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नाथ पंथ भगवान शिव के उपदेशों पर आधारितः अरुण कुमार

हिंदुस्तानी एकेडमी में हुई नाथ पंथ पर केंद्रित संगोष्ठी का आयोजन

प्रयागराज (आलोक गुप्ता). हिंदुस्तानी एकेडमी (Hindustani Academy) एवं राजकीय पाण्डुलिपि पुस्तकालय (Government Manuscript Library), संस्कृति विभाग के संयुक्त तत्वावधान में आजादी का अमृत महोत्सव आयोजन की श्रृंखला में शुक्रवार को नाथ पंथ (Nath Panth) पर केंद्रित संगोष्ठी काआयोजन किया गया। एकेडमी के गांधी सभागार में संगोष्ठी का शुभारंभ मां वीणावादिनी की वंदनाके साथ किया गया। मुख्य अतिथि योगी शिवनाथ महाराज (Chief Guest Yogi Shivnath Maharaj) और वक्ताओं को सम्मानित करते हुए एकेडमी के सचिव देवेंद्र प्रताप सिंह ने कहा, नाथपंथ और उसके सामाजिक, सांस्कृतिक, वैज्ञानिक आयामों को पूरी दुनिया को जानना चाहिए। आज जब सारी दुनिया में लोग अवसाद, तनाव से ग्रसित हो रहे हैं, ऐसे में योग उन्हे नई ऊर्जा देने का कार्य कर रहा है।

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नाथ पंथ का सामाजिक, सांस्कृतिक, वैज्ञानिक आयाम और हमारी सांस्कृतिक पहचान ही हमारी उर्जा है। योग और हठ योग शारीरिक प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में लाभकारी है। कार्यक्रम के अंत में उड़ीसा से आए महंत शिवनाथ योगी ने कहा, गोरक्षनाथ, कबीर और शंकराचार्य के भी पहले विद्यमान थे। आज, जो लोग योग करते हैं, वह सब गोरक्षनाथ की देन है। महर्षि पतंजलि ने योग के सिद्धांत को बताया तो क्रिया रूप में गुरु गोरक्षनाथ और जालंधरनाथ के द्वारा बताया गया है। इसीलिए अनेक आसन इनके नाम पर हैं। प्रयागराज नाथ पंथ के योगियों के लिए विशिष्ट स्थान रखता है। यहां के झूंसी नामक स्थान पर महायोगी गुरु गोरखनाथ एवं मत्स्येंद्रनाथ स्वयं आए थे। गंभीरानाथजी ने यहां पर आकर घोर तप किया था।

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अध्यक्षता करते हुए गोरखपुर विवि के विशेष कार्याधिकारी प्रोफेसर रविशंकर सिंह ने कहा कि ‘नाथ पंथ का मुख्यतः दार्शनिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक आयाम निर्धारित किया जा सकता है। नाथ पंथ के प्रतिपादक महायोगी गुरु गोरक्षनाथ हैं। महायोगी गुरु गोरखनाथ ने किसी दार्शनिक मत का खंडन नहीं किया है, बल्कि तत्कालीन समय में प्रचलित दार्शनिक मतों का शुद्धिकरण किया है। सामाजिक संदर्भ में नाथ पंथ जात-पात, मजहब, पंथ, किसी भी प्रकार का भेद अस्वीकार करता है। योग मार्ग प्रवर्तित नाथ पंथ सामाजिक विभेदों को अस्वीकार करते हुए सामाजिक समरसता के विषय को प्रतिपादित करता है।

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मुख्य वक्ता डा. अरुण कुमार त्रिपाठी ने बताया कि ‘नाथ पंथ आदिनाथ भगवान शिव के उपदेशों पर आधारित है। उन्होंने  प्राचीन पाण्डुलिपियों पर चर्चा करते हुए कहा कि पाण्डुलिपियाँ हमारे राष्ट्र की धरोहर हैं, इसी के द्वारा हम अपने राष्ट्र की बौद्धिक संपदा को संजोकर रखते हैं। कुछ वर्ष पहले जब आयुर्वेद में हल्दी और नीम के लिए विदेश में पेटेंट कराने की होड़ मची थी, तब हमारी यही पांडुलिपियाँ हमने साख के रूप में प्रस्तुत करके विजय प्राप्त की थी। इन्होंने गोरक्ष सहस्त्रनाम स्तोत्रम्, गोपीचंद आख्यान सहित अनेक नाथ पंथ की पांडुलिपियों पर चर्चा की’।

संचालन, अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापन एकेडमी की प्रकाशन अधिकारी ज्योतिर्मयी ने किया।  कार्यक्रम में प्रो. वीके सिंह, प्रभाशंकर पांडेय, डॉ. मानेंद्र प्रताप सिंह, दुर्गेश कुमार सिंह, विजयानंद, अतुल द्विवेदी, हरिश्चंद्र दुबे, श्यामसुंदर सिंह पटेलडॉ. शकिरा तलत, डॉ. शांति चौधरी, डॉ. रामनरेश पाल, राकेश कुमार वर्मा, डॉ. पीयूष मिश्र, उमेश श्रीवास्तव मौजूद रहे।

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