल महाराज ने बताया, मां स्कंदमाता की पूजा करने से भगवान स्कंद की पूजा भी स्वत: हो जाती है। देवी स्कंदमाता सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी हैं और इनकी मनोहर छवि पूरे ब्रह्मांड में प्रकाशमान होती है। सच्चे मन से मां की पूजा करने से व्यक्ति को दुखों से मुक्ति मिलकर मोक्ष और सुख-शांति की प्राप्ति होती है। बताया कि नवरात्रि में ही मां स्कंदमाता की विधि-विधान से पूजा करने के बाद स्कंदमाता के मंत्र का जाप करने से भक्त पर मां की कृपा बनी रहती है।

कहा, जो व्यक्ति मां स्कंदमाता की पूजा अर्चना करता है, मां उसकी गोद हमेशा भरी रखती हैं। देवी स्कंदमाता शुभदायिनी हैं। एकाग्रभाव से मन को पवित्र कर माँ की स्तुति करने से दुखों से मुक्ति पाकर मोक्ष का मार्ग सुलभ होता है। इनकी आराधना से विशुद्ध चक्र के जाग्रत होने वाली सिद्धियां स्वतः प्राप्त हो जाती हैं। इनकी आराधना से मनुष्य सुख-शांति की प्राप्ति करता है। ऐसा माना जाता है कि देवी स्कंदमाता के कारण ही मां-बेटे के संबंधों की शुरुआत हुई। देवी स्कंदमाता की पूजा का विशेष महत्व है। स्कंदमाता अगर प्रसन्न हो जाएं तो बुरी शक्तियां भक्तों का कुछ नहीं बिगाड़ सकती हैं। देवी की इस पूजा से असंभव काम भी संभव हो जाता है।

यह भी पढ़ेंः व्यापारी महोत्सव के सफल आयोजन पर एसएसपी को किया सम्मानित

देवी स्कंद माता ही हिमालय की पुत्री पार्वती हैं। इन्हें ही माहेश्वरी और गौरी के नाम से जाना जाता है। यह पर्वत राज की पुत्री होने से पार्वती कहलाती हैं, महादेव की वामिनी यानी पत्नी होने से माहेश्वरी कहलाती हैं और अपने गौर वर्ण के कारण देवी गौरी के नाम से पूजी जाती हैं। माता को अपने पुत्र से अधिक प्रेम है अत: मां को अपने पुत्र के नाम के साथ संबोधित किया जाना अच्छा लगता है। जो भक्त माता के इस स्वरूप की पूजा करते है मां उस पर अपने पुत्र के समान स्नेह लुटाती हैं। क्षेत्र के कांवल,  चककिसुनदास,  गजधरा समेत जनपद के विभिन्न स्थानों पर माता दुर्गा की मूर्तियों को स्थापित श्रद्धापूर्वक आराधना की जा रही है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button