ऋण मुक्त होने के लिए गृहस्थआश्रम सबसे महत्वपूर्णः श्यामसुंदर
प्रयागराज (आलोक गुप्ता). मानव का सबसे बड़ा धर्म परोपकार है। प्राणी को अपने जीवन काल में इतना सत्कर्म कर लेना चाहिए कि उसे अंत समय में ईश्वर के दर्शन स्मरण और चिंतन का ज्ञान ही रहे। यह बातें श्रीमद भागवत सप्ताह ज्ञान यज्ञ के दौरान कथावाचक श्यामसुंदर महराज ने कही।
यमुनापार के बारा क्षेत्र के सरसेड़ी में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा में श्यामसुंदर महराज ने कहा, ईश्वर का दर्शन, स्मरण और चिंतन यही मानव तन की सार्थकता है। मानव को ऋण मुक्त होने के लिए गृहस्थ जीवन की आवश्यकता होती है। चारों आश्रमों में गृहस्थ जीवन सबसे महत्वपूर्ण होता है।
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कथावाचक ने कहा कि गृहस्थ आश्रम से ही चारों आश्रमों का पालन होता है। इस अवसर पर मुख्य यजमान के रूप में सपत्नीक तेज नारायण द्विवेदी, श्यामनारायण द्विवेदी, बिपिन बिहारी द्विवेदी, सुभाषचंद्र द्विवेदी, इंद्रभूषण द्विवेदी, राजीव द्विवेदी, रवींद्र द्विवेदी, प्रतुल द्विवेदी, संदीप द्विवेदी, विनय, सतीश, रामसागर, सुमंत भार्गव, अंश द्विवेदी, अनुराग मिश्र, सच्ची द्विवेदी आदि मौजूद रहे।