इस्मत के पाक़ीज़ा लबों पर ज़हरा-ज़हरा रहता है…
महफिले शुआ ए नूर में मुक़ामी व ग़ैर मुक़ामी शायरों ने मासूमा ए कौनैन के सिलसिला ए विलादत के मौक़े पर पढ़े क़सीदे
प्रयागराज (आलोक गुप्ता). अंजुमन गुंचा ए अब्बासिया द्वारा पैगंबरे इस्लाम की इकलौती बेटी खातूने जन्नत हज़रत फात्मतुज़ ज़हरा की यौमे विलादत के सिलसिले की ‘महफिल ए शुआ ए नूर’ बख्शी बाज़ार स्थित मस्जिद क़ाज़ी साहब में सजाई गई। सत्तर बरस पहले बुज़ुर्ग खतीब व मर्सियाख्वान ज़ायर हुसैन द्वारा क़ायम की गई ‘महफिल ए शुआ ए नूर’ मौलाना हसन रज़ा ज़ैदी, इमाम ए जुमा चक जामा मस्जिद की सदारत और अनीस जायसी के संचालन में देर रात तक गुलज़ार रही।
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रंगीन झालरों और क़ुमक़ुमे की सजावट के साथ आकर्षक डायस से मुक़ामी व ग़ैर मुक़ामी शायरों ने एक से बढ़ कर एक मिदहत के अशआर सुनाकर वाहवाही बटोरी। ज़ाकिरे अहलेबैत रज़ा अब्बास ज़ैदी ने पाकीज़ा किरदार की सरकार ए दो आलम की बेटी फात्मा ज़हरा की फज़ीलतों का तज़केरा किया। बाहरी शायरों में खादिम शब्बीर नसीराबादी, बाक़र बलियावी, दिलकश ग़ाज़ीपुरी, सज्जाद लखनवी, मायल चंदौलवी, शहंशाह मिर्ज़ापुरी, अफ़रोज़ ज़ैदी दत्तयावी के साथ मुक़ामी शायरों में ज़की अहसन, बाबर ज़हीर, हसनैन मुस्तफाबादी, डा. क़मर आब्दी, हाशिम बांदवी, शहंशाह सोनवी, जावेद दुलहीपुरी, अज़हर रिज़वी इलाहाबादी, आज़म मेरठी, शाहिद मुस्तफाबादी आदि शायरों ने अपने अशआरों से रात भर महफिल को गुलज़ार बनाया।
महफिल में मौलाना हसन रज़ा ज़ैदी, मौलाना अफ़ज़ल अब्बास, मौलाना मोहम्मद अली गौहर, मौलाना ज़रग़ाम हैदर, मौलाना आमिरुर रिज़वी, मौलाना जावेद साहब, रज़ा अब्बास ज़ैदी, काज़िम अब्बास, अहमद जावेद कज्जन, सैय्यद मोहम्मद अस्करी, ज़िया इस्माइल सफवी, सलीम अख्तर, जमाल क़ासिम, आमिर हबीब मुन्ना मज़दूर, अख्तर अली, महफूज़ आलम, नसर ज़िया, बाक़िर अब्बास, हादी अब्बास, डाक्टर ईशान ज़ैदी, ज़रग़ाम हैदर, बाक़र मेंहदी, असद हुसैन बब्बू, शम्मी, कैप्टेन मेंहदी नक़वी, मशहद अली खां, ज़ामिन हसन, अस्करी अब्बास समेत सैकड़ों लोग मौजूद रहे।